Tuesday, July 28, 2009

दर्द रूकता नहीं एक पल भी


यह महरूम नुसरत फ़तेह अली खान का गाया एक कव्वाली है.. मुझे यह नेट पर पॉडकास्ट करने के लिये कहीं मिला नहीं, मगर मैं जल्द ही इसे अपलोड करके पॉडकास्ट कर दूंगा.. फिलहाल इसे पढ़कर ही इसका लुत्फ़ उठायें.. :)

दर्द रूकता नहीं एक पल भी,
इश्क की ये सजा मिल रही है..
मौत से पहले ही मर गये हम,
चोट नजरों की ऐसी लगी है..

ऐसी लगी है...
ऐसी लगी है...
ऐसी लगी है...
ऐसी लगी है उनसे...
ऐसी लगी है...
ऐसी लगी है उनसे...

मेरी रो रो के कटती है रैन पिया,
ऐसी लगी है उनसे...
ऐसी लगी है उनसे...

सावन कि काली रतों में,
जब बूंदा-बांदी होती है..
जब सुख कि नींद में सोता है,
तब बिरहा म्हारी रोती है..
बड़ी रो रो कटती है रैन पिया,
जबसे लागी है तुम संग नैन पिया..
ऐसी लगी है उनसे...
ऐसी लगी है उनसे...
ऐसी लगी है उनसे...

हे लागी नाही छूटे रामा,
चाहे जिया जाये..
ऐसी लगी है उनसे...
ऐसी लगी है उनसे...
ऐसी लगी है उनसे...

पत्थर को भी काटो तो वो कट सकता है,
काटे नहीं कटती सब-ए-फ़ुरकत मेरी..
ऐसी लगी है उनसे...
ऐसी लगी है उनसे...
ऐसी लगी है उनसे...

आंख जब से लड़ी मेरी उनकी,
जिंदगी हो गई मेरी उनकी..
ऐसी लगी है उनसे...
ऐसी लगी है उनसे...
ऐसी लगी है उनसे...

अब तो, उनसे लगी है...
अब तो, उनसे लगी है...
अब तो, उनसे लगी है...

मेरी, उनसे लगी है..
मेरी, उनसे लगी है..
मेरी, उनसे लगी है..

वही जो बैठे हैं महफ़िल में सर झुकाये हुये..
मेरी, इनसे लगी है..
मेरी, इनसे लगी है..

मेरी, उनसे लगी है..
मेरी, उनसे लगी है..
सैंया भये कोतवाल, अब डर काहे का?
मेरी, उनसे लगी है..
मेरी, उनसे लगी है..

बलमा के द्वारे, ठारी पुकारूं..
अहमद हमरो छैला हो..
बल बल जाऊं, वांकी सखी री..
हैदर जां के बीर ना हो..
जां के ललना, हंस नैन प्यारे,
ईस पे जिनका साया हो..
बेटी जां की साथ मजहरा,
सद के उन पर जियरा हो..
ऐसे पिया की उंगली पकर कर,
ले चल रे बाजरिया हो..
पुछन लगे, नगर का लोकवा,
ई का लागो तुमरा हो..
लाज की मारी कह ना सकूं मैं,
ई लागो मोरे सैंया हो..
(यहां कुछ गलतिया हो सकती है.. कुछ साफ आवाज नहीं थी यहां..)

मेरी, उनसे लगी है..
मेरी, उनसे लगी है..
मेरी, उनसे लगी है..

कह दूं तोरा मोहे डर काहे का?
प्रीत करी का मैं चोरी करी रे!!
मेरी, उनसे लगी है..
मेरी, उनसे लगी है..
मेरी, उनसे लगी है..

चोट नजरों की ऐसी लगी है,
मौत से पहले ही मर गये हम..
बेवफ़ा इतना अहसान कर दे,
कम से कम इश्क की लाज रख ले..
दो कदम चल के कांधां तो दे दे,
तेरे आसिक़ की मय्यत उठी है..

रखना दुनिया भी है,
मौका भी है,
दस्तूर भी है..
दो कदम, चल-चल के कांधां तो दे दे..
दो कदम, चल-चल के कांधां तो दे दे..
दो कदम, चल-चल के कांधां तो दे दे..

मरने वाले तो अपने जां से गये..
आपकी बेवफ़ाईयां ना गई..
चल-चल के कांधां तो दे दे..
दो कदम, चल-चल के कांधां तो दे दे..
दो कदम, चल-चल के कांधां तो दे दे..

बीमार का दिल टूट चुका,
उठ चुकी मय्यत..
अब तो कांधां तो दे दे..
दो कदम, चल-चल के कांधां तो दे दे..
दो कदम, चल-चल के कांधां तो दे दे..

