Sunday, July 27, 2008

चांदनी रात, बारीश और थकान से भरे वे दो दिन

शीर्षक के अनुरूप ही हमारे हालात भी थे वहां.. शनिवार कि रात आसमान में चांदनी घुली हुई थी, कभी बादल चांद को अपने आगोश में ले लेता था और कभी हल्की बूंदा-बांदी भी शुरू हो जाती थी.. मानो प्रकृति अपनी पूरी छटा दिखाने के रंग में हो.. दिन भर की थकान की वजह से बार बार पानी पीने की इच्छा भी होती थी कुल मिला कर एक अलग ही अनुभव..

पीछे पलट कर देखता हूं तो एक दिन पहले ऑफिस से थक हार कर लौटने के बाद भागम भाग में वाणी के साथ सारा सामान खरीदना.. फिर देर से सोना और सुबह जल्दी ऊठना.. सोने के लिये 3 घंटे से ज्यादा का समय ना मिलना.. फिर अपने ट्रेकिंग दल से मिलने के नियत समय पर पहूंचना.. एक लंबी दूरी गाड़ियों से तय करना और फिर अपने हिस्से का सामान उठा कर निकल परना एक सफर पर.. ऐसा सफ़र जिसके बारे में हम किसी को पता नहीं.. बस एक जोश और जूनून कुछ नया देखने की, कुछ नया करने की.. एक जगह झरना में जम कर स्नान करना और कुछ तैरने की कोशिश जैसा कुछ करना.. बाला और वाणी ने कुछ सिखाया भी, पता नहीं कितना सीखे.. पहाड़ पर चढते-चढते दम फूलने जैसी स्थिती, मगर चलते जाना ही जैसे जीवन का नियम है ठीक वैसे ही थकने पर भी कहीं ना रूकना.. बस चलते जाना..

पहाड़ पर चढते समय एक सेर भी मन में आ रहा था जो कि अगले दिन सच में पूरा हो गया..
"खुदी को किया बुलंद इतना
और चढ गया पहाड़ पर जैसे तैसे..
अब खुदा बंदे से खुद पूछे,
बता बेटा अब उतरेगा कैसे.."
:)

दिन में एक बार मूसलाधार बारीश भी हुई, और उसमें भींगा भी.. वर्षा में भींगना मेरा बचपन से ही सगल रहा है.. पटना में जब कालेज में होता था तब वर्षा होने पर निकल परता था घर के लिये और घर पहूंच कर कहता था कि रास्ते में बारीश हो गई.. भींगने का तो बस एक बहाना चाहिये होता था.. जब से ऑफिस जाने लगा हूं, बारीश से चिढ सी होने लगी थी.. कहीं कपड़े ना खराब हो जायें.. ऑफिस में भींगे हुये कैसे जाऊंगा.. वगैरह-वगैरह.. ऐसा लग रहा था जैसे प्रकृति से दूर होता जा रहा हूं.. एक बार फिर उसी प्रकृति के पास वापस लौट आया हूं.. खूब भींगा.. बिना किसी डर के कि आगे भींगे हुए कपड़ों के साथ आगे का सफ़र कैसे तय करूंगा..

रात में सबसे ऊपर पहूंच कर खाना खाया और सोने की तैयारी करने लगा.. उस समय अपने गाईड पीटर से इस जगह की ऊंचाई पूछा तो उसने बताया 617 मीटर और हमने लगभग 15 किलोमीटर पैदल तय किया था..

अगले दिन का सफर कुछ ज्यादा ही मुश्किलों से भरा हुआ था.. दो दिन पहले की थकावट अब अपना असर दिखा रही थी.. सुबह जब वहां से चले तो बिलकुल अच्छे मूड के साथ.. कई जगह रूके और व्यू प्वाईन्ट देखे.. कई फोटो सेशन भी हुआ.. एक जगह छोटे से झरने के पास रूक कर खाना खाया गया और मेरे जैसे चंद लोग वहां डुबकी भी मारना पसंद किये.. वहां से हमारा कठीन डगर शुरू हुआ.. कहीं ऊपर की ओर चढाई तो कहीं ऐसा ढलवा जहां से संभल कर उतरने के अलावा और कोई चारा नहीं था.. शाम होते होते पता चला कि हमारे गाईड के पास जो जी.पी.एस. मशीन था वो पानी में भींग कर खराब हो चुका था और हम रास्ता भटक चुके थे.. पानी की एक एक बूंद के लिये तरस रहे थे.. रात होती जा रही थी और जाना कहां है कुछ पता नहीं..

