क्या आपने कभी इतने पैसे देखें हैं?
तुम अरबों का हेर-फेर करने वाले हो राम जी, सवा लाख की लाटरी भेजो अपने भी नाम जी.. :D
क्या सोच रहे हैं, सूटकेश बाबा की याद तो नहीं आ रही है?? :P
नसीब अपना-अपना.. ;)
मुझे इसी दिवार में चुनवा दो.. प्लीज..:D
इशारों को अगर समझो, राज को राज रहने दो..
राज जो गर खुल गया तो, जाने महफिल में फिर क्या हो..
बुरे काम का बुरा नतिजा, क्यों भई चाचा? अरे हां भतिजा.. :D
मुझे ये चित्र इ-पत्र के द्वारा प्राप्त हुआ था जिसमें ये लिखा था की ये किसी ड्रग डीलर के पास से बरामद रकम है..
Sunday, March 30, 2008
Saturday, March 29, 2008
राज कामिक्स मेरा जूनून..
मैं मेरठ से दिल्ली 8 मार्च को 3 बजे दिन मे पहूंचा और रिगल, कनाट प्लेस के पास चला गया क्योंकि वहां मुझसे मिलने वंदना आ रही थी.. मैं वंदना के बारे में पहले भी लिख चुका हूं, आप उसके बारे में यहां पढ सकते हैं.. लगभग आधे घंटे बाद वो आई और उसके साथ मैं लगभग 4:45 तक रहा.. फिर वहां से हम दोनों ही पैदल ही टहलते हुये नई दिल्ली रेल्वे स्टेशन की तरफ बढ चले.. मेरा अपना अनुमान था की रीगल से स्टेशन तक जाने में लगभग 20 मिनट लगना चाहिये और मेरी ट्रेन 5:20 पर थी.. मतलब मेरे पास 15 मिनट बच रहा था अपनी ट्रेन पकड़ने के लिये..
मेरा अनुमान ट्रैफिक ने गलत साबित कर दिया और जब मैं स्टेशन पहूंचा तो 5:10 हो रहे थे.. अब मैंने वंदना को कहा की अब आप यहीं से वापस जाओ क्योंकि अगर मैं आपके लिये प्लेटफार्म टिकट लिया तो मुझे मेरी ट्रेन छोड़नी परेगी.. फिर उससे विदा लेकर प्लेटफार्म के अंदर घुस गया.. मैं पहाड़गंज के तरफ से अंदर गया था और पिछली बार जब मैंने संपूर्णक्रांती पकड़ी थी तो वह 9 या 10 नंबर से रवाना होती थी.. सो मुझे पता था की मेरे पास ज्यादा समय नहीं है.. इस बार तो वह 12 से जाने वाली थी.. मैं लगभग भागते हुये 12 नंबर पहूंचा.. समय देखा तो 4 मिनट बचे हुये थे.. सामने देखा तो S1 डब्बा था और मुझे B3 में जाना था.. मैंने कुली से पूछा की B3 कहां है तो पता चला की S1 से S10, फिर एक पैंट्री कार है और उसके बाद B1, B2 फिर जकर B3 है.. मैंने फिर से भागना शुरू किया मगर मन में ये तसल्ली थी की ट्रेन अब नहीं छूटने वाली है..
बचपन से ही हम बच्चों के लिये ट्रेन से सफर करने का मतलब कोई कामिक या कहानी की किताब और ढेर कुछ ना कुछ खाते जाना होता था.. अब भैया दीदी तो सुधर गये हैं मगर मैं अपने घर का बच्चा होने का कर्तव्य अभी भी निभा रहा हूं.. :D जब मैं अपने डब्बे की तरफ भाग रहा था तभी मुझे एक किताब की दुकान पर कामिक दिख गई.. अब तो मैं सोचा चाहे दौड़कर ही मुझे ट्रेन पकड़नी परे मगर मैं पहले कामिक तो जरूर खरीदूंगा..
मैं अभी तक कामिक पढने का शौकीन हूं मगर चेन्नई में मुझे हिंदी कामिक नागराज, ध्रुव, डोगा वाली नहीं मिलती है.. मगर मैं भी पीछे नहीं हूं.. नेट से राज कामिक के साईट पर जाकर खरीदता हूं.. सो अधिकतर कामिक मेरी पढी होती है.. मैंने उसके पास जितनी कामिक थी वो सारी जल्दी-जल्दी में पलट डाली और 4 कामिक निकाल कर उसे दिया और कहा, "कितने का हुआ भैया, जल्दी बता ओ.." वो हक्का बक्का होकर मेरा चेहरा देख रहा था.. सोच रहा होगा की इतना बड़ होकर भी बच्चों वाला शौक.. :) मगर मुझे जो अच्छा लगता है मैं बस वही करता हूं.. आज तक दुनिया की कभी परवाह नहीं कि की दुनिया क्या सोचती है.. उसने मुझे बताया 120 की हुई.. मैंने बिना दाम जोड़े ही उसे 120 पकड़ाये और फिर दौड़ परा अपने डब्बे की तरफ.. डब्बे पर अपना नाम चेक किया और डब्बे में चढ गया.. जब तक मैं अपनी सीट तक पहूंचता तब-तक ट्रेन खुल गई.. बाद में मैंने दाम जोड़े तो बिलकुल सही पाया.. :)
राज कामिक्स मेरा जूनून आजकल राज कामिक्स का पंच लाईन बना हुआ है जिसे मैंने शीर्षक के रूप में प्रयोग किया है..:) अभी कुछ दिन पहले नागराज के उपर सिनेमा बनाने के लिये एक अमेरिकन स्टूडियो ने राज कामिक्स के साथ करार भी किया है.. उम्मीद है अगले साल तक वो सिनेमा हमारे बीच भी होगी.. अगर आप लोगों में से कोई इस तरह के कामिक का शौकीन है तो मुझसे संपर्क करें.. मैं बहुत सारे लिंक जानता हूं जहां आपको ये कामिक ई-कामिक के रूप में मिल जायेंगे.. मगर मैं ये भी बता देना चाहूंगा की ये सभी पायरेटेड है..
पहले तो मैंने सोचा था की शिल्पी के बारे में लिख कर छोड़ दूंगा, पर अब आपने ही हौसला बढाया है तो आपको ही झेलना होगा.. :P अगर आप कहें तो मेरे पास 2-3 और भी मजेदार किस्से हैं अपनी 7 दिनों की छुट्टी में बीते हुये, आपको सुनाने को.. :)
बेटा अब तो मोटे हो जाओ, देखो ब्लौगिये भी कह रहे हैं
कल मेरे पापाजी अपने आफिस से लौटे मेरा ब्लौग पढकर और उसपर आई टिप्पणियों को पढकर फोन पर मुझे उन्होंने यही कहा.. यूं तो उनके अपने टेबल पर एक कंप्यूटर लगा हुआ है मगर कुछ व्यस्तता और कुछ कंप्यूटर का बहुत कम ज्ञान उनके मेरे ब्लौग पढने में कई बार बाधक सिद्ध होता है.. कल जब मुझसे बात कर रहे थे तो उन्होंने मुझसे कहा की देखो अब तो तुम्हारे ब्लौग पर भी डिमांड आ गई है, अब तो थोड़े मोटे हो जाओ..;) आप भी पढिये उस पोस्ट वाले कमेंटस.. :)
SUNIL DOGRA जालिम said...