दो कदम, चल-चल के कांधां तो दे दे..
तेरे आसिक़ की मय्यत उठी है..

रात कटती है गिन-गिन के तारे..
नींद आती नहीं एक पल भी..
आंख लगती नहीं अब हमारी..
आंख गुप-चुप से ऐसी लगी है..

रात कटती है गिन-गिन के, गिन-गिन के तारे..
रात कटती है गिन-गिन के, गिन-गिन के तारे..
रात कटती है गिन-गिन के, गिन-गिन के तारे..

तारों का <समझ नहीं आया :)> में आना मुहाल है..
लेकीन किसी को नींद ना आये तो क्या करे?
रात कटती है गिन-गिन के, गिन-गिन के तारे..
रात कटती है गिन-गिन के, गिन-गिन के तारे..
रात कटती है गिन-गिन के, गिन-गिन के तारे..

तुम्हारे वादे की ऐसी कटी वारी रात..
के इंतजार में तारे गिने हजारी रात..
रात कटती है गिन-गिन के, गिन-गिन के तारे..
रात कटती है गिन-गिन के, गिन-गिन के तारे..
रात कटती है गिन-गिन के, गिन-गिन के तारे..

सितारों! मेरी रातों के सहारों..
सितारों! मेरी रातों के सहारों..
सितारों! मेरी रातों के सहारों..

मुहब्बत की चमकती यादगारों..
सितारों! मुहब्बत की चमकती यादगारों..
सितारों! मुहब्बत की चमकती यादगारों..

सितारों! मेरी रातों के सहारों..
सितारों! मुहब्बत की चमकती यादगारों..

ना जाने मुझको नींद आये ना आये?
तुम्ही आराम कर लो, बेकरारों..
रात कटती है गिन-गिन के, गिन-गिन के तारे..
रात कटती है गिन-गिन के, गिन-गिन के तारे..

किसी कि सब-ए-वश्ल सोते कटे हैं..
किसी कि सब-ए-हिज्र रोते कटे हैं..
ईलाही, हमारी, ये सब कैसी सब है?
ना सोते कटे है, ना रोते कटे है..

रात कटती है गिन-गिन के, गिन-गिन के तारे..
रात कटती है गिन-गिन के, गिन-गिन के तारे..

रात कटती है गिन-गिन के तारे..
नींद आती नहीं एक पल भी..
आंख लगती नहीं अब हमारी,
आंख गुप-चुप से ऐसी लगी है..

इस कदर मेरे दिल को निचोड़ा..
एक क़तरा लहू का ना छोड़ा..
जगमगाती है जो उनकी खलबत..
वो मेरे खून की रोशनी है..
लड़खड़ाता हुआ जब भी नांदां..
उनकी रंगीन महफ़िल में पहूंचा..
देखकर मुझको लोगों से बोले..
ये वही बेवफ़ा आदमी है..

दर्द रूकता नहीं एक पल भी,
इश्क की ये सजा मिल रही है..

Monday, July 27, 2009

देने वाला जब भी देता पूरा छप्पड़ फाड़ कर देता

यह पोस्ट चिट्ठा चर्चा के फीड से संबंधित है..
मैं आजकल जो भी ब्लौग पढ़ता हूं वह सारे गूगल रीडर के माध्यम से ही पढ़ता हूं.. ऐसा नहीं है कि मैं कुछ पुराने और अपने पसंदिदा ब्लौग को छोड़ और कुछ पढ़ना ही नहिं चाहता हूं, कारण यह है कि आजकल किसी अग्रीगेटर पर जाकर अच्छे ब्लौग पोस्ट छांटने का मेरे पास समय नहीं है.. अब ऐसे में नये ब्लौग को भी पढ़ने-पढ़ाने का जिम्मा उन ब्लौगों के हिस्से आ जाता है जो निरंतर नये ब्लौगों का लिंक अपने ब्लौग पर देते रहते हैं..

इस तरह के नये लिंक सबसे ज्यादा मैं चिट्ठा-चर्चा ब्लौग से ही प्राप्त करता था.. फिर एक दिन अचानक से उसके फीड मिलने बंद हो गये.. कुछ दिन मैं इंतजार करता रहा कि शायद सब ठीक हो जाये.. फिर जब अनूप जी चेन्नई आये तो मैंने उनसे भी यह बात कही और उनसे पता चला कि यह शिकायत सिर्फ मेरी ही नहीं है, यह शिकायत उन्हें और जगहों से भी मिल चुकी है.. उन्होंने अपनी तकनिकी अनभिज्ञ्यता भी जतायी और बताया कि ऐसे में क्या करना चाहिये इसका ठीक-ठीक ज्ञान उन्हें नहीं है.. "वैसे सही बात तो यह है कि इसका ज्ञान मुझे भी ज्यादा कुछ नहीं है.."

