उस दिन जब तूने छुवा थाअधरों से और किये थेकुछ गुमनाम से वादे..अनकहे से वादे..चुपचाप से वादे..कुछ वादियाँ सी घिर आयी थी तब,जिसकी धुंध में हम गुम हुए से थे..कुछ समय कि हमारी चुप्पी,आदिकाल का सन्नाटा..अपनी तर्जनी सेमुझ पर कुछ आकार बनाती सी,फिर हवाओं मेंउस आकार का घुलता जाना..किसी धुवें की तरह..अभी मैं भी...