गतांक से आगे :
मूर्छा खाकर गिरती, फिर उठती और भागती । अपनी दोनों बेटियों पर माँ हंसी--इसी के बले तुम लोग इतना गुमान करती थी रे ! देख, सात पुश्त के दुश्मनों पर जो गुन छोडना मन है, उसे-ए-ए छोड़ती हूँ--कुल्हड़िया आँधी, पहड़िया पानी !
कुल्हड़िया आँधी के साथ एक सहस्त्र कुल्हाड़ेवाले दानव रहते हैं, और पहड़िया पानी तो पहाड़ को भी डुबा दे ।
अब देखिये कि कुल्हड़िया आँधी और पहड़िया पानी ने मिलकर कैसा परलय मचाया है : ह-ह-ह-र-र-र-र...! गुड़गुडुम्-आँ-सि-ई-ई-ई-आँ-गर-गर-गुडुम !
गाँव-घर, गाछ-बिरिच्छ, घर-दरवाजा कतरती कुल्हड़िया आँधी जब गर्जना करने लगी तो पातालपुरी मे भगवान बराह भी घबरा गये । पहड़िया पानी सात समुन्दर का पानी लेकर एकदम जलामय करता दौड़ा ।...तब तक कोसी मैया हाँफने लगी, हाथ-भर जीभ बाहर निकालकर । अन्दाज लगाकर देखा, नैहर के करीब पहूँच गई है । और पचास कोस ! भरोसा हुआ। सौ कोसों तक फैले हुये हैं भैया के सगे-सम्बन्धी, भाई-बन्धु । मैया ने पुकारा, अपने बाबा का नाम लेकर, वंश का नाम लेकर, ममेरे-फुफेरे भाईयों को--भैया रे-ए-ए, बहिनी की इजतिया तोहरे हाथ !
फिर एक-एक भौजाई का नाम लेकर, अनुनय करके रोयी--"भउजी-ई-ई, भैया के भेजि तनि दे-ए !"
कुल्हड़िया आँधी, पहड़िया पानी अब करीब है । एकदम करीब ! अब? अब क्या हो?...कोसी की पुकार पर एक मुनियाँ भी न बोली, एक सीकी भी न डोली । कहीं से कोई-ई जवाब नहीं । तब कोसी मैया गला फाड़कर चिल्लाने लगी--अरे ! कोई है तो आओ रे ! कोई एक दीप जला दो कहीं !
कोई एक दीप जला दे, एक क्षण के लिए भी, तो फिर कोसी मैया से कौन जीत सकता है? कुल्हड़िया आँधी कोसी का आँचल पकड़ने ही वाली थी...कि उधर एक दीप टिमटिमा उठा ! कोसी मैया की सबसे छोटी सौतेली बहन दुलारीदाय, बरदिया घाट पर, आँचल में एक दीप लेकर आ खड़ी हुई । बस, मैया को सहारा मिला और तब उसने उलटकर अपना आखिरी गुन मारा ।
पातालपुरी में बराह भगवान डोले और धरती ऊंची हो गयी ।
जारी...
प्रथम भाग
द्वितीय भाग
मूर्छा खाकर गिरती, फिर उठती और भागती । अपनी दोनों बेटियों पर माँ हंसी--इसी के बले तुम लोग इतना गुमान करती थी रे ! देख, सात पुश्त के दुश्मनों पर जो गुन छोडना मन है, उसे-ए-ए छोड़ती हूँ--कुल्हड़िया आँधी, पहड़िया पानी !
कुल्हड़िया आँधी के साथ एक सहस्त्र कुल्हाड़ेवाले दानव रहते हैं, और पहड़िया पानी तो पहाड़ को भी डुबा दे ।
अब देखिये कि कुल्हड़िया आँधी और पहड़िया पानी ने मिलकर कैसा परलय मचाया है : ह-ह-ह-र-र-र-र...! गुड़गुडुम्-आँ-सि-ई-ई-ई-आँ-गर-गर-गुडुम !
गाँव-घर, गाछ-बिरिच्छ, घर-दरवाजा कतरती कुल्हड़िया आँधी जब गर्जना करने लगी तो पातालपुरी मे भगवान बराह भी घबरा गये । पहड़िया पानी सात समुन्दर का पानी लेकर एकदम जलामय करता दौड़ा ।...तब तक कोसी मैया हाँफने लगी, हाथ-भर जीभ बाहर निकालकर । अन्दाज लगाकर देखा, नैहर के करीब पहूँच गई है । और पचास कोस ! भरोसा हुआ। सौ कोसों तक फैले हुये हैं भैया के सगे-सम्बन्धी, भाई-बन्धु । मैया ने पुकारा, अपने बाबा का नाम लेकर, वंश का नाम लेकर, ममेरे-फुफेरे भाईयों को--भैया रे-ए-ए, बहिनी की इजतिया तोहरे हाथ !
फिर एक-एक भौजाई का नाम लेकर, अनुनय करके रोयी--"भउजी-ई-ई, भैया के भेजि तनि दे-ए !"
कुल्हड़िया आँधी, पहड़िया पानी अब करीब है । एकदम करीब ! अब? अब क्या हो?...कोसी की पुकार पर एक मुनियाँ भी न बोली, एक सीकी भी न डोली । कहीं से कोई-ई जवाब नहीं । तब कोसी मैया गला फाड़कर चिल्लाने लगी--अरे ! कोई है तो आओ रे ! कोई एक दीप जला दो कहीं !
कोई एक दीप जला दे, एक क्षण के लिए भी, तो फिर कोसी मैया से कौन जीत सकता है? कुल्हड़िया आँधी कोसी का आँचल पकड़ने ही वाली थी...कि उधर एक दीप टिमटिमा उठा ! कोसी मैया की सबसे छोटी सौतेली बहन दुलारीदाय, बरदिया घाट पर, आँचल में एक दीप लेकर आ खड़ी हुई । बस, मैया को सहारा मिला और तब उसने उलटकर अपना आखिरी गुन मारा ।
पातालपुरी में बराह भगवान डोले और धरती ऊंची हो गयी ।
जारी...
प्रथम भाग
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