खैर आज जैसे ही गूगल रीडर खोला तो पाया कि चिट्ठा-चर्चा की पुरानी सारी प्रविष्ठियां गूगल रीडर में से तांक झांक कर रहा है जो तस्वीर में साफ दिख रहा है.. सभी कि सभी पढ़ी और कई बढ़िया लिंक भी मेरे रीडर में जुड़ गये हैं..


चलते-चलते मेरी एक आदत गूगल रीडर के बारे में..
जिस किसी ब्लौग का पूरा फीड मुझे उपलब्ध नहीं होता है उसे मैं अपने गूगल रीडर से हटा देता हूं.. बस तीन ब्लौग ही ऐसे हैं जिनका फीड पूरा नहीं होते हुये भी मेरे रीडर में जगह बनाये हुये है.. डा. अनुराग आर्य जी का ब्लौग, कुश का ब्लौग और अमित जी का ब्लौग ("दुनिया मेरी नजर से" वाले अमित जी)..

Friday, July 24, 2009

ब्याह पर 'अमीर खुसरो' का एक गीत


बहुत रही बाबुल घर दुल्हन, चल तेरे पी ने बुलाई..

बहुत खेल खेली सखियन सों, अंत करी लरकाई..

न्हाय धोय के बस्तर पहिरे, सब ही सिंगार बनाई..

बिदा करन को कुटुम्ब सब आए, सिगरे लोग लुगाई..

चार कहारन डोली उठाई संग पुरोहित नाई

चले ही बनैगी होत कहां है, नैनन नीर बहाई..

अंत बिदा है चलिहै दुल्हिन, काहू कि कछु ना बसाई..

मौज खुशी सब देखत रह गये, मात-पिता औ भाई..

मोरि कौन संग लगिन धराई, धन धन तेरी है खुदाई..

बिन मांगे मेरी मंगनी जो,दीन्ही पर घर कि जो ठहराई..

अंगुरि पकरि मोरा पहूंचा भी पकरे, कंगना अंगूठी पहराई..

नौशा के संग मोहि कर दीन्ही, लाज संकोच मिटाई..

सोना भी दीन्हा रूपा भी दीन्हा बाबुल दिल दरियाई..

गहेल गहेली डोलिय्ज आंगन मा पकर अचानक बैठाई..

बैठत महीन कपरे पहनाये, केसर तिलक लगाई..

खुसरो चले ससुरारी सजनी संग, नहीं कोई आयी..



चित्र में - अमीर खुसरो अपने गुरू निजामुद्दीन औलिया के साथ

Monday, July 20, 2009

एक शहर और एक सख्श, जिसका ख्वाबों से रिश्ता बेहद पुख्ता था

वो शहर था ही ऐसा.. ख्वाबों में जीने वाला शहर.. जहां हर सख्श के भीतर कुछ ख्वाब पलते थे.. जो भी उस शहर में आता था तो कुछ नये ख्वाब लेकर आता था.. मगर ख्वाबों कि भी एक लिमिट होती होगी, तभी तो नये ख्वाबों को पालने के लिये कुछ पुराने ख्वाबों को मारना भी पड़ता था.. मगर वह ख्वाबों में जीने वाला सख्श, अपने ख्वाबों के मरने कि कल्पना करने से भी घबराता था.. घबराहट पर काबू पाने के लिये वह अक्सर सिगरेट जलाया करता था.. फिर उसी सिगरेट के धुंवें में वह अपने ख्वाबों कि तस्वीर बनाया करता.. सारे तस्वीर धुंवें के फैलने के साथ ही टेढ़े-मेढ़े आकार के हो जाया करते थे.. वह अक्सर सोचता था, ख्वाब के बड़े होने के क्रम में होने वाला फैलाव भी क्या उस ख्वाब को बदसूरत कर सकते हैं? वह चीख कर यह सवाल पूछता, कहीं से कोई जवाब ना पाकर वह ये सवाल अपने आप से पूछता.. खुद से भी कोई जवाब नहीं मिलता उसे तो पागलों कि तरह रात के सन्नाटे में पागलों कि तरह निकल जाता..

वह जागती आंखों से भी ख्वाब देखता.. वह ऐसे ख्वाब जागती आंखों से देखता जो उसे सोने नहीं देती.. ख्वाबों में अक्सर एक लड़की को देखता.. ख्वाबों में ही उसे पहचानने कि कोशिश भी करता.. नहीं पहचानने कि हालत में वह फिर पागल हो उठता और पहचान लेने पर उठकर पागलों कि ही तरह उसकी तलाश भी करता.. लेकिन वह नहीं मिलनी थी सो नहीं मिली.. वह अक्सर सोचता, जब उसे नहीं मिलना था तो ख्वाबों में क्यों आती थी? शायद उसका बस यही काम था, ख्वाब देखना.. फिर सोचना.. खूब सोचना.. फिर पागल होना.. फिर ख्वाब देखना.. किसी चक्र की तरह.. इन सबके बीच वह कैसे दूसरे काम करता, उसे पता नहीं चलता..

