Monday, December 08, 2008

जनता का ध्यान बटाने कि एक और कोशिश

नोट - मैंने यह पोस्ट तेल के दाम घटाये जाने से एक दिन पहले लिखा था, जिसे समयाभाव में समय पर पोस्ट नहीं कर सका था..

सबसे पहले मैं बता देना चाहता हूं कि मैं ना तो कोई आर्थिक विशेशज्ञ हूं और ना ही अर्थ व्यवस्था का बहुत बड़ा जानकार.. मैं यह लेख एक आम भारतीय नागरिक कि हैसियत से लिख रहा हूं.. जो वह हर दिन देखता समझता है और जो कुछ खबर उसे प्रिंट मिडिया या इलेक्ट्रोनिक मिडिया द्वारा पहुंचती है, उसमें अपनी समझ फेंट कर जो कुछ समझ सकता है वही मैं भी समझ रहा हूं और लिख रहा हूं..

आज सुबह यह खबर गूगल समाचार पर मैंने पढ़ी जिसका स्नैप शॉट मैं यहां नीचे लगा रहा हूं.. उसे साफ-साफ पढ़ने के लिये उस तस्वीर पर क्लिक करें..

कुछ बातें पहले मैं कहना चाहूंगा -
1. मुंबई पर अब तक का सबसे बड़ा आतंकवादी हमला और पूरे भारत का अचानक नींद से जागना..
2. भारत के गृह मंत्री, महाराष्ट्र के गृह मंत्री और महाराष्ट्र के मुख्य मंत्री को बली चढ़ा देना..
3. फिर अचानक से आतंकवाद एक समस्या ना बन कर नेता एक मुख्य समस्या बन जाना..
4. सारे पार्टियों के कुछ नेताओं द्वारा गैर जिम्मेदाराना बयानबाजी.. एक नेता का यहां तक कहना कि जो उन नेताओं का विरोध कर रहे हैं वे भी अलगाववादी ही हैं..
5. और आज अचानक तेल की कीमत घटाने कि बात करना जबकी कल तक वही सरकार तेल कंपनियों के पैरोकार बने हुये थे और कहते फिर रहे थे कि किसी भी हालत में तेल कि कीमत नहीं घटायेंगे..


अब जहां तक मेरी समझ है ये सब करके कांग्रेस सरकार एक तीर से दो निशाने साधने कि तैयारी कर रही है.. पहला यह कि जनता का ध्यान मुंबई के बाद फैले आक्रोश से खिंचने कि कोशिश और दूसरा अगले चुनाव तक के लिये अपना डगर आसान बनाना.. वैसे भी जनता याददाश्त बहुत कमजोर होती है, एक बार तेल का दाम घटने भर से ही सभी खुश होकर नाचने लगेंगे और उनका ध्यान बट जायेगा.. मैं तो कहता हूं कि किसी भी तरह हाथ-पैर जोड़कर इंगलैंड को क्रिकेट मैच के लिये बुला लिजिये और उनको बुरी टरह हारने के लिये भी मना लिजिये, हमारी जनता ऐसे ही सब भूल जायेगी..

अभी ज्यादा दिन नहीं बीते जब तेल का दाम 62 डॉलर प्रति बैरल था और भारत सरकार का कहना था कि जब यह 60 से नीचे आ जायेगी तब दाम घटाने के बारे में सोचा जा सकता है.. उस समय अंतरराष्ट्रीय बाजार में यह अनुमान लगाया जा रहा था कि यह इससे नीचे नहीं जायेगा.. मगर कांग्रेस सरकार का दुर्भाग्य, यह उससे बहुत नीचे चला गया फिर भी सरकार यही रटा-रटाया जवाब देती रही कि अभी तेल कंपनियों का घाटा पूरा नहीं हुआ है.. मेरा प्रश्न है कि अचानक मुंबई घटना के बाद यह घाटा कैसे पूरा हो गया?

चलिये अब बात करते हैं कि भारत कि जनता बस 200 लोगों के मरने पर ही क्यों जागी? इससे पहले भी तो कई आतंकवादी घटनाऐं इस देश में हुई हैं, मगर कभी पूरा देश इस तरह क्यों नहीं जागा? ये फिल्मी सितारे और बड़ी-बड़ी हस्तियां क्यों रैलियों में शामिल होकर अपना रोष प्रकट कर रहीं हैं? अब करें भी क्या, पहली बार उनको यह लगने लगा कि अब उनके जैसी हस्तियां भी सुरक्षित नहीं हैं.. अब बड़ी हस्तियां किसी रैली में शामिल हो जाये तो लोगों की भीड़ तो यूं ही उमर परेगी..

हमें इसलिये लग रहा है कि यह देश जाग गया है क्योंकि अब वे लोग भी अपना रोष प्रकट कर रहे हैं जो इससे पहले चुपचाप तमाशा देखते थे और जिनकी बातों को मिडिया हाऊस भी तवज्जो देता है.. और जब मिडिया उनकी बात हम तक पहूंचायेगी तो हमें तो लगेगा ही कि शायद सारा देश जाग गया है.. मैं अपने आस-पास के लोगों को यहां देख रहा हूं और यही पाया है कि यहां के लोग हिंदी चैनल नहीं देखते हैं सो उन्हें कुछ भी नहीं पता कि देश जागा हुआ है या सोया हुआ है.. उनके लिये यह आतंकी घटना भी किसी अन्य घटना की तरह ही है जो हमेशा कहीं ना कहीं घटती है..