बहुत खूब
March 27, 2008 11:48:00 AM PDT
vandana said...
प्रशांत सरआप का पोस्ट पढ़ कर मुझे मेरे भाई की याद आ गयी..बहुत अच्छा लिखा है आपने...अब इस विषय पर मैं क्या कहूं.. मैं भी अपने भाई को बहुत परेशान करती हूँ..मेरी हर जिद उनके लिए आज्ञा सी हो जाती है...
March 27, 2008 11:50:00 AM PDT
राज भाटिय़ा said...
अजीत बहुत सुन्दर लेख हे आप का,लेकिन एक तो खाना नजर नही आ रहा वर्ना हम भी देख कर चख लेते, दुसरा भाई कभी गंजे नजर आते हो तो कभी बालो समेत,आप भाई बहिन का प्यार बना रहे, ओर अगली कडी का इन्तजार ...
March 27, 2008 12:40:00 PM PDT
PD said...
राज जी, आपकी पारखी नजर का मैं कायल हो गया..:) मैं गंजा ही हूं... ये बाल तो लड़कीयों को धोखा देने के लिये लगाया है..;) विविंग करा रखी है मैंने..
March 27, 2008 12:45:00 PM PDT
Neeraj Rohilla said...
प्रशांतजी,बहुत बढिया, बडी सरलता से आपने अपने हृदय की बात कह दी । आपको एवं आपकी प्यारी बहना को शुभकामनायें ।
March 27, 2008 2:14:00 PM PDT
Gyandutt Pandey said...
भैया ढ़्ंग से खाना खाया करो। कुछ वजन बढ़ाओ। भविष्य में समीरलाल जी से प्रतिस्पर्धा नहीं करनी है!
March 27, 2008 6:11:00 PM PDT
Udan Tashtari said...
बहुत सुन्दरता से रिश्तों की बयानी की है जो भगवान के यहाँ से बन कर नहीं आते और उन्हें हम खुद बनाते हैं. आप दोनों भाई-बहन को हमारी शुभकामनाऐं.खूब खाईये, ज्ञानजी रेफरी होंगे और आज से १-२-३ प्रतिस्पर्धा चालू!! :) हा हा!!
March 27, 2008 8:44:00 PM PDT
Sanjeet Tripathi said...
बढ़िया लगा बंधु इसे पढ़ना!!तस्वीर से एक बात तो साफ हो गई कि आप हमारे डिक्टो हो मतलब सिंगल पसली ;)
March 27, 2008 11:13:00 PM PDT
mamta said...
शिल्पी के बारे मे पढ़ना और जानना अच्छा लग रहा है।
March 28, 2008 4:06:00 AM PDT
दिनेशराय द्विवेदी said...
पीडी और शिल्पी, दोनों भाई-बहन की जोड़ी दीर्घजीवी हो। जब भी आप की पोस्ट पढ़ता हूँ बतियाने का मन करता है।
March 28, 2008 6:29:00 AM PDT
PD said...
@वंदना जी, नीरज जी, ममता जी- बहुत बहुत धन्यवाद..@ज्ञान जी & समीर जी- पिछले 6 सालों से कोशिश में लगा हुआ हूं पर उतने का उतना ही हूं.. 6फ़ीट 1इंच का हूं पर वजन बस 65किलो... खैर मैं अपनी उम्मीद नहीं छोड़ूंगा और समीर जी को हरा कर छोड़ूंगा.. :D
@संजीत जी- चलिये हम एक ही बिरादरी के निकले.. :)
@दिनेशराय जी- बहुत बहुत धन्यवाद.. आपको जब कभी मन हो मुझे फोन लगा सकते हैं.. मेरा नंबर है.. 9940648140.. या फिर आप अपना नंबर भी दे सकते हैं.. मैं भी आपसे बात करना चाहता हूं.. :)
जो मन में आयेगा कहूंगा तुझे, आखिर मेरी बहन हो!!(पार्ट III)
मैं उसे प्यार से कभी गधी, कभी इडियट, कभी बुद्धु और ना जाने क्या क्या कहता हूं.. आखिर मेरी प्यारी बहन है, जो मन में आयेगा कहूंगा.. :)
जब मैं मेरठ जाने का और वहां शिल्पी के घर पर रात प्रोग्राम बना रहा था तब मेरे मन में थोड़ी सी चिंता भी थी, क्योंकि मैं अपने भारतीय समाज की रूढिवादीता को जानता हूं और ये भी जानता हूं की यहां खून के रिश्ते को भी कई बार शक कि निगाह से देखा जाता है फिर मैं तो उसका मुंहबोला भाई था.. थोड़ा असमंजस में था मगर मैं उस समय चिंता मुक्त हो गया जब मुझे पता चला की जब मैं वहां पहूंचूंगा उसी समय शिल्पी के पापा भी आने वाले हैं और घर पर ही रहेंगे..
मैं उसके बैंक में पहूंचा और उसके पास जाकर बैठ गया और पहली बार मुझे लगा की काउंटर के इस पार और काउंटर के उस पार में कितना अंतर आ जाता है.. हम जब किसी बैंक में कतार में लगे होते हैं तो लगता है कि सामने बैठा हुआ बैंक कर्मचारी जल्दी-जल्दी काम नहीं कर रहा है(हालांकि कुछ लोग ऐसे कामचोर होते भी हैं) और उसे कोसते हैं.. मगर उस पार बैठा हुआ कर्मचारी भी कोई मशीन नहीं होता है, वो भी अपनी पूरी क्षमता से ही काम करता होता है.. उसने उस दिन जल्दी जल्दी में अपना काम खत्म किया हमने इसी बीच उसका लाया हुआ खाना भी खाया और फिर 4 बजे के आस-पास घर आ गये.. उसके बाद इदर की बातें, उधर की बातें, कभी उसकी टांग खिंचाई, कभी मेरी टांग खिंचाई, और ना जाने क्या क्या.. जैसे हम बिलकुल बच्चे बन गये हों..