वह खूब ख्वाब देखता.. खूब सारे पैसों के ख्वाब.. एक बड़ सा महलनुमा घर के ख्वाब.. जिसके चारों तरफ इतनी ऊंची चारदिवारी हो जिसके इस ओर कोई और झांक भी ना सके.. जिसके चारों तरफ चौकिदार पहरा देते रहे.. हां दो बड़े अलसेसियन डौग भी हों.. पता नहीं कैसे दिखते होंगे वे डौग.. वह सोचता कि अमीर लोग कुत्तों को डौग ही क्यों कहते हैं? वह सोचता कि क्या अलसेसियन ही सबसे डरावना कुत्ता होता है? फिर वह सोचता कि ऐसा ही कुछ तो जेल में भी होता है.. चारों तरफ ऊंची-ऊंची चारदिवारी.. दिवारों के ऊपर खड़े कुछ पुलिस वाले.. वह खुद से कहा, नहीं वह चारदिवारी छोटी रखेगा.. उसमें लोहे के नुकीले तार लगवाऊंगा..

अंधेरों में वह ख्वाबों कि परछाईयां ढ़ूंढ़ता.. वह सोचता, जैसे धुंवें में एक परछाई बनती थी, वैसे ही अंधेरे में भी बनती होगी.. उसके कदम अपने आप परछाईयों कि ओर मुड़ जाते.. ख्वाब बुनना छोड़ कर वह परछाईयों कि ओर भागने लगता.. अब कुछ भी उसके हाथ नहीं आता.. ना ख्वाब, और ना परछाई.. उसे रोने का जी करता? क्यों रोये? किसके लिये रोये? मां क्यों हमेशा कहती कि लड़के नहीं रोया करते? यही सोचते-सोचते उसकी रूलाई भी रूक जाती.. वह फिर सोचने लगता, वह सोचता कि यह शहर ही ख्वाबों का है? या फिर वह इतना सोचता क्यों है? वह डरने लगता.. उसे लगने लगा कि कहीं वह भी उस सड़क पर कचरे में सोने वाले भिखाड़ी कि तरह पागल तो नहीं होता जा रहा है? कहीं उसने सुना था कि वह भी सोचते-सोचते पागल हो गया था? क्या लोग सोचने से भी पागल हो जाते हैं? फिर तो ख्वाब भी किसी को पागल बनाता होगा? वह डरने लगता.. फिर अपने ख्वाबों को मारने की सोचने लगता....

Thursday, July 16, 2009

बुखार और लूडो का रिश्ता

शरीर का तापमान सामान्य से अधिक होना, या फीवर, या फिर जिसे भदेष भाषा में बुखार भी कहते हैं.. बुखार और बचपन का बहुत नजदीक का रिश्ता होता है.. क्योंकि करने को हर तरह कि मनमानी करने की छूट होती है.. स्कूल जाना भी नहीं होता है.. और जब तक बुखार रहे तब तक पूरे घर के लोग हर तरह का नखरा उठाते रहते हैं..

कुछ-कुछ ऐसा ही मेरे साथ भी था.. मेरे साथ तो एक बात और भी थी, मैं घर में सबसे छोटा था सो ऐसे ही मेरे नखरे सबसे ज्यादा हुआ करते ही थे.. मगर इन सबके साथ एक बात और भी खास हुआ करती थी.. लूडो!! जब कभी हम भाई-बहन में से कोई बीमार पड़ता था तब घर में एक नया लूडो जरूर आता था, जिसे हम सभी बच्चे खेल कर बहुत खुश होते थे..

पिछले रविवार से लगातार तीन दिन मैं बीमार था.. घर पर बात हुई.. मैंने पापा-मम्मी से शिकायत कि की उन्होंने मेरे लिये लूडो नहीं खरीद दिया..

- आपने मेरे लिये लूडो नहीं खरीद दिया..

- विकास, शिवेन्द्र में से किसी को कहो वो ला देगा..

- नहीं! आप खरीद दिजिये..

- ठीक है.. जब यहां आओगे तब खरीद देंगे..

- नहीं! अभी बुखार है तो अभी चाहिये..

तभी उन्हें याद आया कि जब वह यहां आये थे तब वे घर पर एक लूडो देखे थे.. गार्गी का था जो गार्गी के चेन्नई से जाने के बाद से हमारे पास ही रखा हुआ है.. उस लूडो को याद करके फिर से वे बोले

- तुम्हारे पास तो लूडो है.. उसी से खेलो..