15 comments:

  1. दाम तो घट्ने ही थे.. चुनाव जो आने है..

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  2. बढिया व सामयिक पोस्ट है।
    सच तो यह है कि राजनिति का खेल समझना बहुत मुश्किल होता है।

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  3. राजनेताओं को क्या ब्लेम करना। जनता जिसके योग्य होगी, वह उसे मिलेगा।

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  4. भाई इस राजनीति को तो कोई राजनेता भी नही समझ पाया है ! आज के चुनाव नतीजो ने ही देखो ना सब गुड गोबर कर दिया है !

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  5. जनता का ध्यान हटाने के लिए राजनीति में बहुत कुछ किया जाता है। लेकिन बहुत से मौके ऐसे होते हैं जब केवल लगता है कि ध्यान हटाने के लिए ऐसा किया जा रहा है। दोनों में फर्क करना बहुत कठिन है।

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  6. ज्ञान जी से सहमत हूँ . कोई नहीं जागा है . सब हल्ल हो रहा है बस्स .

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  7. देश कितने दिनों तक जागा रहेगा ये मूल प्रशन है बाकि मुझे लगता है की युवाओ को शायद अब राजनीति में दखल देना चाहिए .वे चाहे नौकरी किसी भी जगह करते हो उन्हें उस एरिया में वोटिंग करनी चाहिए

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  8. क्या पता कि सच में जागा है कि नहीं..कहीं करवट बदल कर फिर से सोने के तैयारी तो नहीं.

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  9. dr. anuraag ki baat se sahmat hun. sawaal ye hai ki desh kitne dino tak jaga rahega. election me vote dene ki baat ko maximum log lightly lete hain, jabki yahi ek tarika hai jismein ham apni power ka istemaal kar sakte hain.
    lekh achha likha hai pd.

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  10. jaagne ke baad so jaana janta ki aadat hai. aur janta hi to desh hai. agar janta hi os jayegi to desh kahan se jaagegaa? sach bat yah hai ki raajnetao ko kuchh bhi dosh nahi denaa chaahiye. kyoki un netaao ko to ham hi chunate hai. jaise netao ko hamne chuna, vaise hi pratinidhi hamko mil gaye. isme netao ka dosh kahan? agar desh ko jagrat karana hi hai to sabse pahle hamne jaaganaa hoga . jaagne ka matlab jaati, dharm, vyaktigat swaarth se upar uthakar desh ko sarvochch sthan denaa. kya ham swam ko pariwartit karne ko taiyar hai?

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  11. बिल्कुल सही कहा प्रशांत भाई. यह क्षणिक राहत सिर्फ़ जनता का सरकार से गुस्सा डाईवेर्ट करने का एक कदम प्रतीत होती है, न की जनता को कोई चिरकालीन राहत देने का प्रयास.
    अभी देखियेगा, अगले कई कदम उठेंगे. जनता ने फ़िर उन्ही लकीर पीटने वालों को सत्ता सौंप दी है. अब चाहे यह एंटी-इनकम्बेंसी हो, या जस्ट फॉर अ चेंज. हाँ इससे कांग्रेस हाईकमान से दबाव जरूर कम हुआ है. अब शायद जनमत को अपनी तरफ़ देख ये लोकसभा चुनावों से पहले कोई ग्लैमरस स्टंट ( पाक से प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्ष युद्ध ) करने से पहले पुनर्विचार करें.
    लेकिन जनता को भी मूर्ख ठहराना उचित न होगा. बड़बोले भाजपा नेताओं को उनकी औकात बताने वाली जनता इन्हें भी गर्दनिया दे सकती है.

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  12. सब घपलेबाज़ी है
    रातों रात मंत्री जी के घर नोटों के बोरे पहुंच गए होंगे तेल वितरकों की तरफ से। इसीलिए सही अनुपात में कीमतें नहीं घटी

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  13. तेल का कोई भरोसा नहीं है आज ४२ रूपये प्रति बैरल है तो अगले महीने ६५-७० भी आ सकता है । माना कि अभी १० रूपये प्रति लीटर घटाया गया को क्या अगले महीने ३ रूपये बढाने पर लोग राजी होंगे ।

    वैसे हमारा बुरा हाल है हंस भी रहे हैं और रो भी रहे हैं । हंस इसलिये रहे हैं कि कल ही $१.४९ (~७३ रूपये) प्रति गैलन (३.७८ लीटर) के हिसाब से पेट्रोल खरीदा । रोने के बारे में इसलिये सोच रहे हैं कि लोग कह रहे हैं कि मंदी चीन में भी पसर गयी तो २५-३० डालर प्रति बैरल भी तेल जा सकता है जिसका मतलब तेल की रिसर्च फ़ंडिग में कटौती और नौकरियों का अकाल ।

    खुदा खैर करे...

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  14. मेरा मतलब था कि अगर आज १० रूपये घटाया जाता तो क्या अगले महीने ३ रूपये बढाना उचित होता । इससे बेहतर है कि ५ रूपये घटाया जाये ।

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