Friday, September 17, 2010

एक अधूरी कविता

उस दिन जब तूने छुवा थाअधरों से और किये थेकुछ गुमनाम से वादे..अनकहे से वादे..चुपचाप से वादे..कुछ वादियाँ सी घिर आयी थी तब,जिसकी धुंध में हम गुम हुए से थे..कुछ समय कि हमारी चुप्पी,आदिकाल का सन्नाटा..अपनी तर्जनी सेमुझ पर कुछ आकार बनाती सी,फिर हवाओं मेंउस आकार का घुलता जाना..किसी धुवें की तरह..अभी मैं भी...

Sunday, September 12, 2010

बेवजह

धीरे-धीरे हमारे चेहरे भी एकाकार होने लगे थे.. जैसे मेरा अस्तित्व तुममे या तुम्हारा अस्तित्व मुझमे डाल्यूट होता जा रहा हो किसी केमिकल की तरह.. धीरे-धीरे हमारे द्वारा प्रयोग में लाये जाने वाले शब्द भी सिमट कर एक होते जा रहे...

Tuesday, September 07, 2010

मेरे घर के बच्चों को डराने के नायाब नुस्खे

बात अधिक पुरानी नहीं है.. इसकी शुरुवात सन 2004 के कुछ साल बाद हुई, जब दीदी कि बड़ी बिटिया को यह समझ आने लगा कि डरना क्या होता है.. फिर शुरू हुई यह दास्तान.. मेरी आवाज गूंजने लगी घर में, "अरे, मेरा मोटा वाला डंडा और रस्सी...