- नहीं वो पुराना वाला लूडो है.. मुझे नया वाला चाहिये..

- अभी उसी से खेल लो..

- नहीं वो गार्गी का है.. मुझे मेरा वाला चाहिये..

अब तक उन्हें समझ में आ गया था कि ये नहीं मानने वाला है और वो लूडो भी नहीं खरीद सकते हैं.. सो बात यहीं खत्म हो गई..

फिलहाल ठीक-ठाक हूं और ऑफिस में हूं.. :)

Thursday, July 09, 2009

जब संगीत उन्माद बन जाया करता थी


कल दुनिया वालों ने एक पूरी सदी को दफना दिया.. वह जब स्टेज पर गाता था तब लोगों में पागलपन छा जाता था.. वह जब स्टेज पर नाचता था तब लोगों में पागलपन छा जाता था.. यही नहीं, जब वह स्टेज पर आता था तब कितने ही उन्माद के कारण बेहोश हो जाया करते थे.. या फिर यूं कहें कि लोग कहीं भी उसे देखते थे तब भी वही पागलपन लोगों में नजर आता था..

जी हां! मैं बात कर रहा हूं माईकल जैक्सन के बारे में.. आप शो बिजनेस के किसी भी सख्श की बात करें, मगर इस एक को छोड़ और कोई भी आपको नहीं मिलेगा जिसके फैन पूरी दुनिया में इस कदर फैले हुये हों.. एक आधी शदी को डांस के नये गुर सिखाने की बात हो या एक अलग अंदाज में संगीत को एक अलग तरह कि ऊंचाई देने कि बात हो, हर जगह यह सख्श सही उतरेगा..


बेहद रहस्यमय जीवन जीने वाला यह सितारा को उसी तरह की रहस्यमय मौत भी नसीब हुई.. इसके मौत पर कई तरह कि बातें की जा रही है, क्या सच है वह जांच एजेंसियों को ही पता करने दिजिये.. मेरे लिये तो बस इतना ही है कि जिस व्यक्ति ने मुझे अंग्रेजी गानों कि समझ दी, मेरा वह सितारा अब सभी को अलविदा कह चुका है..


गीत-संगीत को लेकर मेरा विचार काफी खुला हुआ है.. बॉलीवुड के नये अच्छे-बुरे गाने हों या फिर पुराने गाने.. सूफी कव्वाली हो या राधा-कॄष्ण कि भक्ति में गाये हुये गीत.. गजल हो या फिर शुद्ध शास्त्रीय संगीत.. हर तरह के गाने सुनना मेरा शगल रहा है.. ठीक उसी तरह अंग्रेजी गानों में भी जैज, रॉक, मेटल, रैप, क्लासिक, हर तरह के गीत सुनता हूं.. लेकीन अगर शुरूवात की बात की जाये तो माईकल ही वह गायक था जिसके गानों ने सबसे पहले मुझे अपनी ओर खींचा.. बाद के दिनों में मैं अन्य गायकों, जैसे ब्रायन एडम्स, बॉन जोवी, एडम क्लायटन, विल स्मिथ और भी जाने कितने ही नाम हैं, जिनको मैंने सुना..


एक घटना याद आती है.. माईकल का एक एल्बम आया था "इंविन्सिबल".. इस एल्बम के आने से दो दिन पहले चैनल वी पर लगातार, पूरे दिन भर उसका एक गीत "यू रॉक माई वर्ल्ड" चैनल वी पर दिखाता रहा था, और मैं भी उसे दिन भर देखता रहा.. मैंने अभी तक किसी संगीत एल्बम के लिये सबसे ज्यादा पैसे खर्च किये हैं तो वह भी यही "इंविन्सिबल" ही था.. उन गानों को मैंने इतना सुना कि उसके कुछ गीत मुझे अब भी जबानी याद हैं.. जिनमें "यू रॉक माई वर्ल्ड", "2000 वॉट" और "इंविन्सिबल" प्रमुख हैं..


एम.जे. के नाम से जाना जाने वाला यह गायक तब तक लोगों के जेहन में जिंदा रहेगा जब तक पॉप और रॉक संगीत है और ब्रेक डांस है..

मेरे कई मित्र एम.जे. को यह कहकर नकार देते हैं कि इसका जीवन कई तरह की बदनामियों से घिरा हुआ था.. मैं इसे पूर्णतः सत्य मानता हूं, मगर मैं एम.जे. को एक सिंगर और डांसर के तौर पर याद करता हूं ना कि एक भले या बुरे आदमी के तौर पर..

