Wednesday, September 28, 2011

हार-जीत : निज़ार कब्बानी

आजकल निज़ार कब्बानी जी की कविताओं में डूबा हुआ हूँ. अब उर्दू-अरबी तो आती नहीं है, सो उनकी अनुवादित कविताओं का ही लुत्फ़ उठा रहा हूँ जो यहाँ-वहाँ अंतरजाल पर बिखरी हुई है. उनकी अधिकांश कवितायें अंग्रेजी में अंतरजाल पर ढूंढ कर पढ़ी और कुछ कविताओं का हिंदी अनुवादित संस्करण सिद्धेश्वर जी के कर्मनाशा एवं...

Tuesday, September 06, 2011

दादू बन्तल, दादू बन्तल, छू

पापा ने करीब ३ महीने पहले केशू को एक खेल सिखाया बच्चों वाला जिससे वो किसी भी चीज़ को गायब कर सकता था और उसे फिर वापिस भी ला सकता था, बस उसके लिए उसे आँख बंद करके और हाथों की अँगुलियो को शक्तिमान के स्टाईल में घुमाते हुए...