आजकल जो हिंदी ब्लौग का माहौल बना हुआ है उसमें मेरे हिसाब से यही बात सही बैठती है.. तटस्थ ही रहें और अपनी ढफली बजाते रहने में ही भलाई है.. दो लोगों की अगर आपस में ठनी हुई है तो उसमें अपनी टांग ना घुसाने में ही मुझे भलाई दिखती है..
मैं यह सब बातें इसलिये लिख रहा हूं क्योंकि यहां जिन लोगों में ठनी हुई सी लगती है, उसमें से अधिकांश लोग मेरे बेहद प्रिय हैं.. अगर उनकी बातों में मैं घुसने लगा तो ना इधर का रहूंगा और ना ही उधर का.. दोनों ही तरफ के लोग मुझे दुसरे पक्ष का समझेंगे.. और इससे मेरे अपने निजी रिश्ते भी खराब होंगे..
उदाहरण के रूप में, पाबला जी मेरे बहुत प्रिय हैं और मैं उन्हें अंकल कह कर बुलाता हूं.. उनके तरफ से भी मुझे उतना ही प्यार मिलता है.. दूसरी तरफ अनूप जी से भी वैसे ही संबंध हैं.. और उनसे भी उतना ही प्यार मिलता है.. कुश से एक अलग ही यारों जैसा संबंध है, साथ ही समीर जी और ताऊ जी से भी.. रचना जी से अक्सर मतभेद रहते हुये भी मुझे वह पसंद हैं कारण उनकी बेबाकी, दूसरी तरफ अरविंद जी को पढ़ना भी उतना ही सुहाता है.. कुछ पुराने किस्सों को भी उधेरा जाये तो दिनेश जी और पंगेबाज अरूण जी से भी अच्छे संबंध हैं.. यह तो बस कुछ नाम ही गिनाया हूं, और भी कई नाम हैं यहां..
मुझे अभी तक यह समझ में नहीं आया है कि अगर विचारों में मतभेद हो जाये तो लोग पूर्वाग्रह क्यों पाल लेते हैं? विचारों में असहमतियां तो हमेशा ही बनी रहेगी, क्या दुनिया में कोई है जिससे हमारे विचार शत-प्रतिशत मेल खाते हों? कोई नहीं मिलेगा, चाहे ढ़िबरी लेकर ढ़ूंढ़ें या ट्यूबलाईट जला कर..
मैं यह सब बातें इसलिये लिख रहा हूं क्योंकि यहां जिन लोगों में ठनी हुई सी लगती है, उसमें से अधिकांश लोग मेरे बेहद प्रिय हैं.. अगर उनकी बातों में मैं घुसने लगा तो ना इधर का रहूंगा और ना ही उधर का.. दोनों ही तरफ के लोग मुझे दुसरे पक्ष का समझेंगे.. और इससे मेरे अपने निजी रिश्ते भी खराब होंगे..
उदाहरण के रूप में, पाबला जी मेरे बहुत प्रिय हैं और मैं उन्हें अंकल कह कर बुलाता हूं.. उनके तरफ से भी मुझे उतना ही प्यार मिलता है.. दूसरी तरफ अनूप जी से भी वैसे ही संबंध हैं.. और उनसे भी उतना ही प्यार मिलता है.. कुश से एक अलग ही यारों जैसा संबंध है, साथ ही समीर जी और ताऊ जी से भी.. रचना जी से अक्सर मतभेद रहते हुये भी मुझे वह पसंद हैं कारण उनकी बेबाकी, दूसरी तरफ अरविंद जी को पढ़ना भी उतना ही सुहाता है.. कुछ पुराने किस्सों को भी उधेरा जाये तो दिनेश जी और पंगेबाज अरूण जी से भी अच्छे संबंध हैं.. यह तो बस कुछ नाम ही गिनाया हूं, और भी कई नाम हैं यहां..
मुझे अभी तक यह समझ में नहीं आया है कि अगर विचारों में मतभेद हो जाये तो लोग पूर्वाग्रह क्यों पाल लेते हैं? विचारों में असहमतियां तो हमेशा ही बनी रहेगी, क्या दुनिया में कोई है जिससे हमारे विचार शत-प्रतिशत मेल खाते हों? कोई नहीं मिलेगा, चाहे ढ़िबरी लेकर ढ़ूंढ़ें या ट्यूबलाईट जला कर..