कुछ यादगार बातें माईकल के बारे में -
1. रेड जैकेट (थ्रिलर गाने के हिट होने के बाद)
2. मून डांस के जन्मदाता के तौर पर..
3. सबसे ज्यादा किसी एल्बम की कॉपी बिकने के कारण..
4. रहस्यमय मौत के लिये..
5. इनके लगभग हर गीत में किसी ब्लैक मॉडल का ही होना..(भले ही किन्ही कारणों से खुद को गोरा बना डाला हो, मगर फिर भी)

मेरे कुछ पसंदीदा गीत जिन्हें मैं सैकड़ों बार सुन चुका हूं और कितनी बार सुनूंगा, मुझे नहीं पता -
1. बिली जीन.
2. ब्लैक और व्हाईट.
3. यू रॉक माई वर्ल्ड.
4. दे डांट रियली केयर अबाउट अस.
5. थ्रिलर.
6. इंविन्सिबल.
7. हिस्ट्री.
8. स्मूथ क्रिमिनल.
9. 2 बैड.
10. डेंजरस.
11. अर्थ सौंग.
12. ब्लड इज ऑन द डांस फ्लोर.

लिस्ट बढ़ता ही जा रहा है.. सो इस लिस्ट को यहीं खत्म करता हूं..


जब एम.जे. भारत आये थे तब उनके जाने के बाद लोगों को उनका भारत के नाम लिखा पत्र मिला जिसमें उन्होंने लिखा था, 'भारत, काफी अर्से से मैं तुम्हे देखना चाहता था। मैं तुमसे मिला, तुम्हारे लोगों से मिला और मुझे तुमसे प्यार हो गया। अब मैं तुमसे दूर जा रहा हूं, इसलिए मेरा दिल बहुत उदास है, लेकिन मैं वापस आऊंगा, क्योंकि मुझे तुमसे प्यार है और मैं तुम्हारी परवाह करता हूं। तुम्हारी उदारता से मैं अभिभूत हूं, तुम्हारी आध्यात्मिक जाग्रति ने मुझे हिला दिया है और तुम्हारे बच्चों ने मेरे दिल को छू लिया है। वे ईश्वर की मूरत हैं। मेरा भविष्य उनमें चमकता है। भारत, तुम मेरा खास प्यार हो.. ईश्वर हमेशा तुम पर अपनी कृपा बनाए रखे।' (ताऊ जी के ब्लौग से आभार सहित लिया हुआ)

अगर कोई मुझसे एक वाक्य में एम.जे. के बारे में बोलने के लिये कहे तो मेरी परिभाषा होगी, "एक रहस्यमय व्यक्ति, जिसका जीवन रहस्यमय था, जिसके संगीत और उनमें आने वाले बदलाव भी एक रहस्य ही थे, जिसकी मौत भी अपने आप में एक रहस्य ही है.."

Tuesday, July 07, 2009

आई टी प्रोफेशन के साईड इफेक्ट

साईड इफेक्ट 1 -
पिछले शुक्रवार की बात है.. मैं दिन भर ऑफिस में काम करने के बाद रात वाले शो में सिनेमा देखने कि भी तैयारी थी.. रात आठ बजे मैं अपने ऑफिस से निकला.. बहुत जोड़ों से भूख लगी थी, सो मैंने सोचा कि पहले कहीं कुछ खा लिया जाये..

मेरे ऑफिस के ठीक बगल में "पेलिटा नासी कांदार" नाम का एक रेस्टोरेंट है जो मलेशियन खाने के लिये बहुत प्रसिद्ध जगह है, मैं वहां गया और मलेशियन चिकेन चाउमिन और्डर किया. खाना खत्म करके मैं अपना प्लेट लेकर वॉस बेसिन की ओर बढ़ने लगा, सभी लोग अजीब तरह से मुझे घूरने लगे.. तब जाकर मुझे समझ में आया कि मैं अपने ऑफिस के कैंटिन में नहीं बल्की रेस्टोरेंट में हूं और यहां मुझे अपना प्लेट को बेसिन में रखने की चिंता नहीं करनी है..

साईड इफेक्ट 2 -
खाना खाकर मैं सिनेमा हॉल कि ओर बढ़ चला.. वहां मेरे कुछ मित्र पहले से ही मेरा इंतजार कर रहे थे.. वहां जब हॉल के अंदर जाने लगा तो मैं अपना आई.डी. कार्ड दिखाया और सीधा अंदर चला गया.. गार्ड चिल्लाने लगा.. मैं समझ नहीं पाया कि आखिर जब मैंने अपना आई.डी.कार्ड दिखा दिया है तब यह क्यों चिल्ला रहा है.. वह गार्ड मेरे पास आया और मुझसे बोला कि आपने टिकट दिखाया ही नहीं.. ये आपका ऑफिस नहीं है जो आई.डी.कार्ड दिखा कर सीधा अंदर चले आ रहे हैं..

