जी रहा था यूँ,
कि मानो जिन्दगी बसर कर रहा था,
उद्देश्यहीन जीवन,
तब तुम आयी,
जीवन में बहार बनकर,
धड़कन लेकर,
चाहा था तुम्हें,
हमेशा खुश रखने की चाहत थी,
एक उद्देश्य मिला था जीवन को।
अब आज
जब तुम नहीं हो,
जीवन पुनः
उदास झरने के जैसे
बही जा रही है,
मानो उद्देश्यहीन जिन्दगी ही,
जीवन का अंतहीन सत्य हो॥
कि मानो जिन्दगी बसर कर रहा था,
उद्देश्यहीन जीवन,
तब तुम आयी,
जीवन में बहार बनकर,
धड़कन लेकर,
चाहा था तुम्हें,
हमेशा खुश रखने की चाहत थी,
एक उद्देश्य मिला था जीवन को।
अब आज
जब तुम नहीं हो,
जीवन पुनः
उदास झरने के जैसे
बही जा रही है,
मानो उद्देश्यहीन जिन्दगी ही,
जीवन का अंतहीन सत्य हो॥