दूर कहीं पहाड़ पर बारीश होते हुये..

पीटर ने किसी तरह से रास्ता ढूंढा और फिर से हम सभी चल पड़े.. बस एक बूंद पानी कहीं से भी मिल जाये, उस समय मन में बस यही ख्याल आ रहे थे.. लगभग एक घंटे चलने के बाद मुझे गोबर दिखा.. मन ही मन बहुत खुशी हुई.. सोचा की अब हम सही जगह पर पहूंचने ही वाले हैं.. जंगल खत्म होने पर है.. तभी तो यहां गोबर दिख रहा है.. 10-15 मिनट और चलने के बाद पहाड़ी नदी मिली.. मैंने अपना बैग फेका और बोतल लेकर जल्दी जल्दी पानी भरा.. पीने से पहले दो बोतल अपने सर पर डाल लिया.. फिर पानी पिया और चिप्स का पैकेट निकाल कर बस भुक्कड़ों की तरह खाया.. लगभग आधे घंटे वहां बैठ कर फिर निकल परे.. अबकी बार ज्यादा नहीं चलना परा.. बस आधे घंटे में ही उस जगह पहूंच गये जहां से हम चले थे.. और वहां से घर पहूंचते पहूंचते रात के 1 बज चुके थे.. घर आते समय देखा कि जगह जगह पुलिस पहरे दे रही है.. साईको किलर की तलाश में..

Saturday, July 26, 2008

यात्रा वृतांत, विकास की कलम से (पार्ट - 6)

सुबह कुछ हालत ठीक था तो हम लोग करीब 8 बजे निकले.. कुछ ही दूर चलने के बाद ऐसा लग रहा था किसी तरह घर तक पहुँच जाएँ बस.. हम अपने घुटने के कारण धीमे थे और कुछ अपने थकान के कारण धीमे थे.. पीटर बोला "Slow trekkres" मेरे साथ चलें ताकि पूरा ग्रुप एक साथ चले.. फिर क्या पीटर नाम का चरवाहा विकास नाम के बैल को ऐसा हांका की बस पूछो मत.. :) लेकिन हम भी कम नहीं थे.. एक जगह तो फ्री हैण्ड क्लिम्बिंग में साला Tom cruise को मात दे दिए.. लेकिन साला कोई फोटो नहीं खीचा.. असल में सब कोई इतने शोक्ड हो गए की सब हमी को देखने में लग गए.. :) हा...हा...हा...ऐसा कुछ नहीं था.. लेकिन जब वहां से उतर कर नीचे आयें और दुबारा देखें तो लगा की नहीं जाना चाहिए था.. रिस्क था..

खाने के लिए हमलोग एक पानी वाले जगह पर रुके.. कप नूडल्स और सूप पिए गया.. थोडा बहुत आराम किया गया और फिर से यात्रा शुरू हो गयी.. रात होने से पहले जंगल से बहार निकलना लेकिन पीटर का GPS ख़राब हो गया और हमलोग रास्ता भटक गए.. किसी तरह पीटर और आरुल रास्ता ढूढे और फिर हमलोग आगे बढ़ें.. दुसरे दिन सिर्फ किसी तरह घर पहुचना था इसलिए कोई उतना एन्जॉय नहीं कर पाया.. लेकिन रात होने से पहले तक सब कोई अच्छे से थक गए थे.. बहुत व्यू पॉइंट भी था जहाँ पे रुक रुक कर फोटो शूट आउट हुआ.. रात में झाडी और कांटो से भडा पेड़ उतना अच्छे से दिख नहीं रहा था इसलिए बहुत लोगों के कपडा, हाथ, पैर सब कट-ते, फट-ते गए.. आखिरकार हमलोग करीब 11 बजे अपने बेस कैंप पहुँच ही गए.. सभी अपना सामान समेटे और अपनी अपनी गाडी में बैठ गए..

हालत उतना भी खराब नहीं था.. इसलिए रास्ते भर हमलोग गाते बजाते आये और करीब 1 बजे हमलोग घर पहुंचें.. सभी लोग ऑफिस जाने का ख्याल तो पहले दिन ही छोर के आये थे शिव के अलावा.. उसे जरूरी भी था ऑफिस में.. इसलिए सिर्फ वही ऑफिस आया और हमलोग घर पर आराम किये..


