Tuesday, April 17, 2007

उद्देश्यहीन जीवन

जी रहा था यूँ,कि मानो जिन्दगी बसर कर रहा था,उद्देश्यहीन जीवन,तब तुम आयी,जीवन में बहार बनकर,धड़कन लेकर,चाहा था तुम्हें,हमेशा खुश रखने की चाहत थी,एक उद्देश्य मिला था जीवन को।अब आजजब तुम नहीं हो,जीवन पुनःउदास झरने के जैसेबही जा रही है,मानो उद्देश्यहीन जिन्दगी ही,जीवन का अंतहीन सत्य ...

Wednesday, April 11, 2007

यादों के चेहरे

यादों को मैनेतह करके रखना चाहासूटकेश में,फ़िर सोचारखने से पहले उस पर जमीधुल झाड़ लूँ।.सारी यादों कोइकठ्ठा करकेउसे पटका-पीटापर गन्दगी को ना जाना थाऔर ना वो गये।.फ़िर सोचाक्यों न धोकर साफ़ कर लूँ यादों को साफ करने कि धुन मेंभूल...