१ -
वो काजल भी लगाती थी, और गर कभी उसका कजरा घुलने लगता तो उसकी कालिख उसके भीतर कहीं जमा होने लगती.. इस बदरा के मौसम में उस प्यारी की याद उसे बहुत सताने लगती है.. काश के मेघ कभी नीचे उतर कर किवाड़ से अंदर भी झांक जाता.. ये गीत लिखने वाले भी ना!!
(कहाँ से आये बदरा गीत के सन्दर्भ में)
२ -
समय बदल गया है, जमाना बदल गया है,
एक हमहीं हैं जो सदियों पुराने से लगते हैं..
३ -
तुम अब भी, यात्रारत मेरी प्यारी,
अब भी वही इन दस सालों बाद,
धंसी हुई हो मेरी बग़ल में, किसी भाले की तरह..
(मुझे याद नहीं, मेरी ही लिखी हुई या फिर कहीं का पढ़ा याद आ गया हो)
४ -
मैं उस असीम क्षण को पाना चाहता हूँ जब इस दुनिया का एक-एक इंसान यह भूल जाए की मेरा कोई अस्तित्व भी है.. और अवसाद के उस पराकाष्ठा को महसूस करना चाहता हूँ...
५ -
लेकिन वह दोपहर ऐसी न थी कि केवल चाहने भर से कोई मर जाता..
[निर्मल वर्मा कि एक कहानी से]
६ -
होश से कह दो, कभी होश आने ना पाए.
एक मदहोशी का आलम बना है अभी अभी...
७ -
लगता है जैसे एक सपना सा बीता था या कोई फ्लैश सा चमका हो.. मैं भी तो अभी फ्लैश बैक में ही जी रहा हूँ! एक अकथ पीड़ा जैसी कुछ!! जीवन में अचानक से ही अनेक घटनाएं घट जाने पर उसी तरह उन सभी बातों का मूल्यांकन कर रहा हूँ जिसका कोई मूल्य निर्धारित ना किया जा सके, सभी चीजें वैसी ही दिख रही है जिस तरह अचानक किसी निर्वात में हवा के भरते समय सनसनाहट की सी आवाज होती है.. या फिर किसी घटना से आश्चर्यचकित सा होकर कोई उन सारे घटनाओं से परे हटकर, किनारे पर बैठ कर जैसे माझी को नाव खेते हुए देखता हो..
८ -
कई दिनों से इन्द्रधनुष की तलाश में हूँ. सुना है उसके दोनों छोर, जहाँ से वह धरती से मिलता है, वहाँ खुशियाँ ही खुशियाँ पायी जाती है.. यह मूवा इन्द्रधनुष भी तो यहाँ निकलता नहीं है..
९ -
गुमे हुए लोगों की उम्र कभी बढती नहीं है, वे हमेशा वैसे ही होते हैं जैसा उन्हें आखिरी दफ़े देखा गया होता है..
आपकी यादों में...
१० -
कभी-कभी सोचता हूँ कि अपनी लिखी डायरी को एक दिन नष्ट कर दूँ, नहीं तो अगर किसी दिन वह दुनिया के हाथ लग गई तो सारी दुनिया जान जाएगी की मैं किस हद तक का नीच, कायर और डरपोक इंसान था, एक ऐसा इंसान जो खुद को धोखे में रखने कि बीमारी से ग्रसित था..
११ -
वह एक ऐसा शहर था जिसका अँधेरा मुझे कभी भयभीत नहीं करता था. उसकी भीड़-भाड़ कभी मन को विचलित नहीं करती थी. उसके बारे में मैं वैसे ही सुना करता था जैसे बचपन में दादी-नानी से बच्चे भूत-प्रेत, राजा-रानी और परियों की कहानियां सुनते हैं, पूरी बेचैनी के साथ, पूरी श्रद्धा के साथ.