साईड इफेक्ट 3 -
सिनेमा शुरू हो चुकी थी.. थोड़ी देर बाद मुझे समय जानने की इच्छा हुई और मैं स्क्रीन के निचले-दाहिने भाग कि तरफ घड़ी ढ़ूंढ़ने लगा.. मैं अचंभित था कि घड़ी कहां चली गई? 2-3 सेकेन्ड के बाद मुझे समझ में आया कि यह कंप्यूटर स्क्रीन नहीं है, सिनेमा स्क्रीन है..

साईड इफेक्ट 4 -
देर रात सिनेमा खत्म हुआ और मैं घर कि ओर निकल लिया.. मेरे सारे मित्र सो चुके थे.. मैं अपने घर के दरवाजे के नजदीक पहूंच कर कार्ड स्वैपिंग मशीन खोजने लगा, जिस पर स्वैप करके मैं दरवाजे को खोल सकूं.. फिर मुझे याद आया कि यहां एक कौल बेल भी हुआ करता है.. ;)

एक मित्र द्वारा भेजे हुये मेल पर आधारित यह पोस्ट है.. :)

Saturday, July 04, 2009

एक चीयर गर्ल हमें भी चाहिये, आईटी वालों की पीड़ा


एक चीयर गर्ल हमें भी चाहिये.. जब भी कोई डिफेक्ट फिक्स हुआ, तो वह नाचे.. हम सभी को चीयर करे.. हिंदी सिनेमा में अक्सर सुनता आया हूं, कि जिंदगी एक खेल के समान है.. और वैसे लोगों को यह भ्रम भी है कि आई.टी. में बहुत पैसा है.. अब जबकी यह खेल भी है और इसमें पैसा भी है तो चीयर गर्ल भी क्यों ना हो?

जरा सोचिये, एक तरफ डेवेलपर की फौज हो.. दूसरी तरफ टेस्टरों की.. रेफरी की भूमिका में प्रोजेक्ट मैनेजर हों.. कैप्टन की भूमिका में प्रोजेक्ट लीड.. बस मैच चालू..

टूर्नामेंट का नाम "मेंटेनेन्स प्रोजेक्ट".. दोनों ही टीम के पास अपनी-अपनी चीयर गर्ल्स हों, जो जब तब मौका मिलने पर लोगों को चीयर कर सके और अगर सही समय हो तो मोटिवेट भी कर सके.. वैसे भी मोटिवेशन का काम मैनेजर्स के बस की बात नहीं लगती है..

डेवेलपर के पास कुछ डिफेक्ट आये.. उसने फिक्स करना शुरू किया.. फिक्स करके उसे टेस्टर के पास भेज दिया और लगा इंतजार करने कि टेस्टर उसे पास करते हैं या फेल करते हैं? ये कुछ-कुछ वैसा ही है जैसे थर्ड अंपायर के निर्णय का इंतजार करना..

टेस्टर उसमें कोई भी खामी नहीं ढ़ूंढ़ पायी.. बेचारों को मजबूरी में उसे पास करनी पड़ी.. डेवेलपर की टीम में खुशी की लहर दौड़ गई.. ठीक वैसे ही जैसे कि रन आऊट होते-होते कोई बल्लेबाज को हरी बत्ती दिख जाये.. या फिर बौंड्री पर कैच होते-होते गेंद सिक्सर चली जाये.. यही तो समय है, चीयर गर्लस का.. वे नाच-नाच कर डेवेलपर को चीयर करने लगी..

अब सीन दो पर आते हैं.. डिफेक्ट फिक्स होकर टेस्टर के पास गया.. टेस्टर ने जी-जान लगा कर उसमें गलती ढ़ूंढ़ निकाली.. बस टेस्टिंग टीम में खुशी का महौल तैयार हो गया.. चीयर गर्लस भी हाथों में रंग-बिरंगे झालर लेकर नाचने लगी.. वहीं पीछे तेज आवाज में संगीत बजने लगा..

इस खेल की सबसे बड़ी खूबी यह होती है कि मैच हमेशा ड्रा ही होता है.. मैच(यानी प्रोजेक्ट) जैसे ही खत्म वैसे ही टेस्टर और डेवेलपर, दोनों ही बेंच पर.. और मैनेजमेंट उन्हें बाहर निकालने की जुगत में..

