Tuesday, August 11, 2009

बिहारी बाबू कहिन - भैया हम पतरकार बन गये

घर जाने पर कई नये पुराने मित्रों और जान-पहचान के लोगों से मुलाकात हो जाया करती है.. उन लोगों से मिलना अच्छा लगता है और जहां पांच मिनट का काम हो वहां आधे घंटे बतियाने में ही निकल जाते हैं.. कई नये-पुराने, अच्छे-बुरे अनुभव भी होते हैं.. तो वहीं कुछ ऐसे अनुभव भी होते हैं जो इतना मजेदार होता है कि बस दोस्तों से उसे बांचने का मन भी करता है.. मैं उन लोगों को बिहारी बाबू कह कर बुला रहा हूं, क्योंकि उनकी बोलचाल में ठेठ बिहारिपन होता है.. और चूंकि मैं बिहार का ही हूं सो मुझे उनमें एक अलग ही अपनापन नजर आता है, नहीं तो बाहर रहते हुये ऐसा लगता है जैसे मैं अपने चेहरे पर एक मुखौटा ओढ़ कर घूम रहा हूं.. खैर चलिये समय-समय पर ऐसे बिहारी बाबूओं से आपको मैं मिलवाता रहूंगा..

अभी तो फिलहाल पढ़ते हैं इस बिहारी बाबू के संग हुये बातचीत का ब्योरा..

जब हम उससे पहली बार मिले थे तब ऊ 15-16 साल का लईका था, हमसे 5-6 साल छोटा.. साथे में किरकेट खेलते थे.. हरमेशा ऊ एक-दू ठो कट्टा लेकर मैदान पर लेकर आता था और दिखाता था, "भईया! ई देखिये नयका कट्टा, काल्हे खरीदे थे(या फिर अपने दोस्तवा से मांग कर ला रहे हैं).. हम भी देखते थे, लेकिन कुछो बोलते नहीं थे.. भले ही ऊ लंपट किसम का लईका था, लेकिन हमको मानता बहुत था.. फिर हमको पढ़ाई-सढ़ाई के लिये पटना से बाहर जाना पड़ गया.. फिर पांन-छौ महिना में एक-दू बार घर आना-जाना सुरू हो गया.. बीच में कईहो मिल जाता था.. हम उससे पूछते थे,

"क्या बाबू! कौंची कर रहा है आज-कल?"

हमरा बात सुन कर ऊ दांत चियार कर बोलता, "भईया, इस बार फेनो आई.एस.सी. में फेल हो गये.."

हर बार वजह अलग-अलग बताता.. जईसे, "ओन्ने पटेल नगर में मनोज सर के हियां जे लईकियन सब पढ़े जाती है, उसके चक्कर में फेल हो गये.." तो कभी, "होईजे मस्त मार-पीट हुआ अऊर अबकी पिटा गये.. सो ठीक से पढ़ नहीं पाये.."

इस बार घर से जईसने हम बाहर निकले हमको ऊ साईकिल पर जाते दिख गया.. दूरे से हैंडल छोड़कर और दांत चियार कर बोला, "परनाम भैया.. कब आये?"

"बस बिहान(कल) सबेरे-सबेरे आये हैं.."

"आप आते हैं तो दर्सन भी नहीं देते हैं.."

"अरे भाई, सिकायत काहे करता है? देखो, कल आये अऊर आज दिख गये तुमको.. अऊर बताओ, आई.एस.सी. पास किया की नहीं?"

"पास कर गये भईया.. सेकेन्ड डिविजन से.."

"त का कर रहा है आजकल?"

"बी.ए. पार्ट भन में हैं.. और नौकरी भी मिल गया है.."

"बाह! कौंची में काम मिला?"

"भईया, पतरकार बन गये हैं.." अबकी इतना बड़का दांत चियारा कि ऊसका बत्तिसों दांत दिखने लगा.. "पूछियेगा नहीं कि कौन पेपर में?"

"नाह.. हम नहीं पूछेंगे.. बस जहां काम कर रहे हो वहीं बढ़िया से काम करना.."

"काहे नहीं पूछियेगा?"

"पता चल जायेगा कि तुम किस अखबार में काम कर रहे हो तो हम ऊ अखबार पढ़ना छोड़ देंगे.." मजाक में मैंने असली बात उसे ऐसे कही जिससे उसे बुरा ना लगे..

"आप त मजाक उड़ा दिये मेरा.." बोला फिर साईकिल का हैंडल सीधा करते हुये बोला, "अभी थोड़ा जल्दी में हैं.. शाम में पी.के. के हियां आईयेगा ना, अच्छा से बतियायेंगे.." बोलकर चला गया.. (मेरे घर के पास एक होटल है पी.के.होटल)..

इस घटना के सभी नाम नकली और पात्र असली हैं.. :)

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15 comments:

  1. पत्रकार को बधाई.. गजब आदमी है..

    छुट्टी खत्म हो गई क्या?

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  2. ये पत्रकार बनने का शौक तो हम भी पूरा कर चुके हैं।

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  3. भाई पुरानी यादों मे बसे लोग जब काफ़ी समय बाद मिलते हैं तब एक आनंद तो लग ही आता है. आपके पत्रकार मित्र की कथा बहुत मीठी लगी हमका तो.

    रामराम.

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  4. मस्त किस्सागोही करते हो!!

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  5. खूब मजे लिए हो बबुआ :-)

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  6. angulimal wali kahani kab batai jayegi? aur photowa kahe nhi bheje ab tak bataiye..kal mil jani chahiye.

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  7. एक बार फिर साबित हो गया की ब्लोग्गर हर जगह ब्लोग्गेरे रहता है...का प्रशांत भाई ..गए थे इत्ता दिन बाद पटना ...बढ़िया लिए सबका खबर ..दोस्तवा सब के बाद ..कुछ पटना पर भी हो जाए....सुने हैं नीतिश बाबु के राज में बडका तो डेवलपमेंट हो गया है...

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  8. आपन भासा में पतरकार से मिला दिनी...बड़ा निक लागता ..!!

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  9. मस्त रही पतरकार से मुलाकात,सही है आजकल ऐसे ही चल रहा है।

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  10. @ लवली - फोटुवा नहीं भेज पाये रे बाबू.. उसको पहिले स्कैन करवाना परेगा तभिये भेज पायेंगे.. कल पक्का से भेज देंगे.. :)

    @ अजय भैया - पटनवो के कहानी सुनायेंगे.. ऊ हे बिहारी बाबू के मुंह से.. अभी त तनी भकुवाये हुये हैं, थोड़ा चैन से बैठे दिजिये.. एक एक करके सब आयेगा.. :)

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  11. @ रंजन भैया - अभि छुट्टिया खतम कहां हुआ है.. मूड त अभियो वैसने बनल है.. :)

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  12. आपकी मुलाकात्वा तो एकदम जोरदार है भैया.............ऐसन और भी बातें बतलावो न .... और कौन कौन से मुलाकात करे हो..

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  13. बुझ गए... हमरे जमात के है हेन्ने सब.... त जोन-जौन भासा में तू बोलबस ना... तौने भासा में बोलम... हमहू पतरकार बनने चले है... आ... त ... देखिये का होता है.... हाँ-हाँ बिहारे से हैं... हई मुह का बाए तक रहे हैं... धुत् बुरबक !

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  14. अरे वाह! एक अखबार बांटने वाले को मैं भी जानता हूं। हम जब पत्रकार सम्मेलन बुलाते थे तो वह भी आमंत्रित होता था - दो पन्ने के अखबार "चिनगारी" को रिप्रजेण्ट करता! :)

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