अचानक से मैंने उसकी तस्वीर उतार ली :)
बातें करते-करते हम थोड़ा गंभीर हो गये जब अनायास ही अपनी कुछ परेशानीयों के बारे में बातें करने लगे.. कुछ काम को लेकर परेशानीयां और कुछ घर परिवार कि हलचलें.. खैर, सबके जीवन में कुछ ना कुछ परेशानी तो हर वक्त होता है.. ऐसे ही जीवन को संघर्ष नहीं कहते हैं.. माहौल तब हल्का हुआ जब उसके पापा आये.. वो दिन में अपने कुछ काम से दिल्ली गये हुये थे.. शिल्पी और उसकी मित्र(मुझे उसका नाम याद नहीं आ रहा है :() और कुछ उसके पापा ने मिलकर खाना बनाया और मैंने रोटियां सेंकी.. शिल्पी ने मुझे सख्त हिदायत दी थी की अपने ब्लौग पर जो कुछ भी लिखना मगर मेरे बनाये हुये खाने के बारे में कुछ भी मत लिखना.. मगर ऐसा मौका बार-बार थोड़े ही ना आता है.. उसने जो खिलाया वो बहुत ही बेकार था :P.. मगर जितने प्यार से खिला था उसका अलग ही महत्व था :).. मगर उस समय तो उसे बहुत बोला की मैं जानता हूं ऐसा गंदा खाना क्यों खिलायी हो, जिससे मैं दोबारा यहां नहीं आउं.. मगर उसे नहीं पता है कि मैं कितना चिपकू इंसान हूं और जहां प्यार से जो भी मिले उसे अमृत समान समझता हूं :).. मेरी यह बात मेरा ब्लौग पढकर उसे पता चल जायेगा.. :)
हम दोनों का एक साथ वाला पहला फोटो
फिर मैंने अपने लैपटाप पर उसे ढेर सारी कालेज की, भैया के शादी की, और भी ना जाने कौन कौन सी तस्वीरें दिखाई.. उसने मुझसे कुछ गानों की फरमाईश की थी और कहा था की "आओगे तो लेते आना, मैं इसे अपने मोबाईल में डालूंगी.." सो उसने वे गाने अपने मोबाईल में ट्रांसफर की.. अब तक रात काफी हो चुकी थी, सो हम सोने चले गये.. मैं इस बार के जाड़ों में पहली बार रजाई ओढ कर सोया :)..
सुबह उठने पर पता चला की अंकल(शिल्पी के पापा) का शरीर बुखार से तप रहा था और कुछ दिनों से शिल्पी की तबीयत भी कुछ ठीक नहीं चल रही थी.. अब ऐसे में उसे छोड़कर जाने का मन तो नहीं कर रहा था.. मगर जाना तो था ही.. मुझे अपने मम्मी-पापा, भैया-भाभी से भी तो मिलने में देरी हो रही थी.. उसने जल्दी-जल्दी खाना बनाया और मुझे खिलाया और फिर मैं उसके घर से दिल्ली के निकल लिया.. मुझे दिल्ली से संपूर्णक्रांती पकड़नी थी और पटना जाना था..
Thursday, March 27, 2008
जो मन में आयेगा कहूंगा तुझे, आखिर मेरी बहन हो!!(पार्ट II)
जैसा नाम है उसका बिलकुल वैसी ही है वो.. स्नेहमयी.. शिल्पी उसके घर का पुकारू नाम है बाहर का नाम स्नेहा है.. मेरे जीवन में उसका दायरा बहुत बड़ा है.. उसका हर रूप समय के साथ मेरे लिये बदल जाता है.. जब किसी मित्र की सबसे ज्यादा जरूरत होती है तो वो मेरे लिये सबसे अच्छी मित्रा के रूप में मेरे सामने होती है.. जब कुछ गलत करता हूं तो और किसी को चाहे बताऊं या ना बताऊं पर उसे जरूर बताता हूं और उस समय इससे मुझे किसी छोटे बच्चे की तरह डांट भी खानी परती है.. और कभी कभी मुझसे छोटी बहन की तरह नखरें करते हुये कुछ भी मांग कर बैठती है.. मैं अपने घर में सबसे छोटा हूं और इसने मेरे जीवन में आकर मेरी ये इच्छा पूरी कर दी की मुझसे छोटा भी कोई भाई-बहन हो..
स्नेहा(शिल्पी) से मेरी पहली बार अपने ग्रैजुयेसन के दिनों में मुलाकात हुई थी.. हम दोनों एक ही कक्षा में थे और अपनी कक्षा के होनहार छात्रों में से गिने जाते थे.. जहां लोग मेरी कंप्यूटर प्रोग्रामिंग का लोहा मानते थे(जो भ्रम धीरे-धीरे टूटता चला गया :)) वहीं कक्षा में नंबर लाने में इसका कोई सानी नहीं था.. अगस्त का समय था, शायद चौथे सेमेस्टर की बात है, रक्षाबंधन के बाद हमारा कालेज खुला और इसने आकर मुझसे कहा की मैंने तुम्हें राखी वाली ई-ग्रिटिंग भेजी है.. और मैंने कहा की वर्चुवल क्यों रियल राखी बांध दो..और बस तब से हमारे बीच एक प्यार भरे रिश्ते की शुरूवात भी हो गई.. एक प्यारी सी राखी इसने ना जाने कैसे और कहां से ढूंढी क्योंकि रक्षाबंधन के बाद राखी का मिलना बंद हो गया था.. और अगले दिन इसने मुझे वो राखी लाकर मुझे बांध दी.. उससे पहले हम बस एक साधारण से मित्र हुआ करते थे.. हमारे बीच प्रगाढ मित्रता कालेज खत्म होने के बाद आया..
BCA खत्म करने के बाद मैं आगे की पढाई करने के लिये VIT, वेल्लोर आ गया और ये पूरी तन्मयता से बैंक PO की तैयारी में जुट गई.. मगर जैसा कहा जाता है की समय से पहले और भाग्य से ज्याद कभी किसी को कुछ नहीं मिलता है, बिलकुल वैसे ही सारी खूबियां होते हुये भी इसे 2.5सालों तक कोई सफलता नहीं मिली.. ये लगभग अवसादग्रस्त होकर अपने सारे पुराने दोस्तों से संबंध लगभग ना के बराबर कर लिये.. एक मैं ही था जो ये फोन करे या ना करे मगर मैं हमेशा फोन पर फोन करता रहता था.. एक दिन इसने मुझे बहुत घबरा कर फोन किया, मुझे लगा की क्या हो गया है.. इसने मुझे बताया की जिस बैंक की परीक्षा इसने दी थी उसका रिसल्ट आ गया है और उसे नेट पर चेक करके बताओ.. मैंने चेक किया और उसे अच्छी खबर सुना दी.. और खुशी से इसके मुंह से कुछ भी नहीं निकला.. बस बहुत देर तक रोती रही.. मैंने इसे प्यार से कहा की अब रोना छोड़ो और जाकर पापा मम्मी का आशीर्वाद ले लो..
