मै अक्सर कहता हूँ कि मै हिन्दू हूँ, मगर मुझे जानने वाले ये भी अच्छी तरह जानते है कि मै भगवान का भक्त नही हूँ।
अभी कुछ दिन पहले की बात है, मै अपनी दीदी की शादी मे गाँव गया हुआ था। वहाँ से लौटते समय मेरे पिताजी ने मुझे अपने कुल देवी को प्रणाम करने को कहा। मै ऐसा नही करना चाहता था, पर पिताजी कि इच्छा का सम्मान करते हुये मैने वो किया जिसे करने की मेरी बिलकुल भी इच्छा नही थी। मै उस समय बहुत ही ज्यादा अपमानित महसूस किया।
मैने शुरुवात मे कहा है कि मै हिन्दू हूँ, मैने ऐसा इसलिये कहा है क्योन्कि जब सारे लोग अपने धर्म को लेकर अडिग रहते है तो मेरे अडिग होने पर भी किसी को परेशानी नही होनी चाहिये। लेकिन मै किसी आडम्बर मे नही परता हूँ और ना ही परना चाहता हूँ। और सबसे बडी बात तो ये है की मै भगवान को तर्क कि कसौटी पर कसना चाहता हूँ।
वैसे तो मै किसी धर्म और जात-पात को नही मानता हूँ, और मुझे पता है कि मेरा यह विश्वास जीवन भर बना रहेगा।
सधारनतया मेरे इस ब्लाँग पर मै अपनी कविताये ही लिखता हूँ, पर उस दिन जब मै खुद को अपमानित महसूस किया तो मुझे लगा कि मै अपने विचारो से लोगो को अवगत कराऊँ।
धन्यवाद.