कुछ दिन पहले की बात है, बातों ही बातों में उसने मुझे कहा था, "तुम्हारे बाल बहुत सुंदर हैं.. इसे कभी छोटा मत करना.. मैं तुमसे जब भी मिलूंगा तब तुम्हें खुले बालों के साथ देखना पसंद करूंगा.." मैंने उसकी बात बखूबी रखी, और आज खुले बालों में ही आयी थी.. अब चूंकी उसने मुझे खुले बालों में देख ही लिया था सो...
Wednesday, February 25, 2009
Tuesday, February 24, 2009
एक लड़की के डायरी के पन्ने(पहली मुलाकात - भाग दो)
उन पांच सेकेण्ड में मैंने उसकी कई बातों पर गौर किया.. गर्मजोशी से हाथ मिलाना, हाथों पर सफेद रंग का बैंड, कार्गो जींस, नाईकी के जूते, टी-शर्ट, हाथों में कोई घड़ी नहीं, और भी ना जाने क्या-क्या.. इस बीच मैं उसे अपनी बातों में उलझाये रखी.. यहां का काम खत्म हुआ या नहीं? अभी तक की यात्रा कैसी रही? मुंबई वापस...
Sunday, February 22, 2009
एक लड़की के डायरी के पन्ने(पहली मुलाकात - भाग एक)
बस 200 कदम की दूरी से मैं उस अजनबी को देख रही थी, जो इस मुलाकात के बाद मेरे लिये अजनबी नहीं रहा.. जाने क्यों मैं उसे अजनबी का नाम दे रही हूं, जबकी मैं उसे अपने किसी भी अन्य मित्र से ज्यादा जानती हूं.. मेरे उन मित्रों से भी ज्यादा जिन्हें मैं बरसों से जानती हूं और इसे बस आठ महिनों से ही..उसे देखने से...
Sunday, February 15, 2009
लईका के शहर के लागल बा हवा
पिछले साप्ताहांत की बात है.. मैं अपने मित्रों के साथ बैठकर बातें कर रहे थे.. बातें होते-होते जाने कैसे शादियों पर बात होने लगी.. शायद इसका कारण यह रहा हो कि आजकल हर दूसरे-तीसरे दिन कहीं ना कहीं से किसी ना किसी कि शादी की खबर सुनने को मिल रही है.. प्रसंग आगे चलने पर दहेज पर भी बातें हुई.. मेरे एक मित्र,...
Saturday, February 14, 2009
तुम मुझसे इतने दिन गुस्सा कैसे रह सकती हो?
- इस खेल में बस नौ खाने ही क्यों होते हैं?- मुझे क्या पता?- फिर किसे पता होगा?- सब समझती हूं, मुझे बातों में उलझा कर इस बाजी को जीतना चाहते हो..- जहां खाने सिर्फ नौ हों वहां एक बार बाजी निकल जाने पर जीतने की संभावना वैसे भी कम ही हो जाती है.. तुम तो इसे ऐसे भी जीत रही हो..- लिखना ही है तो कॉपी पर लिखो...
Friday, February 13, 2009
एक के घर में चोरी हुआ, सियार बोले हुवां-हुवां. मौज लो दोस्तों, मौज
कभी कभी लगता है जैसे यह हिंदी ब्लौग जगत भी किसी सियार के दल से कम नहीं है.. एक ने किया हुवां और चहुं ओर से आवाज आयी.. हुवां... हुवां...एक किस्सा कालेज का याद आता है.. होस्टल का जमाना था.. पूरी रात गप्पों पर ही बीत जाया करती थी.. उन्हीं गप्पों में अगर किसी ने अपना किस्सा सुनाना शुरू किया कि "कुछ साल...
Thursday, February 12, 2009
Tuesday, February 10, 2009
वेलेंटाईन डे से पहले ही दो घूसे
पिछले साल की बात है.. दिन शायद 12 या 13 फरवरी रहा होगा.. दोपहर के खाने के समय मेरे साथ काम करने वाली मेरी एक मित्र ने बातों ही बातों में ऐसे ही मुझसे पूछ लिया, "वॉट आर यू डूईंग ऑन 14 फेब?""नथिंग.." मेरा उत्तर था.."यू आर नॉट गोईंग ऑन डेट?""नो.." इतना कहने के बाद मैंने भी उसका सवाल उसी से पूछ लिया, "वॉट...
Monday, February 09, 2009
ताऊ की जर्मनी यात्रा
ये बात तब की है जब ताऊ गोटू सोनार का सारा माल उड़ा कर कहीं छिपने की जगह ढ़ूंढ़ रहा था.. तो उसके दिमाग में यह ख्याल आया कि क्यों ना जर्मनी चला जाऊं.. अपना राज भटिया तो है ही वहां, सो मौज से दिन गुजरेंगे.. सो बांधा उन्होंने बोरिया-बिस्तर, खबर दी राज भाटिया जी को कि मैं जर्मनी आ रहा हूं और पहूंच गये जर्मनी.....
Sunday, February 08, 2009
Friday, February 06, 2009
अरे! मैं लेखक कब से बन गया?
मेरे कल के पोस्ट(हमें नहीं पढ़ना जी आपका ब्लौग, कोई जबरदस्ती है क्या?) पर सबसे अंत में रोहित त्रिपाठी जी का कमेन्ट आया, जिसका उत्तर पहले मैंने मेल में लिखा.. मगर बाद में लगा कि इसे सार्वजनिक करने में भी कोई बुराई नहीं तो मैं इसे पोस्ट कर रहा हूँ..उन्होंने ने लिखा था -प्रशान्त सर, लोग कुछ समझ कर ही तो...
Wednesday, February 04, 2009
हमें नहीं पढ़ना जी आपका ब्लौग, कोई जबरदस्ती है क्या?
हर दिन कम से कम 6-7 मेल जरूर मिलता है ऐसा जिसका उद्देश्य कुछ ऐसा ही होता है कि मैंने अभी-अभी एक पोस्ट लिखा है.. आप जरूर पढ़ें और अपनी राय दें.. कुछ मेल तो इस तरीके से लिखा होता है जैसे हम तो मरे जा रहे हैं उनका पोस्ट पढ़ने के लिये.. ऐसे में अगर किसी को चिढ़ हो ऐसे मेल से तो मानव मनोविज्ञान तो यही कहता...
Monday, February 02, 2009
और किताबों से 1.5 घंटे की दूरी बढ़ गयी
मेरे लिये सबसे अच्छा समय किताबों को पढ़ने का बस में सफर करते समय होता था.. हर दिन सुबह में 1 घंटे और रात में लगभग 30 से 45 मिनट.. कुल मिलाकर 1.5 घंटे हर रोज.. जबसे मैंने गाड़ी खरीदने का सोचा था तभी से मेरे मन में यह बात थी की बाईक आने के बाद मेरा यह समय छीनने वाला है.. क्योंकि घर पहूंच कर और कुछ करने...