Wednesday, April 11, 2007

यादों के चेहरे

यादों को मैने
तह करके रखना चाहा
सूटकेश में,
फ़िर सोचा
रखने से पहले उस पर जमी
धुल झाड़ लूँ।
.
सारी यादों को
इकठ्ठा करके
उसे पटका-पीटा
पर गन्दगी को ना जाना था
और ना वो गये।
.
फ़िर सोचा
क्यों न धोकर साफ़ कर लूँ
यादों को साफ करने कि धुन में
भूल गया की
ज्यादा घिसने पर
वे फट भी सकती हैं।
.
उन्हे फटना था
सो वे फट गये।
.
अब उन यादों की ओर
देखा भी नहीं जाता
ठेस लगता है मन को
खुद से प्रश्न पूछता हुँ,
क्या ये मेरी ही यादें हैं?
पर उत्तर का इन्तजार नहीं करता
उत्तर पता जो है।
.
अब तो वे
सूटकेश में भी नहीं रहना चाहती
मुझसे प्रश्न पूछती हैं
कि उनकी हालत का जिम्मेदार कौन है?
एक ऐसा प्रश्न
जो अंतर्मन को छलनी किये देता है।
.
अंततः मैं कल बाजार से नयी यादें खरीद लाया
जो साफ सुथरी और धुली हुयी है
सोचता हूँ की
उन नकली यादों के साये में,
निकल परूँ दुनिया की भीड़ में,
और अपनी यादों के चिथड़े को
यूँ ही बिलखता छोड़ दूँ॥

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4 comments:

  1. hmmmmmmmm nice poem

    keep it up...

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  2. Like previous poems,it is also gr8888888888888.........
    keep it up dear...

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  3. Thanks.. Mujhe pata hai ki mere pichale Poem jaisa nahi hai...
    Bcoz ye mere dil se nikla hua nahi hai.. ye to bas maine yun hi likh daala tha.. :)
    But thanks for appreciating..

    ReplyDelete