लिखने को इतनी बातें हैं की अगर मैं सारा कुछ लिख दूं तो वो एक मोटा सा ग्रंथ बन जायेगा और ये मुझे भी पता है की ग्रंथ पढना किसी को पसंद नहीं होता है.. :)
मैं और शिल्पी मेरठ में रात का खाना खाना खाते हुये
अंतिम भाग अगले अंक में..
Tuesday, March 25, 2008
जो मन में आयेगा कहूंगा तुझे, आखिर मेरी बहन हो!!(पार्ट I)
घर से मैं सुबह 4 बजे निकल चुका था.. बाहर कुछ औटो तो लगे हुये थे मगर उसके चालक गहरी निंद्रा में थे और मैं जानता था की उन्हें उठाने का कोई मतलब नहीं था क्योंकि वो या तो जाते नहीं या फिर जगने के बाद उनका नखरे ज्य़ादा होता.. खैर अगर कोई औटो नहीं मिलने की स्थिती में तो उन्हें जगाना था ही जिसकी नौबत नहीं आयी..
मैं औटो से एयर पोर्ट पहूंचा जहां से मुझे दिल्ली की फ्लाईट पकड़नी थी.. मेरा फ्लाईट नंबर शायद DC610 था जो समय पर थी और उसने समय पर दिल्ली पहूंचा भी दिया.. दिल्ली जाने से पहले डा.प्रवीण चोपड़ा जी से मेरी बात हुई थी और उन्हीं से मैंने पूछा था की मेरठ जाने के लिये बस कहां से मिलेगी.. मेरठ में मेरी मुहबोली बहन रहती है शिल्पी और मुझे उससे मिले कई साल हो गये थे, सो उससे मिलने की इच्छा तीव्र हो गई ती.. प्रवीण जी ने जैसे मुझे बताया था मैं वैसे ही दिल्ली एयरपोर्ट से औटो लेकर ISBT पहूंचा और वहां कुछ खा-पीकर(जो कहीं से भी स्वास्थवर्धक तो नहीं था) मेरठ जाने वाली बस में बैठ गया..
1 बजे के लगभग बस वाले ने मुझे मेरठ उतार दिया.. जैसा की भारत के किसी भी रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड या एयरपोर्ट के आस-पास होता है, मेरे उतरते ही मुझे ढेर सारे रिक्सा चालकों ने घेर लिया.. मैंने बिना किसी रिक्से वाले की तरफ़ देखे ही मोलभाव करना शुरू कर दिया और वहां से मुझे शिल्पी के बैंक तक जाना था जहां वो काम करती है क्योंकि वो शुक्रवार था और वो वहीं थी.. शौदा 10 रूपये में पटा और शौदा पटते ही रिक्से वाले ने मुझसे मेरा बैग ले लिया अपने रिक्से पर चढाने के लिये.. तब मैं पहली बार उस रिक्से वाले की तरफ देखा जो कम से कम 70 साल से ज्यादा का रहा होगा.. जैसे ही मैंने उसकी तरफ देखा वैसे ही मैंने उससे अपना बैग ले लिया क्योंकि मुझे अच्छा नहीं लग रहा था की मुझे बैठा कर वो अपना रिक्सा खींचे.. मगर तभी ये भी ख्याल आया की ये भी तो किसी मजबूरी के कारण ही इस उम्र में भी रिक्सा चला रहा है और अगर मैं नहीं बैठूंगा तो फिर से इसे दूसरा ग्राहक पटाने में बड़ी दिक्कत होगी.. सो अंततः मैं उसी के रिक्से पर बैठ गया मगर शिल्पी के बैंक पहूंचकर 10 के बदले 20 रूपये दे दिये और बोला "बाबा रख लो इसे.."
मैंने पाया वो थी तो अपने आफिस में मगर काम में उसका मन नहीं लग रहा था उसका.. बेसब्री से वो मेरा इंतजार कर रही थी.. उसके आफिस में लगभग हर कोई ये जान रहा था की इसका भाई आज यहां आने वाला है.. कुछ लोग तो इस आश्चर्य में भी थे की ये लड़की तो बस तीन बहन थी, अचानक से एक भाई कहां से पैदा हो गया..:) वहां उसने मुझसे पूछा की पैर भी छूना परेगा क्या? मैंने मना कर दिया..
शेष अगले अंक में...
शिल्पी
Sunday, March 23, 2008
होली का दिन और दोस्तों का साथ
कल होली के दिन की शुरूवात मायूसी के साथ हुई थी.. लगा था जैसे पिछले साल जैसी होली ही इस बार भी बीतेगी.. चुपचाप, घर में अकेले.. पिछली बार कुछ यूं ही अकेले सिगरेट के धुयें के बीच मेरी होली बीती थी..
रात में ठीक से नींद नही आयी थी और सोने से पहले ही सुबह सभी को 6 बजे के आसपास होली की शुभकानाऐं वाल मैसेज भेज दिया था.. सो पापा-मम्मी समझे की सुबह सुबह जग गया है और 7:30 पर ही फोन करके फिर से जगा दिया उन्होंने.. फिर पिछले साल की तरह ही फोन पर शुभकामनाओं का शिलशिला शुरू हो गया, मुझे लगा की शायद इस बार भी पिछले साल की तरह ही सारा कुछ बीतने वाला है.. पहले चेन्नई से बाहर वालों को फोन करने के बाद चेन्नई के दोस्तों को फोन मिलाना शुरू किया.. पाया सभी सोये हुये हैं और मैं ही उन सभी को फोन कर करके उठा रहा हूं..
फिर उन लोगों को फोन मिलाना शुरू किया जिन्हें अपने घर पर बुलाना था(अपने उन चेन्नई के दोस्तों की भी याद आयी जो होली की छुट्टी में घर गये हुये हैं).. सबसे पहले प्रियदर्शीनी का नंबर आया.. औरों की तरह वो उसे भी नींद से जगाया और याद दिलाया की आज होली है.. उस समय लगभग 10 बज रहे थे.. वो बोली की राका(अपने मित्र राकेश को हम इसी नाम से जानते हैं) के साथ 1 घंटे में आ रही है.. मैंने उसे साथ में रंग भी लाने को कहा क्योंकि मेरे पास कुछ भी नहीं था और अपने घर के पास मैंने ढूंढा मगर नहीं मिला था.. उससे बात करने के बाद मैंने राका को भी फोन मिलाया मगर वो इतनी गहरी नींद में था की की फोन उठाया भी नहीं.. और लगभग आधे घंटे के बाद उसका फोन आया और मैंने उसे कहा की PD(कालेज के जमाने में लोग मुझे और प्रियदर्शीनी को एक ही नाम से जानते थे :)) के साथ जल्दी से आ जाओ.. फिर शिवेंद्र को जगाया , "कितना सोता है? आज होली की थोड़ी सी लाज रख कर उठ भी जाओ यार.."
