सूरज कि रौशनी मे बारिश होने पर इन्द्रधनुष निकलता है.. चाँद कि रौशनी मे बारिश होने पर भी वो निकलता होगा ना? हाँ!! जरूर निकलता होगा.. मगर रात कि कालिमा उसे उसी समय निगल जाती होगी.. बचपन मे किसी कहानी मे पढ़ा था, "जहाँ से इन्द्रधनुष निकलता था, वहाँ, उसके जड़ में खुशियाँ ही खुशियाँ होती हैं.. उस कहानी के किसी बच्चे को वहाँ जाकर ढेर सारी खुशियाँ मिली थी.." क्यों ना मैं भी कुछ खुशियाँ वहीं से बटोर लाऊं.. खुशियों कि बहुत जरूरत होती है कभी-कभी.. इत्मीनान से खर्च करूँगा.. मगर चाँद की रौशनी में निकलता हुआ इन्द्रधनुष की जड़ में भी क्या खुशियाँ ही होगी?
इन पहाड़ियों के ये पेड़ क्यों इतने मतवाले होकर झूम रहे हैं? इनकी तुलना किसी से भी की जा सकती है.. कोई चाहे तो मतवाला हाथी कह दे.. कोई किसी चीज के लिए मचलता हुआ नटखट बच्चा.. कोई विरह से तडपता हुआ प्रेमी.. भूत-प्रेत मानने वाले उसमे उसे भी देख सकते हैं.. कोई इसे प्रकृति कि एक और छटा मान कर यूँ ही चलता कर दे.. रात के लगभग दो बज चुके हैं.. 6-7 डिग्री सेल्सियस के तापमान में हल्की बूंदा-बांदी में बाहर भींगते हुए मैं भी ये क्या बकवास सोच रहा हूँ.. अब मुझे जाकर सो जाना चाहिए..
इन लोगों को पीने में इतना आनंद क्यों आता है, ये मेरी समझ के बाहर है.. कुछ दफे मैंने भी पीकर नशे को महसूस किया है.. जब नशा उतरता है तो सर भारी रहता है, दिन एक अलग सा ही आलस भरा होता है.. कुल मिलाकर पूरा दिन बरबाद.. खास करके अगर कोई 5 Large से अधिक ले ले तो.. मैंने जब भी लिया था, खुद को कष्ट पहुँचाने की नीयत से ही.. अब इतने हसीन मौसम में कोई क्यों अपना दिन बरबाद करना चाहता है, यह तो वही बताए..
यहाँ लोग कितने निश्चिन्त हैं.. कोई हड़बड़ी नहीं.. किसी चीज कि जल्दी नहीं.. हर काम आराम से.. मैं आराम से हूँ, इसका मतलब ये भी आराम से ही होंगे क्या? ये पहाड़ी लोग जो गीजर क्या होता है ये भी नहीं जानते हैं और सुबह-सबेरे छः बजे से ही भाग-भाग कर हर कमरे में गरम पानी दे रहे हैं.. भले बाहर बरसात ही क्यों ना हो रही हो!!
ये सुबह-सुबह पहाड़ी घूंघट ओढ़े क्या कर रही है? क्या किसी का इन्तजार? या फिर बस अपने सारे आंसूओं को बहाकर चुपके से कहीं और निकल जाने की फिराक में है? इस झरने का पानी सफेद क्यों दिखता है? लोग बताते हैं कि पानी का कोई रंग नहीं होता है.. यक़ीनन वे झूठ बोलते होंगे.. ये बादल भी सफेद, यह झरना भी सफेद.. दोनों ही खूबसूरत.. वो भी जब सफेद कपडे में होती थी तो बला कि खूबसूरत दिखती थी, कुछ-कुछ इसी झरने सा ही.. क्या पता, शायद अब भी वैसी ही होगी.. कई साल बीत चुके हैं अब, इस पर उतने यकीन से 'यक़ीनन' नहीं कह सकता हूँ जैसे ऊपर कह गया हूँ..
जारी...
भाग 1
इन पहाड़ियों के ये पेड़ क्यों इतने मतवाले होकर झूम रहे हैं? इनकी तुलना किसी से भी की जा सकती है.. कोई चाहे तो मतवाला हाथी कह दे.. कोई किसी चीज के लिए मचलता हुआ नटखट बच्चा.. कोई विरह से तडपता हुआ प्रेमी.. भूत-प्रेत मानने वाले उसमे उसे भी देख सकते हैं.. कोई इसे प्रकृति कि एक और छटा मान कर यूँ ही चलता कर दे.. रात के लगभग दो बज चुके हैं.. 6-7 डिग्री सेल्सियस के तापमान में हल्की बूंदा-बांदी में बाहर भींगते हुए मैं भी ये क्या बकवास सोच रहा हूँ.. अब मुझे जाकर सो जाना चाहिए..
इन लोगों को पीने में इतना आनंद क्यों आता है, ये मेरी समझ के बाहर है.. कुछ दफे मैंने भी पीकर नशे को महसूस किया है.. जब नशा उतरता है तो सर भारी रहता है, दिन एक अलग सा ही आलस भरा होता है.. कुल मिलाकर पूरा दिन बरबाद.. खास करके अगर कोई 5 Large से अधिक ले ले तो.. मैंने जब भी लिया था, खुद को कष्ट पहुँचाने की नीयत से ही.. अब इतने हसीन मौसम में कोई क्यों अपना दिन बरबाद करना चाहता है, यह तो वही बताए..
यहाँ लोग कितने निश्चिन्त हैं.. कोई हड़बड़ी नहीं.. किसी चीज कि जल्दी नहीं.. हर काम आराम से.. मैं आराम से हूँ, इसका मतलब ये भी आराम से ही होंगे क्या? ये पहाड़ी लोग जो गीजर क्या होता है ये भी नहीं जानते हैं और सुबह-सबेरे छः बजे से ही भाग-भाग कर हर कमरे में गरम पानी दे रहे हैं.. भले बाहर बरसात ही क्यों ना हो रही हो!!
ये सुबह-सुबह पहाड़ी घूंघट ओढ़े क्या कर रही है? क्या किसी का इन्तजार? या फिर बस अपने सारे आंसूओं को बहाकर चुपके से कहीं और निकल जाने की फिराक में है? इस झरने का पानी सफेद क्यों दिखता है? लोग बताते हैं कि पानी का कोई रंग नहीं होता है.. यक़ीनन वे झूठ बोलते होंगे.. ये बादल भी सफेद, यह झरना भी सफेद.. दोनों ही खूबसूरत.. वो भी जब सफेद कपडे में होती थी तो बला कि खूबसूरत दिखती थी, कुछ-कुछ इसी झरने सा ही.. क्या पता, शायद अब भी वैसी ही होगी.. कई साल बीत चुके हैं अब, इस पर उतने यकीन से 'यक़ीनन' नहीं कह सकता हूँ जैसे ऊपर कह गया हूँ..
जारी...
भाग 1