हम चारों मित्र
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ये था हमलोग यात्रा वृतांत.. मेरे शब्दों में.. अब प्रशान्त जैसे नहीं लिख सातें हैं इसीलिए इसी से काम चलाना पड़ेगा.. :) प्रशान्त एक ब्लॉग पहले ही पोस्ट कर चुका है और दूसरा आज रात तक कर देगा.. फोटो भी उसके और वाणी के जिम्मे है.. वैसे आप लोग फोटो साईट पर भी जा के देख सकतें हैं.. साईट का लिंक ये रहा..
http://groups.google.com/group/sachennaitrekkingclub
यहाँ पर “Nagalapuram Mountain climb” से सम्बंधित कुछ लिंक होगा जिसमें आप फोटो देख सकते हैं.. कुल मिला कर ट्रिप अच्छा रहा लेकिन हमलोग जैसे बिगिनर्स के लिए थोडा हेक्टिक हो गया था.. लेकिन अच्छा लगा.. इसलिए जो लोग पिछले ट्रेक में हमें ज्वाइन नहीं कर पाए वो इसबार जरुर चलें..


पुनश्च, ये पत्र मुझे मेरे मित्र विकास ने भेजा था जिसे मैंने किस्तों में आपके सामने पेश किया हूँ.. इससे मुझे बहुत फायदा हुआ, पहला ये की मैं ये सब इतने विस्तार से लिखने से बच गया और दूसरा ये की विकास ने लिखना शुरू किया.. :)
वैसे मुझे पता है की वो एक बार लिख दिया यही बहुत है उसके लिए.. :) विकास को इस पत्र के आभार..
धन्यवाद

आप इन चित्रों को देखे. सम्यक द्वारा लिया ये चित्र सच में मन को भाने वाला है..






Friday, July 25, 2008

Bomb Blast in Bangalore

अभी फिलहाल इतना ही पता है कि एक व्यक्ति की मौत हो गई है और कई घायल हैं.. 30 मिनट पहले ये सारे ब्लास्ट हुये हैं.. कोरोमंडला, मडिवाला, नयनहल्ली, अशोक नगर में हुये ब्लास्ट की खबर मुझे एक मित्र से मिली है..

BANGALORE: According to early reports, at least two people have been killed and 20 people wounded in a series of blasts in Bangalore. Seven blasts have been reported so far. ( Watch )

According to Bangalore Police Commissioner, Shanker Bidri, seven blasts rocked Bangalore.
The police have confirmed that low intensity crude bombs were triggered by a timer.

The blasts took place at the Madivala bus stop, Hossur road, Adugudi, Koramangla, Mysore Road and Nayadahalli. The blasts happened within a span of 12 minutes.
(आगे पढने के लिये यहां क्लिक करें..)

यात्रा वृतांत, विकास की कलम से (पार्ट - 5)

अफ़सोस हुआ कि संजीव इतना बोला था की "बेटा स्वीमिंग सीख लो" लेकिन नहीं सीखे कॉलेज में.. खैर, कुछ हद तक वहीं पर हम और प्रशान्त सीखे.. जो सीखे शायद उसका नाम बैक फ्लोट था.. कर्टसी (बाला और वाणी).. मजा आया.. शिव और वाणी तो पहले से ही जानते थे.. इसलिये वो लोग मजे से पानी में इधर उधर घूम रहे थे..



पानी से निकल कर आराम करने के बाद हम लोग फिर निकल पड़े और करीब 2 घंटे के बाद फिर एक जगह रुके जहां पर खाना पानी हुआ.. सबसे अच्छी बात ये थी की ये लोग कोइ भी कचरा छोड़ नहीं रहे थे.. सारा ले कर चल रेहे थे.. ये अच्छा लगा और लगा की अर्चना के अलावा और भी है कोई जो बाहर में सफाई का इतना खयाल रखता है.. जब चलते थे तो लगता था बहुत ही गलत डिसिजन था यहां आने का लेकिन जब आराम करने के लिये मिलता था तो मजा आता था..

