यह बातें मैंने ३० जून २०१० को लिखी थी.. लिखते वक्त जाने किन बातों को सोचते हुए इतनी तल्खियत में लिख गया था.. आज ना वे बातें याद हैं और ना ही उन बातों के पीछे कि तल्खियत.. फिर भी इसे जस का तस आप तक भेज रहा हूँ..अब अच्छी कहे या बुरी, मगर जनाब आदत तो आदत होती है.. और जो छूट जाये वह आदत ही क्या? जैसे मेरी...
Sunday, October 31, 2010
Saturday, October 23, 2010
किस्सों में बंधा एक पात्र
हर बार घर से वापस आने का समय अजीब उहापोह लिए होता रहा है, इस बार भी कुछ अलग नहीं.. अंतर सिर्फ इतना की हर बार एक-दो दिन पहले ही सारे सामान तैयार रखता था आखिर में होने वाली हड़बड़ी से बचने के लिए, मगर अबकी सारा काम आखिरी दिन के लिए ही छोड़ दिया.. साढ़े बारह बजे के आस-पास घर से निकलना भी था और आठ साढ़े...
Wednesday, October 20, 2010
पटनियाया पोस्ट!!
किसी शहर से प्यार करना भी अपने आप में अजीब होता है.. मुझे तो कई शहरों से प्यार हुआ.. सीतामढ़ी, चक्रधरपुर, वेल्लोर, चेन्नई, पटना!!! पटना इन सबमें भी कुछ अव्वल दर्जे का.. सोलह हजार पटरानियों में रुक्मणि जैसा रुतबा!! जवानी के दिनों में हौसलाअफजाई से लेकर आवारागर्दी तक.. सब जाना पटना से.. अब लगभग सात-आठ...
Monday, October 18, 2010
हम ! जो तारीख राहों में मारे गए.
अधिक कुछ नहीं कहूँगा, बस ज़िया मोहयुद्दीन की आवाज़ में यह नज़्म सुनिए :तेरे होंठो के फूलों की चाहत में हम,तार के खुश्क टहनी पे वारे गए..तेरे हाथों के शम्मों की हसरत में हम,नीम तारीख राहों में मारे गए.. सूलियों पर हमारे लबों से परे,तेरे होंठों की लाली लपकती रही..तेरी जुल्फ़ों कि मस्ती बरसती रही,तेरे...