जिस रात यह घटना घटी उससे एक दिन बाद ही मुझे PMCH के इमरजेंसी वार्ड में एक डाक्टर से मिलना तय हुआ था. सोलह-सत्रह साल की उम्र थी मेरी. सुबह जब PMCH के लिए निकला था तब तक मुझे इस घटना की जानकारी नहीं हुई थी. अस्पताल पहुँच कर मुझे पता था की इमरजेंसी वार्ड में किस डाक्टर से और कहाँ मिलना है. मगर वहां पहुँच कर एक डर सा मन में बैठ गया. हर तरफ सैकड़ों की संख्या में पुलिस थी. पुलिस से मुझे कभी वैसा भय नहीं रहा है जैसा भय आम जनों के बीच घुला मिला है. कारण शायद यह हो सकता है की घर में पापा की नौकरी की वजह से पुलिस का आना-जाना और उनकी सुरक्षा व्यवस्था में लगी पुलिस का होना. मगर वहां इतनी अधिक पुलिस देख कर मन में भय समां गया. फिर भी हिम्मत करके इमरजेंसी वार्ड के दरवाजे पर गया तो पाया की वहां दरवाजे पर भी भारी सुरक्षा व्यवस्था थी. और किसी को भी अंदर नहीं जाने दे रही थी. मैं किसी तरह उन डाक्टर का नाम लेकर और कुछ और बहाने बना कर अंदर जा घुसा. मेरे साथ आये पापा के स्टाफ को पुलिस ने अंदर नहीं जाने दिया. शायद मैं लगभग बच्चा ही था इसलिए मुझे जाने दिया हो. अंदर पहुँचते ही सबसे पहले हॉल आता है, वहीं कम से कम तीस-चालीस लाशें रखी हुई थी. मुझमें आगे बढ़ने की हिम्मत नहीं थी फिर भी यह सोच कर की जब यहाँ आया ही हूँ तो उस डाक्टर से मिल ही लूँ, और उनके कमरे की तरफ आगे बढ़ गया. उनके कमरे की तरफ जाते हुए कई लोग बिस्तर पर बेसुध हुए दिखे जो जिन्दा तो थे, मगर गोलियों से छलनी, और इलाज के लिए अपनी बारी का इन्तजार कर रहे थे. शायद इतने लोगों का एक साथ इलाज संभव नहीं रहा हो उस वक़्त. आगे बढ़ने की हिम्मत भी टूट चुकी थी. किसी तरह बाहर वापस आया और घर चला गया. मगर कई सालों तक वह भयावह दृश्य आँखों के सामने घूमता रहा.
अभी जिस दिन सभी अपराधियों को हाईकोर्ट द्वारा बरी करने की खबर आई थी तो यह सब आँखों के सामने घूम गया. साथ ही यह भी भरोसा हो चला की उन्हें किसी ने गोली नहीं मारी. वे तो आसमान से बरसती गोलियों के शिकार हुए थे. उनका हत्यारा कोई नहीं.
अभी जिस दिन सभी अपराधियों को हाईकोर्ट द्वारा बरी करने की खबर आई थी तो यह सब आँखों के सामने घूम गया. साथ ही यह भी भरोसा हो चला की उन्हें किसी ने गोली नहीं मारी. वे तो आसमान से बरसती गोलियों के शिकार हुए थे. उनका हत्यारा कोई नहीं.