उस शहर में रहने वाले लोगों से अक्सर मुझे रश्क होता आया है, मेरे लिए यह जानना भी दिलचस्प होगा की उस शहर में रहने वाले लोग किसी दूसरे शहर, कस्बे अथवा गाँव के बारे में ठीक वैसा ही सोचते होंगे, जैसा मैं उस शहर के बारे में. और वे भी ऐसे ही इर्ष्या करने को मजबूर कर दिए गए होंगे उन जगहों में रहने वालों के बारे में..
१२ -
वो भी ठीक ऐसी ही रात थी.. सुबह चार बजे तक जगा हुआ था, और आज भी ढाई बज चुके हैं.. बस उस दिन "मौसम" जैसी कोई सिनेमा साथ नहीं थी...
देखो ना, देखते ही देखते पूरे दस साल गुजर गए. मगर लगता है ऐसे जैसे कल ही की तो बात थी, फिर खुशगंवार पांच साल और अवसाद के पांच साल भी तो आज साथ हैं सुबह के चार बजाने को......
१३ -
अतीत कभी आपका पीछा नहीं छोड़ती है. आप कितना भी बच कर निकलना चाहें, मगर यह पलट कर वापस आती है और पिछले हमले से अधिक जोरदार हमला करती है. अवसाद के पहले चरण की शुरुवात यहीं से होती है, और अंत का कहीं पता नहीं..
१४ -
कुछ यादें हैं, धुंधली सी.. जैसे कोई भुला हुआ गीत, जिसके सुर तो याद हों, मगर बोल याद नहीं.. जैसे कोई भुला हुआ स्वर, जिसकी आवाज याद हैं, मगर बोलने वाले का चेहरा याद नहीं.. जैसे कोई प्रमेय, जिसका हल तो याद हैं, मगर प्रश्न नहीं.. जैसे कोई खंडहर, जिसके दरख़्त तो याद हैं, मगर उसका पता याद नहीं... यादें जो आती हैं, खो जाती हैं... अधूरी यादें.. यादों को कभी अधूरा नहीं रहना चाहिए, तुम्हारे प्यार की तरह.. उसका भी एक अंत होना चाहिए, मेरे प्यार की तरह..
वो काजल भी लगाती थी, और गर कभी उसका कजरा घुलने लगता तो उसकी कालिख उसके भीतर कहीं जमा होने लगती.. इस बदरा के मौसम में उस प्यारी की याद उसे बहुत सताने लगती है.. काश के मेघ कभी नीचे उतर कर किवाड़ से अंदर भी झांक जाता.. ये गीत लिखने वाले भी ना!!
(कहाँ से आये बदरा गीत के सन्दर्भ में)
२ -
समय बदल गया है, जमाना बदल गया है,
एक हमहीं हैं जो सदियों पुराने से लगते हैं..
३ -
तुम अब भी, यात्रारत मेरी प्यारी,
अब भी वही इन दस सालों बाद,
धंसी हुई हो मेरी बग़ल में, किसी भाले की तरह..
(मुझे याद नहीं, मेरी ही लिखी हुई या फिर कहीं का पढ़ा याद आ गया हो)
४ -
मैं उस असीम क्षण को पाना चाहता हूँ जब इस दुनिया का एक-एक इंसान यह भूल जाए की मेरा कोई अस्तित्व भी है.. और अवसाद के उस पराकाष्ठा को महसूस करना चाहता हूँ...
५ -
लेकिन वह दोपहर ऐसी न थी कि केवल चाहने भर से कोई मर जाता..
[निर्मल वर्मा कि एक कहानी से]
६ -
होश से कह दो, कभी होश आने ना पाए.
एक मदहोशी का आलम बना है अभी अभी...
७ -
लगता है जैसे एक सपना सा बीता था या कोई फ्लैश सा चमका हो.. मैं भी तो अभी फ्लैश बैक में ही जी रहा हूँ! एक अकथ पीड़ा जैसी कुछ!! जीवन में अचानक से ही अनेक घटनाएं घट जाने पर उसी तरह उन सभी बातों का मूल्यांकन कर रहा हूँ जिसका कोई मूल्य निर्धारित ना किया जा सके, सभी चीजें वैसी ही दिख रही है जिस तरह अचानक किसी निर्वात में हवा के भरते समय सनसनाहट की सी आवाज होती है.. या फिर किसी घटना से आश्चर्यचकित सा होकर कोई उन सारे घटनाओं से परे हटकर, किनारे पर बैठ कर जैसे माझी को नाव खेते हुए देखता हो..