उसके बाद किचन साफ करने में जुट गया.. इतनी देर में शिव ने अफ़रोज़ को फोन करके बुला लिया जिसे मैं फोन करना भूल गया था.. और राका और प्रियदर्शीनी को आते-आते 12 बज गये.. फिर मैं और प्रियदर्शीनी किचन में जुट गये और तब तक हमारी होली शुरू हो गई.. बहुत ढूंढने पर राका और प्रियदर्शीनी को कहीं से बस गुलाल मिला था.. रंग नहीं मिल पाया था.. खैर जो भी मिला था वो था बहुत उम्दा किस्म का..
होली शुरू होने पर हम लोगों का चेहरा कुछ ऐसा दिखने लगा था.. :)
प्रियदर्शीनी
अफ़रोज़
राका
शिवेन्द्र
मैं खुद(नहीं पहचान में आ रहा हूं ना :))
और हमारी ग्रुप फोटो
अब हम लोग खाना पकाना शुरू किये, सभी असमंजस में की क्या पकाया जाये आज के दिन.. अब किसी बैचलर के घर में साधन हमेशा सीमित ही होता है.. पहले कचौड़ी और भुजिया और खीर बनाने का प्लान बना.. मैं और प्रियदर्शीनी लग गये किचन में.. थोड़ी देर में प्रियदर्शीनी और अफ़रोज़ ने अपना चेहरा धो लिये.. अब हमलोग धुले हुये चेहरे को रंगने का मौका आ भला क्यों छोड़ने वाले थे सो फिर से दोनो बेचारे रंगे गये.. फिर अचानक खीर के बदले मालपुवा बनाने का प्लान बन गया.. मगर एक मुसीबत, क्योंकि किसी को वो बनाना नहीं आता था.. तब शिव ने कमान संभाली और घर पर पुछा उसे बनाने की विधी.. थोड़ी देर में हमारा गैस भी खत्म हो गया और इस बादा को भी हमने पार किया क्योंकि हमें तो मालपुवा खाना ही था..
हमलोग बिना चेहरा धोये हुये ही घर से बाहर कुछ सामन खरीदने और गैस भराने के लिये गये थे और सारे तमीलियन हमें ऐसे घूर-घूर कर देख रहे थे जैसे हम किसी दूसरे ग्रह के प्राणी हों.. वे अपने बच्चों को समझा रहे होंगे "देखो बच्चों, इस तरह के प्राणी साल में एक बार उत्तरी भारत में पाये जाते हैं.." :)
और इस तरह एक मायूस सी सुबह उत्साह से भरे दिन में परिवर्तित हो गया.. राका, प्रियदर्शीनी और आफ़रोज़ को मैं बहुत बहुत धन्यवाद देता हूं इस होली को यादगार बनाने के लिये.. और हां एक बात तो बताना ही भूल गया, हमने कुछ गुलाल बचा कर भी रख लिये हैं.. जैसे ही हमारे मित्र अपने घर से लौटेंगे वैसे ही उन्हें एक बार फिर रंग देना है.. :)
Saturday, March 22, 2008
घोस्ट बस्टर जी, ये होली का खुमार है :)
हर दिन आप लोगों को बहुत बकवास सुनाता हूं.. चलिये एक बकवास और सही.. होली का खुमार ही इसे समझ लिजीये घोस्ट बस्टर जी :).. और आप लोगों को सावधान भी करना चाहूंगा की मेरे घर में इंटरनेट 1-2 दिनों में चुरू हो जायेगा तब आप लोगों को मैं ज्यादा से ज्यादा बकवास सुनाया करूंगा.. मैं 512kbps का हॉथवे का कनेक्सन ले रहा हूं.. शायद कल तक चालू हो जाये.. (घोस्ट बस्टर जी ने मुझसे कल के पोस्ट पर कुछ कहा था उसी से संबंधित मैंने उपर वाली बात कही है..)
आज होली का त्योहार है और आजकल मेरा मोबाईल रिंग टोन ये गीत है.. अब इस गीत के बारे में क्या तारीफ करूं.. अगर होली का मौसम ना हो तो भी मैं इसे कभी भी सुनना पसंद करूंगा.. मदर इंडिया का ये गीत मुझे अब तक के सबसे पसंदीदा गीतों में से एक है..Holi Aayee Re Kanh...
मैं कल कुछ तस्वीरों के साथ आउंगा जो मैंने अपने दोस्तों के साथ होली खेलते समय खींची है.. अब जब आप घर से दूर होते हैं तो यही दोस्त आपका घर-परिवार सब कुछ होता है.. हर मुसिबत में आपके साथ सबसे पहले यही खड़े रहते हैं.. घर से मदद तो बाद में मिलती है.. आज मैं होली के दिन अपने सभी दोस्तों को सहॄय धन्यवाद देना चाहता हूं मुझसे दोस्ती करने के लिये..
Friday, March 21, 2008
सुपर कमांडो ध्रुव और मुक्ता
कल मैं अपनी एक मित्र मुक्ता से फोन पर बात कर रहा था जो कुछ मजेदार सा था.. उसी का एक अंश मैं यहां लिख रहा हूं..
मैं : "उस दिन मैं पूरे दिन भर तुम्हारा इंतजार करता रहा और तू नहीं आयी.. अबे अगर नहीं आना था तो फोन कर देती या मैसेज दे देती.."
मुक्ता : "अरे यार मैं बोली थी ना की मैं उस दिन आफिस चली गयी थी.."
मैं : "नहीं तू बोली थी की तू उससे एक दिन पहले सैटरडे को आफिस गयी थी.. अब मैं घर से खाने का सामान लाया हूं तो लालची की तरह मेरे घर आना चाह रही है.."
मुक्ता : "अच्छा गलती हो गई.. अब् डांटो मत.."
मैं : "ठीक है नहीं डाटूंगा मिल तो पिटाई करता हूं.."
मुक्ता : "पिटाई तो मैं करूंगी तेरा.."
मैं : "क्यों?"
मुक्ता : "बस ऐसे ही मन कर रहा है.."
मैं : "अब तो तू मेरे हाथ से पिटने के लिये तैयार रहो.."
मुक्ता : "तू लड़की पर हाथ उठायेगा?"
मैं : "हां.."
मुक्ता : "तू ऐसा नहीं कर सकता है.. मुझे मालूम है तू लड़की पर हाथ नहीं उठाएगा.."
मैं : "कभी बचपन में कामिक्स पढी है सुपर कमांडो ध्रुव का?"
मुक्ता : "हां.. पर क्यों पूछ रहा है?"
मैं : "वो लड़की पर हाथ नहीं उठाता था.. तू क्या मेरे को सुपर कमांडो ध्रुव समझ रखी है? मैं लड़कीयों पर हाथ के साथ-साथ पैर भी उठा सकता हूं.."
मुक्ता : "अबे तू वही है सुपर कमांडो ध्रुव.. तू भी क्या याद दिला दिया.. सुपर कमांडो ध्रुव.."