बीच जंगल की बारिश भी मिली और उसका पुरा आदर सम्मान करते हुए हम लोग सब पानी में भींगे भी.. कोई ऑप्सन नहीं था इसलिये जैसा सिचुवेसन था उसी में मजे करना था.. :)



किसी तरह रात होते होते वहां पर पहूंच ही गये जहां पर टेंट लगाना था.. फिर रात में खाना पीना खा कर आराम साराम होने लगा.. ट्रेक में कुछ लोगों से अच्छी बातें भी हुई जिस्मे सम्यक, बाला जी, आरुल, मुकुंद, विवेक थे.. इसमे सम्यक पुणे से था और बहुत ही एनर्जेटिक था.. जब बोलता था "Keep Moving" तो मन करता था की गोली मार दें लेकिन और कोई ऑप्सन नहीं था.. साला "Keep Moving" करते कराते बहुत सारा Moov भी लगाना परा..

आरुल भई तो रॉक क्लिंबिंग का कोर्स किये थे और ऐसे ऐसे करतब दिखा रहे थे कि उनका नाम स्पाईडर मैन रखना परा.. हमारे अपने शिव भी एक दो बार उनको फॉलो कर रहे थे.. हम बोलें की बेटा संभल कर नहीं तो तेरा नाम "Dead Man" रखना परेगा.. आरुल पानी भी जानवर कि तरह ही पी रहा था और कप नूडल्स भी फोर्क के बजाये पेड़ की डाल तोड़ कर खा रहा था.. हम सोचें की बेटा शहर में क्यों रहता है ये.. यहीं रह जा.. पेड़ का पत्ता वत्ता खा के जिंदा रह लेगा..

फोटो शोटो करवाने के मामले में वाणी का जवाब था ही नहीं और वहां पर वो डिमांड में भी थी.. आखिर लोग करते भी क्या.. कोई और थी ही नहीं.. :)



कुछ लोग प्रोफेशनल फोटोग्राफर थे.. जैसे रित्विक और सम्यक.. बड़ा बड़ा कैमरा ले कर आये थे.. वाणी तो सम्यक के कैमरा पर एक दो हाथ भी आजमा ली.. वाणी और प्रशान्त के कैमरे से बहुत कम ही फोटो शूट किया गया.. क्योंकि एक तो किसी में उतना जान नहीं था और दूसरा जब उससे बेहतर फोटो मिल जायेगा तो कौन खराब फोटो लेना चाहेगा..

(क्रमशः...)

Thursday, July 24, 2008

यात्रा वृतांत, विकास की कलम से (पार्ट - 4)

पहला दिनः

किसी तरह सुबह में उठना पड़ा.. बेड का अट्रैक्शन पॉवर सुबह में इतना ज्यादा बढ जाता है उसी दिन पता चला.. :) सारा सामन लेके के हमलोग CMBT पहूंच ही गये, वहां पर कुछ लोग पहले से इंतजार कर रहे थे.. हाय-हेलो हुआ और कुछ ही देर के बाद सारे लोग पहूंच गये..

पीटर इस टीम को लीड कर रहा था.. वो बेल्जियम से है और पिछले 10 साल से चेन्नई में रह रहा है.. मस्त बंदा है.. वाणी के अलावा ट्रेक में सिर्फ एक लड़की थी.. दिव्या.. जो कि पीटर की बेटी थी (ये बात हमलोगों को काफी बाद में पता चला).. रित्विक नाम का एक बंदा अपना कार लाया था.. वो अकेले ही था इसलिये हम चारों मजे से उसी कार में बैठ गये..

तो काफ़िला चल पड़ा.. 1 स्कोर्पियो, 1 स्कोड(जिसमें हम लोग थे), 1 सैंट्रो और 8 बाईक्स.. एक जगह रुक कर नास्ता पानी हुआ और करीब 9 बजे हम लोग अपने सो कौल्ड बेस कैंप पर पहूंचे.. रास्ते में बहुत ही पेड़ पौधा था और अचानक ठंढी हवा चलने लगी.. हम समझे वाह यहां का मौसम अच्छा है.. बाद में रित्विक भाई बोलें कि कार में आC चल रहा है.. ऐसा मामू पहले कभी नहीं बने थे.. :)

"कार बेस कैम्प पहूंचा.. सामने ही पहाड़ था.. मस्त हमलोग चढ गये और रात में वहीं पर टेंट लगा कर सो गये.. सुबह उठे और रैपलिंग या फ्री हैंड उतर गये और फिर कार में बैठ कर घर आ गये.."