आहा.. क्या सुंदर नजारा होगा.. बस जरा सोचिये कि आपके कार्यस्थल पर आपके काम पूरा करने पर अचानक से नाचने लगे.. कितना मजेदार नजारा होगा ना? ;)

Friday, July 03, 2009

लाईफ, जैसे कोई चैट बॉक्स


आज से लगभग एक साल पहले का यह चैट हिस्ट्री आप लोगों के सामने रख रहा हूं.. जिससे आप यह समझ सकेंगे कि ऑफिस में खाली समय में या फिर थोड़ी देर के ब्रेक में हम(मैं और मेरा मित्र शिवेन्द्र) कैसे टाईम पास करते हैं.. ;)

प्रशान्त - क्या रे..
प्रशान्त - जिंदा है अभी तक??

शिवेन्द्र - हां यार..
शिवेन्द्र - :-)

प्रशान्त - काहे जिंदा है?? किसके लिये?? जाओ डूब मरो चुल्लू भर पानी में..
प्रशान्त - ;)

शिवेन्द्र - क्यों?

प्रशान्त - ये जीना भी क्या जीना है?? साला बाबू टाईप नौकरी हो गया है..
प्रशान्त - इससे अच्छा तो डूब मरना ही है..

शिवेन्द्र - बाबू टाईप नौकरी हो गया है! मतलब?
शिवेन्द्र - ???
शिवेन्द्र - ?????
शिवेन्द्र - अबे कुछ लिखेगा बे? घास चरने चला गया है क्या?

प्रशान्त - अरे सचिवालय में बाबू का नौकरी क्या होता है?? बिलकुल मोनोटोनस..
प्रशान्त - वैस ही हो गया है..

शिवेन्द्र - ओह.. हां रे
शिवेन्द्र - :-(

प्रशान्त - डेली अपना अकाऊंट चेक करता हूं.. कहीं से कोई पैसा भी नहीं भेजता है..

शिवेन्द्र - बट क्या करें? कोई और ऑप्सन भी नहीं है..

प्रशान्त - :(
प्रशान्त - कहां है रे चुल्लू भर पानी.. कहीं दिखे तो मेरे लिये भी बचा कर रखना..

शिवेन्द्र - मुझे भी कोई पैसा नहीं भेजता है..

प्रशान्त - रुक जा.. मैं तुझे 1 रूपया ट्रांस्फर करता हूं.. तू मुझे कर..
प्रशान्त - ;)

शिवेन्द्र - गुड, जल्दी से कर
शिवेन्द्र - साला कम से कम 1 रूपया तो बढ़े

प्रशान्त - कर दिये..
प्रशान्त - :)

शिवेन्द्र - रूक चेक करने दे

प्रशान्त - मेरा 1 रूपया कम हो गया.. :(

शिवेन्द्र - :-)

प्रशान्त - मिला??

शिवेन्द्र - रूक

प्रशान्त - कितना टाईम लगाता है बे?

शिवेन्द्र - यस आ गया
शिवेन्द्र - :D

प्रशान्त - :)
प्रशान्त - अब तेरी बारी.. तू भेज..

शिवेन्द्र - नहीं भेजूंगा... :P

प्रशान्त - भेज साले..
शिवेन्द्र - मेरा 1 रूपया कम हो जायेगा

प्रशान्त - अभी बढ़ा है ना.. तो भेजो..
प्रशान्त - नहीं तो 1 रूपया बढ़ने पर पार्टी मांग लूंगा..

शिवेन्द्र - नहीं
शिवेन्द्र - नो पार्टी प्लीज
शिवेन्द्र - :-(

प्रशान्त - तो भेजो..
प्रशान्त - :)

शिवेन्द्र - ओके.. भेजते हैं
शिवेन्द्र - :-(

प्रशान्त - गुड.. :D

शिवेन्द्र - मिला?

प्रशान्त - वेट प्लीज.

शिवेन्द्र - मिला क्या
शिवेन्द्र - ???
शिवेन्द्र - ???????

प्रशान्त - वेट फॉर अ मिनट.
प्रशान्त - नहीं बढ़ा..
प्रशान्त - साला नहीं भेजा..
प्रशान्त - :(
प्रशान्त - कुत्ता..
प्रशान्त - गधा..

शिवेन्द्र - हा हा हा :-P

प्रशान्त - पार्टी दे..
प्रशान्त - नहीं तो एक काम करता हूं.. अपना घर वाला बही-खाता में 1 रूपया घटा दूंगा.. :P

शिवेन्द्र - नाउ चेक प्लीज

प्रशान्त - आ गया.. :D

शिवेन्द्र - गुड

प्रशान्त - साला 1 रूपये के लिये कितना रिसोर्स बरबाद किये हैं हम लोग.. ;)

शिवेन्द्र - हा हा हा.. सिर्फ कंप्यूटर + नेट + बैंड विड्थ..

प्रशान्त - :-)
प्रशान्त - चल अब बाबू वाला काम शुरू करें हम तुम..

शिवेन्द्र - ओके.. बी.एफ.एन.

प्रशान्त - बी.एफ.एन.