सम्मीलित हंसी.. "हा हा हा हा...."
Thursday, March 20, 2008
अमावस्या की रात में टीम मेम्बर के साथ चलना
खैर इसे भी जीवन के संघर्ष का एक हिस्सा मान कर मैं भी उनके साथ चला जा रहा हूं.. कभी तो इस रात की सुबह होगी!!!
Tuesday, March 18, 2008
Celebration means
Celebration means...
Four friends.
raining outside.
Four glasses of Tea.
Celebration means...
Hundred bucks of petrol.
A rusty old bike.
And an open road.
Celebration means...
A hostel Tea.
A hostel room.
12 a.m.
Celebration means...
3 old friends.
3 separate cities.
3 coffee mugs.
1 internet messenger.
Celebration means...
Rain on a hot tin roof.
Pakodas deep-frying.
Neighbours dropping in.
A party.
Celebration means...
You and mom.
A summer night.
A bottle of coconut oil.
A head massage.
You can spend
Hundreds on birthdays,
Thousands on festivals,
Lakhs on weddings,
but to celebrate
all you have to do is spend your Time with your loved ones.
Keep in touch with those who care for you...
मैं पटना से वापस लौट आया हूं.. धीरे-धीरे लय में आकर फिर से लिखना शुरू करूंगा.. तब-तक के लिये इस पुरानी चीज से ही काम चला लिजीये.. :)
Wednesday, March 12, 2008
Thursday, March 06, 2008
Ghost Buster जी का 10 वर्षीय भतीजा और श्री किशन लाल 'क्रिशन' जी
मेरे आज के पोस्ट पर Ghost Buster जी ने एक बहुत ही रोचक टिप्पणी की है.. तो आप लोग क्यों वंचित रहें उसे पढने से..
बड़ी ही रोचक जानकारी दी आपने. धन्यवाद.
आपकी इस पोस्ट के मध्यम से अपने एक दुःख को व्यक्त करना चाहता हूँ.
कुछ bloggers की comment moderation की policy से परेशान हूँ. अब कल ही श्री क्रिशन लाल 'क्रिशन' जी की कविता नुमा पोस्ट "अब नया हम गीत लिखेंगे" पर अपनी टिप्पणी दी थी. पर उन्होंने उसे पोस्ट पर जाने लायक नहीं समझा. आप ही देखिये, क्या कुछा ग़लत कहा था मैंने:
"कोई पन्द्रह वर्ष पूर्व मेरे दस वर्षीय भतीजे महोदय को अचानक कविता लिखने का शौक़ चर्राया था. आपकी कविता पड़कर बरबस ही उन कविताओं की याद आ गई. आप भी थोड़ा और प्रयास करें तो उस स्तर को छू सकते हैं."
हाँ महक जी की प्रशंसा और समीर लाल जी के व्यंग्य को सधन्यवाद प्रकाशित किया है. मैं बड़ा क्षुब्ध हूँ इस घटना से.
लिजीये Ghost Buster जी मैंने आपकी बात लोगों तक पहूंचा दी है.. वैसे आपके नाम से मुझे एक अपना मनपसंद गीत याद आ रहा है जिसे मैं बचपन से सुनता आ रहा हूं.. लिजीये आप लोग भी उसे एक बार सुनते जाईये..djmarksoup-ghost b...
कीमत- मोहल्ला $73,390.20, भड़ास $38,388.72 और उड़न तस्तरी $63,228.48
क्या आपको पता है की आपके ब्लौग की कीमत क्या है? नहीं!! अजी जानना चाहते हैं तो जल्दी से यहां आईये और अपने ब्लौग कि सही कीमत पहचानिये..
मैंने जो कुछ ब्लौग चेक किया वो इस प्रकार हैं..
ज्ञान जी- $28,791.54
रेडियोवाणी- $41,211.42
चवन्नी चैप- $15,242.58
मेरा अपना ब्लौग- $6,774.48. :(
बाकी आप लोग खुद जाकर अपना देख लें.. :)
पता है : http://www.business-opportunities.biz/projects/how-much-is-your-blog-worth/
Wednesday, March 05, 2008
Tuesday, March 04, 2008
भारत की जीत और कमेंटेटरों का कमाल
आज भारत अंततः जीत ही गया.. एक अरसे से भारत आस्ट्रेलिया में इस तरह की किसी जीत की तलाश में था और उसे ये जीत भारत की युवा शक्ति और अनुभवी खिलाड़ियों की सम्मीलित प्रयास से मिला..
साधारणतया मैं क्रिकेट मैच में ज्यादा दिलचस्पी नहीं दिखाता हूं पर आज पता नहीं क्यों चार बजे के पास मैंने अपना FM चालू किया और मैंने एक अरसे बाद कमेंट्री सुनी.. सुनने के बाद जो मैंने पाया की जीत से पहले और बाद में लोगों के व्यवहार में क्या अंतर होता है..
जब भारत और आस्ट्रेलिया का संघर्ष अपनी चरम सीमा पर था तब जो महाशय कमेंट्री कर रहे थे वो कुछ ऐसे बोल रहे थे, "धोनी के चेहरे पर तनाव साफ झलक रहा है, वो खिलाड़ियों को संकेत दे रहे हैं की बाल को ठीक से पकड़ें.." और भारत के जीतने के बाद उसी महाशय का कथन था की, "चाहे कितना ही तनाव का क्षन क्यों ना हो पर धोनी के चेहरे पर कभी दिखाई नहीं देता है.." :)
तो ये है जीत का जादू.. हर सभ्यता में यही होता आया है और होता रहेगा.. सफल व्यक्ति का हर कसूर माफ हो जता है..
मैं अपने Fं रेडियो पर कमेंट्री सुन रहा था और अपने इंट्रानेट वाले चैट सर्वर पर शिवेन्द्र को उसका पूरा ब्योरा भी दे रहा था.. आप भी उसे पढें, कहीं कहीं पर आपको मजा जरूर आयेगा.. :)
Prashant Uday... 14/22-4
Prashant Uday... 13/23-4
Prashant Uday... 1st was wrong
Shivendranku... 23 ball 13 run..??
Prashant Uday... han.. :P and 4 wicket
Prashant Uday... 12/23-4
Shivendranku... check once again
Shivendranku... now its 3 wicket
Prashant Uday... nahi..
Prashant Uday... 4
Prashant Uday... now...
Prashant Uday... 3
Prashant Uday... nahi 2
Prashant Uday... u were right
Shivendranku... bahut late hal rahe ho
Prashant Uday... nahi main 2 minute nahi suna tha..
Prashant Uday... usi me gira hoga..
Prashant Uday... abhi 1 wicket gira hai Johnson ka
Shivendranku... kya bat hai
Shivendranku... gr8
Prashant Uday... 11/23-2
Prashant Uday... 9/20-2
Prashant Uday... out
Prashant Uday... 8/20-1
Prashant Uday... nahi.. wrong commentry
Prashant Uday... 6
Prashant Uday... BSNL sixer
Prashant Uday... connecting india
Shivendranku... sale thik se sun
Prashant Uday... 6/14-2
Prashant Uday... Jago grahak jago...