८ -
कई दिनों से इन्द्रधनुष की तलाश में हूँ. सुना है उसके दोनों छोर, जहाँ से वह धरती से मिलता है, वहाँ खुशियाँ ही खुशियाँ पायी जाती है.. यह मूवा इन्द्रधनुष भी तो यहाँ निकलता नहीं है..
९ -
गुमे हुए लोगों की उम्र कभी बढती नहीं है, वे हमेशा वैसे ही होते हैं जैसा उन्हें आखिरी दफ़े देखा गया होता है..
आपकी यादों में...
१० -
कभी-कभी सोचता हूँ कि अपनी लिखी डायरी को एक दिन नष्ट कर दूँ, नहीं तो अगर किसी दिन वह दुनिया के हाथ लग गई तो सारी दुनिया जान जाएगी की मैं किस हद तक का नीच, कायर और डरपोक इंसान था, एक ऐसा इंसान जो खुद को धोखे में रखने कि बीमारी से ग्रसित था..
११ -
वह एक ऐसा शहर था जिसका अँधेरा मुझे कभी भयभीत नहीं करता था. उसकी भीड़-भाड़ कभी मन को विचलित नहीं करती थी. उसके बारे में मैं वैसे ही सुना करता था जैसे बचपन में दादी-नानी से बच्चे भूत-प्रेत, राजा-रानी और परियों की कहानियां सुनते हैं, पूरी बेचैनी के साथ, पूरी श्रद्धा के साथ.
उस शहर में रहने वाले लोगों से अक्सर मुझे रश्क होता आया है, मेरे लिए यह जानना भी दिलचस्प होगा की उस शहर में रहने वाले लोग किसी दूसरे शहर, कस्बे अथवा गाँव के बारे में ठीक वैसा ही सोचते होंगे, जैसा मैं उस शहर के बारे में. और वे भी ऐसे ही इर्ष्या करने को मजबूर कर दिए गए होंगे उन जगहों में रहने वालों के बारे में..
१२ -
वो भी ठीक ऐसी ही रात थी.. सुबह चार बजे तक जगा हुआ था, और आज भी ढाई बज चुके हैं.. बस उस दिन "मौसम" जैसी कोई सिनेमा साथ नहीं थी...
देखो ना, देखते ही देखते पूरे दस साल गुजर गए. मगर लगता है ऐसे जैसे कल ही की तो बात थी, फिर खुशगंवार पांच साल और अवसाद के पांच साल भी तो आज साथ हैं सुबह के चार बजाने को......
१३ -
अतीत कभी आपका पीछा नहीं छोड़ती है. आप कितना भी बच कर निकलना चाहें, मगर यह पलट कर वापस आती है और पिछले हमले से अधिक जोरदार हमला करती है. अवसाद के पहले चरण की शुरुवात यहीं से होती है, और अंत का कहीं पता नहीं..
१४ -
कुछ यादें हैं, धुंधली सी.. जैसे कोई भुला हुआ गीत, जिसके सुर तो याद हों, मगर बोल याद नहीं.. जैसे कोई भुला हुआ स्वर, जिसकी आवाज याद हैं, मगर बोलने वाले का चेहरा याद नहीं.. जैसे कोई प्रमेय, जिसका हल तो याद हैं, मगर प्रश्न नहीं.. जैसे कोई खंडहर, जिसके दरख़्त तो याद हैं, मगर उसका पता याद नहीं... यादें जो आती हैं, खो जाती हैं... अधूरी यादें.. यादों को कभी अधूरा नहीं रहना चाहिए, तुम्हारे प्यार की तरह.. उसका भी एक अंत होना चाहिए, मेरे प्यार की तरह..
पिछले कुछ महीनों में फेसबुक पर अलग-अलग मूड में लिखे गए अपडेट्स का लेखा-जोखा.