काश ऐसा होता.. वैसे हम ऐसा ही सोचे थे लेकिन कौन जानता था कि क्या क्या होने वाला है.. अब ख्वाब की दुनिया से बाहर आते हं.. बेस कैंप में सब खाना पीना ले कर, सामान वामान बांध कर निकल पड़े.. मस्त चांद(चेन्नई में सूरज को हमलोग चांद ही कहते हैं) खिला हुआ था.. अफ़सोस हुआ कि सन ग्लस और कैप क्यों नही लिये.. लेकिन जल्द ही दूसरा अफ़सोस होने वाला था की काश रेन कोट ले लेते.. :)

शुरू में पैदल चलने में बहुत मजा आ रहा था.. लेकिन जब आगे वाला सब रुकने का नाम नही ले रहा था तो धीरे धीरे मजा जाने लगा.. बहुत बार रास्ता भी भटके.. बीच बीच में फोटो शोटो भी खींचा जा रहा था.. लोग तेजी से भागे जा रहे थे क्योंकि रात होने से पहले उपर पहूंचना था(उपर बोले तो क्लिफ टॉप, कोई दूसरा उपर तो नहीं समझ रहा है :)).. ग्लुकोज का भयानक इंतजाम था और उसी के सहारे हमलोग चलते जा रहे थे.. दोपहर के खाने से पहले हमलोग एक पूल के पास पहूंचे.. मस्त चारो तरफ पत्थर था और बीच में पानी.. पानी भी मस्त झरना से आ रहा था इसलिये साफ था.. शुरू में सोचें की पानी में नहीं जायेंगे.. शिव भी मेरे साथ था.. लेकिन वाणी बोली चले जाओ सारा थकान उतर जायेगा.. आखिर एक ट्रेक का अनुभव उसके साथ जो था.. बाद में पीटर सभी को खिंचता ही.. सो हमलोग भी उतर गयें और एक बार उतरे तो बाहर आने का नाम नहीं..

(क्रमशः...)

Wednesday, July 23, 2008

यात्रा वृतांत, विकास द्वारा (पार्ट - 3)


Nagalapuram Mountain climb...(100 km from Chennai...following the TADA mountain range)

हाई ऑल,

अपनी यात्रा शुरू होती है वाणी के एक मेल से जिसमे ट्रेकिंग का सारा डिटेल रहता है.. कौन जाये कौन नही जाये.. बहुत सारा कंफ्यूजन.. अमित हमलोगों के साथ नही चल पाया क्योंकि वो बैग और स्लीपिंग बैग ऑर्डर नहीं कर पाया था..
इस ट्रेक में संजीव और चंदन को सभी बहुत मिस किये.. और अगर लाल साहेब जाते तो कुछ ना कुछ जरूर गुल खिलाते.. :) फाईनली हम चार लोग(प्रशान्त, शिव, वाणी और हम) निकल पड़े पता नहीं कहां क्योंकि जगह का नाम हमें उस समय तक मलूम नहीं था.. :) बस इतना मालूम था कि चेन्नई से 100 किलोमीटर दूर है..



शनिवार सुबह हमें 5.45 में CMBT पहूंचना था और शुक्रवार रात को सोते सोते करीब 1 बज गया.. क्योंकि शुक्रवार का शेड्यूल बहुत ही हेक्टिक था और लास्ट मोमेंट पर शिव महाराज का नखरा "नहीं जायेंगे" लेकिन हमलोग भी कम नहीं थे और उसको खींच ही लिये लेकिन इस बार कुछ ज्यादा ही मेहनत करना पड़ा :)



हमलोग का सारा सामान भी उसी दिन आया था जो की किस्मत से समय पर मिल गया था.. उस दिन सारा काम लास्ट मोमेंट पर हो रहा था इसलिये संजीव याद आ रहा था.. उसी को आदत है लास्ट बॉल पर सिक्सर मारने की.. वही इस बार सबके साथ हो रहा था..

सभी सदस्य को अलग अलग काम सौंपा गया था.. जैसे कि प्रशान्त का काम था की सबको फोन करके CMBT में पहूंचने के लिये याद कराना.. मेरा और वाणी का काम था ग्लूकॉन डी, ब्रेड, जैम और स्नैक्स खरीदना और शिव का मस्त काम था, सबके लिये ट्रिप में खाना बनाना :)



सब कोई अपने काम में लगे हुए थे और हम अपना काम प्रशान्त और वाणी को पकड़ा दिये.. अंततः सारा काम खत्म हुआ और हमलोग सोने चले गये..

