भूलना या ना भूलना, एक ऐसी अनोखी मानसिक अवस्था होती है जो अभी तक किसी के भी समझ के बाहर है.. भूलने की कोई तय समय-सीमा या कोई उम्र नहीं.. कई चीजें हम ठीक एक सेकेण्ड के बाद भी भूल जाते हैं, कई दफ़े कुछ कहते-कहते ही आगे कहने वाली बात भूल जाते हैं.. कई दफ़े एक उम्र गुजरने के बाद भी बातें नहीं भूली जाती.. कई दफ़े कुछ बातें भूलने की कोशिश में ही एक उम्र गुजर जाती है..
देखो ना...मैं भी भूल चुका हूँ कई बातें.. वह दिन भी भूल चुका हूँ जब तुम्हें पहली बार देखा था.. वे दिन भी भूल गया हूँ जब तुम्हें कनखियों से देखता था यह दिखाते हुए की मैं कहीं और देख रहा हूँ और वे दिन भी जब इसके ठीक विपरीत घटनाएं घटी थी.. भूल चुका हूँ तुम्हारे साथ बिताए वे हर पल जिसके मूक गवाह मात्र हम दोनों ही थे.. भूल चुका हूँ तुम्हारे साथ उस पहाड़ी वाले शहर की अनजान गलियों में बेपरवाह, निरुद्देश्य भटकना.. यह भी भूल गया हूँ, जब डरते डरते तुम्हारे होंठों को छुवा था पहली बार और प्रतिक्रिया स्वरूप तुमने बेझिझक चूम लिया था मुझे...अपनी 'झिझक' और तुम्हारा 'अल्हड़पन' भी भूल गया हूँ..
और भी कई बातें भूल गया हूँ, और उस गीत के मुखड़े भी.. देखो मैं अब भूल गया हूँ प्रेम में डूबा तुम्हारा वह पहला स्पर्श भी.. तुम्हारा वह प्यार में मुझसे लड़ना झगड़ना कैसे याद रख सकता हूँ, यह भी भूल चुका हूँ मैं.. तुम्हारे प्रेम में डूबे उन खतों को भी भूल चुका हूँ जिसमें अनगिनत रूमानी ख्यालात लिखे हुए थे, और यह भी भूल चुका हूँ कि वह अभी तक उस चाभी वाले फैन्सी डायरी में रखी हुई है.. देखो मैं भूल चुका हूँ उन झीलों को भी जिनके बारे में सोचते हुए हम अक्सर आगोश में समा जाया करते थे और जिनकी तुलना मैं अक्सर तुम्हारी उन्हीं भूली हुई आँखों से करता था.. वही भूली हुई आँखें जिनसे मैंने सपने देखे थे अनेक.. देखो ना मैं भूल चुका हूँ उन क्षणों को भी जब तुम्हारे केशुओं के तले बैठे अमावस की रातों का भ्रम पाल लेता था.. हम वे अक्सर सिर्फ वही बाते भूलते हैं जिनका कोई महत्व हमारे जीवन में नहीं होता है.. ठीक वैसे ही मैं तुम्हें भी भूल गया!!
देखा मैं ना कहता था की कुछ चीजों को भूलना उतना ही सहज होता है जितना कि हमारा भूला हुआ प्यार था..
याद ना आये कोई
लहू ना रूलाए कोई..
हाय! अंखियों में बैठा था,
अंखियों से उठ के
जाने किस देश गया..
जोगी मेरा जोगी वे!
रांझा मेरा राँझना,
मेरा दरवेश गया.. रब्बा!!
दूर ना जाए कोई..
याद ना आये कोई..
शाम के दिए ने,
आँख भी ना खोली,
अंधा कर गई रात..
जला भी नहीं था,
देह का बालन,
कोयला कर गई रात, रब्बा!
और ना जलाए कोई..
याद ना आये कोई!!
देखो ना...मैं भी भूल चुका हूँ कई बातें.. वह दिन भी भूल चुका हूँ जब तुम्हें पहली बार देखा था.. वे दिन भी भूल गया हूँ जब तुम्हें कनखियों से देखता था यह दिखाते हुए की मैं कहीं और देख रहा हूँ और वे दिन भी जब इसके ठीक विपरीत घटनाएं घटी थी.. भूल चुका हूँ तुम्हारे साथ बिताए वे हर पल जिसके मूक गवाह मात्र हम दोनों ही थे.. भूल चुका हूँ तुम्हारे साथ उस पहाड़ी वाले शहर की अनजान गलियों में बेपरवाह, निरुद्देश्य भटकना.. यह भी भूल गया हूँ, जब डरते डरते तुम्हारे होंठों को छुवा था पहली बार और प्रतिक्रिया स्वरूप तुमने बेझिझक चूम लिया था मुझे...अपनी 'झिझक' और तुम्हारा 'अल्हड़पन' भी भूल गया हूँ..
और भी कई बातें भूल गया हूँ, और उस गीत के मुखड़े भी.. देखो मैं अब भूल गया हूँ प्रेम में डूबा तुम्हारा वह पहला स्पर्श भी.. तुम्हारा वह प्यार में मुझसे लड़ना झगड़ना कैसे याद रख सकता हूँ, यह भी भूल चुका हूँ मैं.. तुम्हारे प्रेम में डूबे उन खतों को भी भूल चुका हूँ जिसमें अनगिनत रूमानी ख्यालात लिखे हुए थे, और यह भी भूल चुका हूँ कि वह अभी तक उस चाभी वाले फैन्सी डायरी में रखी हुई है.. देखो मैं भूल चुका हूँ उन झीलों को भी जिनके बारे में सोचते हुए हम अक्सर आगोश में समा जाया करते थे और जिनकी तुलना मैं अक्सर तुम्हारी उन्हीं भूली हुई आँखों से करता था.. वही भूली हुई आँखें जिनसे मैंने सपने देखे थे अनेक.. देखो ना मैं भूल चुका हूँ उन क्षणों को भी जब तुम्हारे केशुओं के तले बैठे अमावस की रातों का भ्रम पाल लेता था.. हम वे अक्सर सिर्फ वही बाते भूलते हैं जिनका कोई महत्व हमारे जीवन में नहीं होता है.. ठीक वैसे ही मैं तुम्हें भी भूल गया!!
देखा मैं ना कहता था की कुछ चीजों को भूलना उतना ही सहज होता है जितना कि हमारा भूला हुआ प्यार था..
याद ना आये कोई
लहू ना रूलाए कोई..
हाय! अंखियों में बैठा था,
अंखियों से उठ के
जाने किस देश गया..
जोगी मेरा जोगी वे!
रांझा मेरा राँझना,
मेरा दरवेश गया.. रब्बा!!
दूर ना जाए कोई..
याद ना आये कोई..
शाम के दिए ने,
आँख भी ना खोली,
अंधा कर गई रात..
जला भी नहीं था,
देह का बालन,
कोयला कर गई रात, रब्बा!
और ना जलाए कोई..
याद ना आये कोई!!