Prashant Uday... Hopes ne mara 6
Prashant Uday... 6/13-2
Shivendranku... wide.?
Prashant Uday... nahi..
Prashant Uday... pahla vala spelling mistake tha
Prashant Uday... :P
Prashant Uday... last ball full toss
Prashant Uday... 1 run
Prashant Uday... Pathan
Prashant Uday... last over
Prashant Uday... 5/12-2
Prashant Uday... 4/12-1
Prashant Uday... out
Prashant Uday... Nathan Bracken out
Prashant Uday... caught by raina
Shivendranku... gud
Prashant Uday... Jago grahak jago.. upbhokta bighag.. janhit me jari
Prashant Uday... 247/9
Prashant Uday... 3/10-1
Prashant Uday... 2 run
Shivendranku... nahiiiiiiii
Prashant Uday... out
Prashant Uday... India won
Prashant Uday... V for victory
Shivendranku... yeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeee
Prashant Uday... trikoniya srinkhala me bharat ki jit
Prashant Uday... :)
Prashant Uday... bhartiya tirange charon or lahra rahe hain..
Prashant Uday... aur bharat ne 249 par aus ko all out kar diya..
Shivendranku... gud...
Shivendranku... acha comentry sunaya
Prashant Uday... :)
और घबराईये मत.. मैंने शिवेन्द्र को बोल कर ये चैट हिस्ट्री डाली है.. :D यहां पर मेरे नाम के बाद उदय मेरे पापाजी का नाम है.. हमारे यहां कंपनी मेल आई.डी. ऐसे ही बनाते हैं..
अलेक्सा को लेकर अब ज्यादा मत चौंकिये
मेरी समझ में अलेक्सा रेटिंग का कोई मतलब नहीं है.. आप भी सोच रहे होंगे की मैं ऐसा क्यों कह रहा हूं? अभी जैसे ही रवि जी का ब्लौग पढा वैसे ही पूरा का पूरा अलेक्सा छान मारा.. इससे पहले भी अलेक्सा से कई बार गुजरा था पर कभी उतना महत्व नहीं दिया था मगर रवि जी ने उसका महत्व बढा दिया.. अभी जब मैं उसकी छान-बीन कर रहा था तो मुझे लगभग हर प्रसिद्ध ब्लौग वहां दिख गये..
मगर उससे ज्यादा मजे की बात ये है की कई प्रसिद्ध चिट्ठे वहां नहीं भी दिखे.. जिसमें सबसे पहला नाम उड़न तस्तरी का है.. अब ये हो सकता है की मुझसे चूक हो गई हो आखिर मेरा मानना है की मैं भी मनुष्य हूं(वैसे मेरे पिता जी मुझसे सहमत नहीं हैं.. :) वो अक्सर कहते हैं की पता नहीं ये गधा से आदमी कब बनेगा..).. अगर मैं गलत हूं तो कॄपया मुझे सूचित करें.. मैंने करीब शुरू के 700-800 तक के चिट्ठे छान मारे थे..
और तो और मेरा चिट्ठा भी कहीं नहीं दिखा... बू हू हू हू...... :(
सबसे बड़ी पापी लड़की होती है
मेरा ये मानना है की अगर पुनर्जन्म जैसी कोई बात होती है तो जैसा की हमारे धर्मग्रंथ में लिखा हुआ है "पिछले जन्म में सबसे बड़ा पुन्यात्मा मनुष्य योनी में जन्म लेता है.." के ठीक विपरीत जो सबसे बड़ा पापी होता है वो ही मनुष्य योनी में जन्म लेता है.. ताकी उसे पिछले जन्म का पूरा हिसाब मनुष्य योनी में पैदा होकर चुकाना पड़े..
मैं कुछ दिन पहले अपनी एक मित्र से बात कर रहा था तो बातों ही बातों में उसे भी ये बात कही.. और उसने अनायास ही ये कहा की "और उन पापीयों में भी जो सबसे बड़ा पापी होता है वो लड़की बन जाती है.." उसकी ये बात सुनकर मेरे पास कहने को कुछ नहीं बचा.. लगा की कहीं ना कहीं से हम पुरूष उसकी इस बात को हर दिन सही करते रहते हैं..
Monday, March 03, 2008
अरे भैया हिंदी में कहिये ना कलेक्टेरियेट
आज-कल हिंदी में अंग्रेजी के शब्द इस तरह घुसे हुये हैं मानों वो भी हिंदी का ही एक भाग हो.. लोग-बाग गांव-कस्बों तक में इसका प्रयोग धड़ल्ले से कर रहें हैं.. इसी से जुड़ा एक संस्मरण मैं आज आपके पास लेकर आया हूं..
बात सन् 2001 की है, गोपालगंज की..गोपालगंज तीन चीजों के लिये बहुत अधिक जाना जाता है.. पहला चीनी मिल के लिये, दूसरा यहां के लोगों का काफी ज्यादा मात्रा में नौकड़ी की तलाश में खाड़ी देशों में पलायन के लिये और तीसरा लालू का गृह जिला होने के लिये.. :)
मेरे पापाजी गोपालगंज जिले में पदस्थापित थे.. मैं उस समय दिल्ली में मुनिरका में अपने भविष्य की तलाश में था और उससे पहले मैं कभी भी गोपालगंज नहीं गया था.. पटना वाले घर में कोई भी नहीं था सो मैंने पापा से पूछा की गोपालगंज में घर कहां है? उन्होंने बताया की गोपालगंज समाहरणालय के ही अंदर में दो बंगले हैं उसी में से एक वाला उनको मिला हुआ है.. मैंने पूछा की बस स्टैंड से कितना दूर होगा? उन्होंने बताया की आधा किलोमीटर दूर होगा..
अब मैं पहले दिल्ली से पटना में अपने घर आया और फिर वहां से गोपालगंज पहूंचा.. वहां सोचा रिक्सा ले लूं, तो रिक्से वाले ने नया जानकर सीधा 40-50 रूपये बताया.. मैंने सोचा चलो आधा किलोमीटर ही तो है और सामान के नाम पर पीठ पर टांगने वाला एक कालेज बैग भर ही तो है, सो पूछते-पाछते पैदल ही चला जाऊंगा..