(क्रमशः...)
आज सुबह जैसे ही अपना मेल बाक्स खोला, देखा विकास का एक मेल आया हुआ है.. पढना शुरू किया तो पाया कि विकास इतना लंबा मेल भी लिख सकता है, नहीं तो लगता था कि वो परिक्षा भवन को छोड़कर कहीं कुछ लिख ही नहीं सकता है.. अभी मैं सबसे पहले उसी के द्वारा लिखा हुआ यात्रा वृतांत आपको पढाता हूं.. रात तक आपको अलग-अलग तीन हिस्सों में मैं ये सारा कुछ पोस्ट कर दुंगा.. :)

समीर जी, मैंने अबकी बार अपने कैमरे की तस्वीर लगायी है.. :)

Tuesday, July 22, 2008

हमारे गाइड पीटर का पत्र ट्रेकिंग संबंधित (पार्ट 2)

ट्रेकिंग पर हमे गाइड करने वाले बेल्जियम के रहने वाले थे जो पिछले 10 सालों से चेन्नई में हैं.. उनका नाम पीटर है.. ट्रेकिंग और एडवेंचर तो जैसे उनके रगों में रचा बसा हुआ है.. पीटर इस हफ्ते भी येलगिरी जा रहें हैं ट्रेकिंग के लिये, दो बार दिल्ली से लेह-लद्दाख बाईक से घूम चूके हैं.. दो बार चेन्नई से गोवा बाईक से जा चुके हैं और फिर से 1 अगस्त को दिल्ली से लेह-लद्दाख जाने की तैयारी में हैं.. आज थोड़ी देर पहले मुझे उनका मेल प्राप्त हुआ जिसमें उन्होंने लगभग सारी बातें संक्षेप में लिख डाली, और उनका मेल पढने के बाद ही मुझे पता चला की जब रविवार की रात में हम सभी एक-एक बूंद पानी के लिये तरस रहे थे तब पीटर के पास जी.पी.एस. मशीन पानी में भींगकर खराब हो चुकी थी और हम लगभग रात के समय में जंगल में खो चुके थे.. उनके जैसे प्रोफेशनल ट्रेकर की नजर में भी ये ट्रेकिंग बहुत मुश्किलों से भरा हुआ था..

आप भी ये पढें..



पीटर किसी ट्रेकिंग में दूसरों की मदद करते हुये


History repeats itself they say.

We required two attempts to scale the Tada Mountain. We required two attempts to climb the Nagari Peak. (also known as Oluru trek) In both cases we had to search for the proper trail and ran out of time during the first attempt (weekends are too short for CTC ;-)

The same happened for the Nagalapuram Mountain climb. Last week we reached the bottom of a 300m high falls (just imagine!). We tried climbing up at the immediate right and left side of the falls but eventually had to give up due to the steepness of the terrain. On both sides we reached vertical rocks after getting above the forest cover.

This weekend we remained 500m away from the falls and followed a mountain stream (similar to OG - boulders, big rock formations, dense jungle on both sides and light forest cover on top) which took us to the Northwest side of the hill from where the waterfall originates. On the way we did a 1 hour "monsoon trek" trekking through heavy rains (as usual several mobiles, electronics got spoiled or lost during this trek ;-) From the Northwestern there we were able to scale the mountain at a 50degree angle. We reached the top at the right time (fall of darkness) and set up tree self-made pyramid tents from plastic sheets, each covering 1o people. Everyone fell asleep exhausted and soaked.

The next morning we trek around at the top of the hill (around 2km long x 500m wide) and were amazed by the breathtaking view on all sides - East the Nagalapuram inner mountains bordered by higher peaks on all sides, West we saw the plains of Tamilnadu (we could see Pulicat lake 50km away due to the clear skies). We discovered a (dry) mountain stream on top which we followed all the way till the top of the 300m waterfall where we found running water - cooking, swimming, relaxing in the shade of the stream, sunny blue skies on top, taking in the beauty of the underlying valley from a 300m high vertical rock. Amazing it was. One of the best spots CTC discovered so far. After lunch we proceeded South to start our descent from the 600m high
mountain to the main river in the valley - a 450m drop in altitude. Initially the terrain was steep (60 degree slope) - open space with loose rocks and sparse small tree vegetation.

