Saturday, May 31, 2008

मेरी शिनाख्त कौन करेगा? (चेन्नई डायरी)

दो-तीन हफ्ते पहले की बात है.. रात के दो बज रहे थे.. मुझे नींद नहीं आ रही थी और मन भी कुछ बेचैन सा हो रहा था.. काफी देर तक मैं बाहर बालकनी में टहलता रहा.. फिर सोचा की टहलना ही है तो सामने सड़क है.. क्यों न वहीं टहल आया जाए?...

Thursday, May 29, 2008

हमारे पंगे भी तो देखो यारों

जब से पंगेबाज जी का चेलत्व ग्रहण किया हूं तब से कुछ बड़े-बड़े पंगे लेने लगा हूं.. एक उदाहरण यहां है.. अब पंगेबाज जी मुझे कितना नंबर देते हैं देखिये.. :)कुछ दिनों पहले की बात है, मेरी पीठ में बहुत तेज दर्द हो रहा था सो मैंने अपने बॉस को कहा कि आज मैं जल्दी घर जाना चाहता हूं.. अब हमारे बीच जो बातें हुई...

Wednesday, May 28, 2008

हिंदुस्तानी हिंदी क्या है?(दिल्ली डायरी 2)

कल के ज्ञान जी के चिट्ठे पर आयी ढ़ेर सारे कमेंट्स में से कई इसी बात पर ऐतराज कर रहे थे की इसमें अंग्रेजी के शब्द इतना अधिक क्यों है.. संयोग कुछ ऐसा कि मैं ये पोस्ट ज्ञान जी के पोस्ट के आने से पहले ही लिख चुका था मगर उसे समय कि कमी के चलते पोस्ट नहीं कर पाया था.. अगर मैं सही हूं तो आप सभी को ज्ञान जी...

Monday, May 26, 2008

'चे गुवेरा' से पहली मुलाकात(दिल्ली डायरी 1)

दिल्ली नया-नया पहूंचा था और अपने संघर्ष की भूमी तैयार करने की जुगत में लगा हुआ था.. उन दिनों जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में अपना पूरा समय कटता था.. दिन का खाना सतलज छात्रावास में गेस्ट के तौर पर खाता था और अगर कोई पूछ...

अमवा के पेड़वा पर झुलुआ झुलैया के याद आवेला

अमवा के पेड़वा पर झुलुआ झुलैया के याद आवेला,गरमी के दिनवा में नानी के गऊँआ के याद आवेला।।धूल भरल ट्रेफिक में गऊँआ के टमटम के याद आवेला,आफिस के खिचखिच में मस्ती भरल दिनवा के याद आवेला।दोस्तन के झूठिया देख माई से झूठिया बोलल याद आवेला,प्रदूषण भरल पनिया देख तलवा तलैया के याद आवेला।।गरमी के दिनवा में.......।।ब्रेड...

Sunday, May 25, 2008

खामोश सा अफ़साना, पानी से लिखा होता...

पहली बार जब हमारी बात हुई तब उसने एक गीत सुनना चाहा.. मैं टालता रहा.. काफी आग्रह करने के बाद मैंने उसे ये गीत सुनाया था.. उसने पहले इसे कभी नहीं सुना था और यही समझ बैठी थी की ये किसी गायक के द्वारा गाया हुआ गीत है.. एक दिन...

Saturday, May 24, 2008

ई है चेन्नई नगरिया तू देख बबुवा

"आप है चेन्नई के मरीना बीच पर.. ये है दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा बीच.." आई पी एल के आज के मैच शुरू होने के पहले एक ख़ूबसूरत टीवी एंकर कुछ ऐसा ही अंग्रेजी में बोल रही थी.. मैं बस अपना ब्लौग लिखने जा ही रहा था किसी और विषय पर...

Friday, May 23, 2008

देखो किसने क्या कहा?

मेरे जी-मेल चैट के लिस्ट में मेरे कुछ मित्रों ने मजेदार कैप्शन लगा रखे हैं.. आप भी इन्हें पढ़िये..WISHING u ALL a SAFE n...♫ "Dikhawe pe na jao, apni akal lagao. Programming hai waste, trust only copy-paste " ..........>>>>>Powered by ctrl C....>> Driven by ctrl V ....>>Amit...

Tuesday, May 20, 2008

वो बुल्गेरियन प्रोग्रामर

(आई टी में अपना कैरीयर बनाने की चाह रखने वालों के लिये) शिव कुमार, मेरी कंपनी में एक ऐसा नाम जो CEO तो नहीं है पर उनका रूतबा उससे कुछ कम नहीं हैं.. कुछ साल पहले वो CEO ही हुआ करते थे फिर स्वेच्छा से उन्होंने वो पद अपने भाई...

Friday, May 16, 2008

आंकड़ो का खेल कोई मुझे समझाये

ये क्या है? मुझे कुछ समझ में नहीं आया.. पिछले कई दिनों से मैं इसे देख रहा हूं, हर दूसरे-तीसरे सप्ताह इस तरह का कोई आंकड़ा मेरे पास आ रहा है.. एक आईपी एड्रेस जो कि मेरे ब्लौग को देख रहा है ना किसी और वेब पेज से आ रहा है, और...

Thursday, May 15, 2008

सपनों को जीने का एक अलग अंदाज

मुझे बचपन से ही टीवी जैसी चीजों से ज्यादा मतलब कभी नहीं रहा है.. क्रिकेट देखता था, कभी-कभार दिवानों की तरह भी.. मगर जब से घर छूटा तब से क्रिकेट देखना भी छूट गया.. ना वो दिवानापन, ना कोई दिलचस्पी.. बस निर्विकार भाव से कभी...

Tuesday, May 13, 2008

किस्सा-ए-मोबाईल

अमूमन आफिस के समय में मुझे कहीं से फोन नहीं आता है और अगर आता भी है तो किसी बैंक से कि सर आप हमारा क्रेडिट कार्ड ले लो या फिर किसी इंस्योरेंस कंपनी से.. कल मेरा मोबाईल घर में ही छूट गया था.. वैसे भी अच्छा ही हुआ, कभी-कभी...

Monday, May 05, 2008

आयेंगे हिंदी ब्लौगिंग के भी हसीन दिन

अपने ब्लौग के कारण ही उसे नौकरी मिली, और सबसे मजे की बात तो यह है की जहां उसे ज्वाईन करना था उसका पता उसने नहीं पूछा बल्कि उसने पूछा की क्या आप मुझे अपने आफिस का लोकेशन विकीमैपिया पर दिखा सकते हैं? एक ब्लौग जो खुद को कॉरपोरेट...

Sunday, May 04, 2008

एक दिन अचानक

एक दिन अचानक सब रूक सा जाता है..पंछियों का शोर मद्धिम सा पर जाता है..एक आदत जिसके छूट जाने का भय ख़त्म सा होता दिखता है जीने की आदत..एक ओस की बूँदकिसी आँखों से टपकतीसी दिखती है..एक दिन अचानक...राग-दरबारी का शोरसुनाई देना बंद सा हो जाता है..मानो बहरों की जमात मेंहम भी शामिल हो गए हैं..कुछ न कह पाने सेगूंगे...