मेरी असली यात्रा यहां से शुरू हुई.. मैं किसी से भी पूछ रहा हूं की समाहरणलय कहां है तो लोग मेरा चेहरा ऐसे देखते जैसे मैं किसी दूसरे ग्रह से आया हूं.. अंततः मैंने एक बूथ से घर फोन लगाया और पूछा की पैदल कैसे रास्ता है और उसी रास्ते पर बढ चला.. थोड़ी दूर जाकर फिर एक दूकान में अपनी तसल्ली के लिये पूछा की समाहरणालय कहां है? फिर से वो भी पहले वाले की तरह मेरा चेहरा देखने लगा.. वहीं पर एक बुजुर्ग बैठे हुये थे, उन्होंने मुझे बुलाया और बड़े प्यार से पूछा.. भैया समाहरणालय में क्या होता है? मैंने बताया की जिला मुख्यालय होता है जहां डिस्ट्रीक मजिस्ट्रेट बैठते हैं..
अब वो मुझे देख कर मुस्कुराया और हंसते हुये बोला.. तो अंग्रेजी में क्यों बतियाते हैं? हिंदी में कहीये ना की कलेक्टेरियेट कहां है.. उनके सामने तो कुछ नहीं बोला मुस्कुरा भर दिया और पता पूछ कर चला आया.. पर घर आते आते हंसते-हंसते मेरा बुरा हाल हो गया.. :)
Saturday, March 01, 2008
मठाधीशों की (ब्लौग) दुनिया
जिसे देखो वही आज मठाधीशी की बात लेकर रोना रो रहा है, जो भी ऐसा कर रहें हैं उनसे मुझे कुछ पूछना है और कुछ कहना है..
मेरा तो ये मानना है की ये पूरी दुनिया ही मठाधीशों की है.. मठाधीश ही ये दुनिया चलाते हैं.. मठाधीशी कहां नहीं है? क्या आपके आफिस में नहीं है? आपके बास क्या हैं जिनकी मर्जी के खिलाफ आफिस में एक पत्ता भी नहीं हिलता है.. क्या आपके मोहल्ले या गली में नहीं है? गली में घुमते हुये गुंडे मठाधीश नहीं तो और क्या हैं? अगर आप साफ्टवेयर इंडस्ट्री की बात करें तो बिल गेट्स की मठाधीशी के जवाब में ही सन 2000-01 मे वो बहुचर्चित केस अदालत में चला था.. अगर मीडिया की बात करें तो रूपर्ड मर्डोक का नाम आता है.. मुझे तो सारे नेता जो अभी शीर्ष पर हैं वे सभी मठाधीश ही नजर आते हैं.. चाहे वो मुख्यमंत्री हों या प्रधानमंत्री या कोई और..
मेरी नजर में मठाधीशी कभी ना तो खत्म हुई है और ना होगी.. वो तो उस उर्जा के समान होती है, जो सिर्फ अपना रूप बदलती रहती है.. वैसे ही मठाधीश भी सिर्फ अपना रूप बदलते रहते हैं.. आज ये तो कल कोई और.. जिसके हाथ में भी शक्ती होती है वही आज नहीं तो कल मठाधीशी पर उतर जाता है.. कल को आपके पास होगी तो आप भी वही करेंगे.. ठीक वैसे ही जैसे आप अपने आस पास अपने छोटों से करते होंगे.. जैसे की अगर वो आपकी कोई बात नहीं माना तो डरा-धमका कर या मार-पीट कर उससे अपनी बात मनवा लेना..
एक मजेदार बात याद आ गई.. मेरी एक मित्र हैं(मैं नाम नहीं बता ऊंगा), उनकी अंग्रेजी बहुत ही अच्छी है मगर हिंदी में थोड़ी सी दिक्कत है जिसे वो दूर करने का प्रयास कर रही हैं.. वो मेरे ब्लौग को पढने के चक्कर में हिंदी अग्रीगेटर के बारे में जान गई.. एक दिन वो ब्लौगवाणी पर घूम रही थी और पहली बार उनका सामना मठाधीश शब्द से पड़ा और वो पूरा पढने के बाद भी उस पोस्ट में कुछ भी नहीं समझ सकीं.. अब ये पढने के बाद वो मेरा पूरा क्लास जरूर लेंगी.. :)
मोहल्ला हटाओ, भड़ास हटाओ
कल सुबह से ही ये घमासान देख रहा हूं.. लोग तकनीकी समझ की कमी के कारण कुछ लोग इधर से चिल्ला रहे हैं मोहल्ला हटाओ, तो कुछ लोग उधर से चिल्ला रहे हैं भड़ास हटाओ.. अरे दोस्तों अगर किसी ब्लौग को हटाना इतना ही आसान होता तो कितने ही ब्लौग अभी तक ब्लौग जगत से गायब हो चुके होते.. और रही बात फ़्लैग करने की तो मेरे जैसों का क्या करोगे जिसने अपना टेम्प्लेट खुद ही बनाया है और फ़्लैग का आप्सन ही हटा दिया है?
मैं इस पचड़े में नहीं परना चाहता हूं की क्या सही है और क्या गलत.. मेरा यसवंत जी से भी अच्छे संबंध हैं और अविनाश जी तो मेरे अपने बड़े भाई हैं..
ये सब देखकर मुझे अपने कालेज के दिन याद आ गये हैं जब मेरी बैच में और मेरे जूनियर बैच के लड़कों में जम कर मारपीट हुई थी, मेरे बैच के कुछ लड़कों ने जूनीयर को बुरी तरह मारा था(वैसे गलती दोनों की ही थी).. और मेरे संबंध जूनीयरों से बहुत ही अच्छे थे और जिन लड़कों ने मारपीट की थी वे मेरे अच्छे मित्र थे.. उस मसले से मैंने खुद को बिलकुल अलग-थलग कर लिया था.. ना इनकी बात सुनता था और ना ही उनकी बात.. आज वो समय बीते बहुत दिन हो चुका है.. अगर मैं उस समय किसी की भी बात सुनता तो किसी एक पक्ष से मेरे संबंध खराब होने ही थे.. मगर आज भी मेरे संबंध दोनों ही पक्षों के लड़कों से अच्छे हैं..
वैसे आज मैं भड़ास और मोहल्ला दोनों का ही मेंबर हूं.. मैंने खुद ही दोनों को ज्वाईन करने की इच्छा जाहिर की थी और खुद किसी को छोड़ना नहीं चाहता हूं क्योंकि दोनो ही मुझे दो अलग तरह का प्लेटफार्म देता है अपनी बात कहने का.. अगर यसवंत जी या मेरे भैया दोनों में से किसी को भी लगता है मुझे उनके कम्यूनिटी बलुअग में नहीं रहना चाहिये तो मुझे कोई आपत्ति नहीं होगी..
मैं हर सप्ताहांत पर सारे ब्लौग को सेव करके एक ही बार में सारे ब्लौग पढता हूं.. और इस बार मुझे पढने के लिये बहुत मशाला मिल गया है.. चोखेरबाली, मोहल्ला, भड़ास, ज्ञान जी, समीर जी, अनिता जी, शिव जी.. बहुत सारे नाम हैं जिनके ब्लौग पढने में सच में आनंद ही आयेगा.. :)