However soon we got caught in dense bush which made our progress very slow. We had to cut our way through the thorny bushes with our sickle. We were running late and soon the night fell and it was getting pitch black. To make matters worse my GPS got wet and did not work anymore so we were navigating on instinct now, in the dark night, covered by trees, in dense (and I mean DENSE), thorny vegetation, down the slope of the mountain, climbing over boulders in the mountain stream, arms and legs bleeding from thorny cuts, clothes are drenched in sweat due to lack of breeze, throats extremely thirsty (we were out of drinking water for at least 2 hours) and with a large group of 31 people, many new to CTC... This was definitely one of the most intense trekking experiences we had recently in CTC. Progress was very slow and after some time the bush became too dense so we decided to make a horizontal escape from the stream and its surrounding dense vegetation to the a more open slope of the mountain. From there things started looking better again and we proceeded downhill Northwest under the bright stars of a clear night sky towards the base of the Nagalapuram valley, hoping to find the stream to clench our thirst.

After walking for another 30 minutes we finally reached the stream - we jumped into the cool water (for the third time that weekend) - the feeling was amazing - submerged in cool water after a sweaty, exhaustive trek since 8am that morning. Wow, this was living life to the maximum.

Amazing trek,

Peter.

ट्रेकिंग का जोश (पार्ट 1)

एक दिन अचानक से मेरे सभी दोस्तों को ट्रेकिंग का भूत सवार हो गया, एक मित्र से चेन्नई ट्रेकिंग क्लब का अता-पता मिला और सभी हो गये तैयार ट्रेकिंग के लिये.. आनन-फानन में हमने ट्रेकिंग के जरूरत की सभी चीजें नेट पर आर्डर कर डाली.. जैसे ट्रेकिंग बैग और स्लीपिंग बैग.. पहले तो मैं सोच रहा था की जब अगले महिने घर जाऊंगा तब घर में रखा हुआ स्लीपिंग बैग लेता आऊंगा, मगर उसका समय नहीं मिला.. फिर हमने सर्च किया कि आने वाले हफ्तों में किस जगह चेन्नई ट्रेकिंग क्लब, ट्रेकिंग के लिये जा रही है..

सबसे पहले कर्नाटक में सिमोगा से कुछ दूरी पर स्थित डब्बे फॉल जाने का प्रोग्राम बना मगर जैसे-जैसे समय नजदीक आता गया वैसे ही एक दिन एक मेल अपने मेल बक्से में देखा की वो ट्रिप कैंसिल हो गया है.. फिर मेरी मित्र ने हमें बताया कि एक नये जगह, "ईस्टर्न घाट" जो कि आन्ध्र प्रदेश में है, जाने का प्रोग्राम बन रहा है.. ये जगह चेन्नई से लगभग 100 किलोमीटर की दूरी पर है.. हम पांच कालेज के मित्रों ने इसके लिये पंजीकरण करवाया जिसमें से मेरे एक मित्र का पंजीकरण किसी कारण से रद्द कर दिया गया..

ट्रेकिंग वाले जगह का गूगल अर्थ से लिया हुआ चित्र 1
हम सभी ने लगभग एक साथ ही अपने सामानों का आर्डर दिया था और वो किसी भी हालत में हम सभी को शुक्रवार दोपहर तक मिल जाने थे.. शुक्रवार को हम सभी का सामान नहीं आया था और हम सोच में थे की ट्रिप को रद्द कर दिया जाये या फिर जारी रखा जाये.. मगर ठीक समय पर हमें हमारा सामान मिल गया और फिर से हम सभी ने अपनी तैयारी शुरू कर दी..

ट्रेकिंग वाले जगह का गूगल अर्थ से लिया हुआ चित्र 2
हर किसी को ट्रेकिंग क्लब की तरफ से कुछ काम सौंपा गया था, जिसमें मेरे हिस्से का काम था सभी को सही समय पर नियत जगह पर बुलाना.. विकास और मेरी मित्र का काम था कुछ खाने पीने का सामन खरीद कर लाना और शिवेंद्र का काम था वहां खाना बनाना.. उससे एक दिन पहले मेरे एक मित्र अफ़रोज़ का जन्मदिन भी था और हम सभी को पता था की इस साप्ताहांत पर कोई भी घर पर नहीं रहेगा सो शुक्रवार की शाम को ही हम सभी ने उसके लिये केक पार्टी का भी इंतजाम कर रखा था.. मैं ऑफिस से घर लगभग 7.30 के आस-पास पहूंचा और उसके बाद तो बिलकुल अस्त-व्यस्त और भागम-भाग जैसी स्थिती बनी हुई थी.. बाद में पता चला की मेरी स्थिती फिर भी अच्छी थी.. विकास और मेरी मित्र तो दोपहर से ही उसी भागम-भाग से परेशान थे..

ट्रेकिंग वाले जगह का गूगल अर्थ से लिया हुआ चित्र 3
(क्रमशः...)

Monday, July 21, 2008

Psycho Killer मेरे घर के पास और Trekking

मेरे घर वाले इलाके में (चेन्नई, वडापलनी) में आज कल किसी हत्यारे का खौफ है जिसे पुलिस मानसिक रूप से विक्षिप्त मान रही है. वो हत्यारा बस हत्या करना जानता है, कुछ लूटता या छिनता नहीं है. बस हत्या करके भाग जाता है. कहाँ से आता है किसी को भी ये पता नहीं है. अचानक से हमला करता है. अभी तक ९ हत्याएं हो चुकी हैं और कितनी होगी ये किसी को नहीं मालूम. कल मैं रात २ बजे के लगभग घर लौटा तो देखता हूँ की लगभग हर पचास मीटर पर २-३ पुलिस वाले खड़े हैं, मैंने सोचा की सायद आज कुछ ना हो. मगर जब सुबह उठा तो पता चला की कल रात फिर एक ह्त्या हो गयी. उस हत्यारे का मुख्या शिकार घरों की रखवाली करते हुए चौकीदार होते हैं. अभी तक जितनी भी हत्याए हुई हैं उनमे मेरी जानकारी में ज्यादातर चौकीदार ही हैं. शायद किसी हिंदी भाषी क्षेत्र में ऐसी हत्या हुई होती तो अब तक मिडिया आसमान को सर पर उठाये होती. मगर हम उत्तर भारतीय खुद ही दक्षिण भारत को अलग करके चलते हैं इसका सबसे बार उदाहरण मिडिया का ये बर्ताव है, और जब हमें दक्षिण भारत में आना होता है तो कहते हैं की दक्षिण में उत्तर भारतीयों का सम्मान नहीं होता है.

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Chennai Trekker Club (CTC)
कल रात मैं लगभग २ बजे घर पहुंचा. मैं ट्रेकिंग पर गया हुआ था. कई तरह की परेशानियों को भी झेला. पहाड़ पर चढ़ना, कभी कभी पानी की कमी, पानी न मिलने पर जैसा भी पानी मिले उसे ही पी लो, बारिश में अच्छा खासा वजनी बैग पीठ पर उठा कर बस चलते जाना जिसमे स्लीपिंग बैग स्लीपिंग मत इत्यादि का वजन अच्छा खासा था कम से कम १०-१२ किलो, पत्थरों पर रॉक क्लिम्बिंग(Rock Climbing) करना, रात में पहाड़ के ऊपर टेंट लगा कर सोना. कुल मिला कर २ दिन बहुत मुश्किल भरे थे तो साथ ही मैंने बहुत मजे भी किये. अगले पोस्ट में मैं इसके बारे में विस्तार से लिखता हूँ और कुछ तस्वीरे भी लगता हूँ. तब तक के लिए मैं चला सोने. पहाड़ चढ़ कर बहुत थक गया हूँ और मेरा पूरा शरीर जैसे जकड सा गया है. आज आफिस भी नहीं गया. :)

Friday, July 18, 2008

जब Java का कोड .Net वाला करता है, तो कोडर उठता नहीं.. उठ्ठ जाता है

डेवेलपर नाना पाटेकर का डायलॉग

बैंग बैंग बैंग.. (कीबोर्ड पर)…
ये देखो …
ये 'C' का कोड.. ये 'C++' का कोड… ये दोनो मिला दिया…
अब बता टेस्टर - 'C' का कौन सा, 'C++' का कौन सा???
जब बनाने वाले ने इसमें कोइ फर्क नहीं किया तो तुम कौन हो फर्क करने वाले…. बता बता..??

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"घायल कोडर"
सनी देओलः बेंच पर बेंच, बेंच पर बेंच.. लोग पागलों कि तरह ट्रेनिंग में रात रात भर पढते रहे और उन्हें मिली तो सिर्फ बेंच!

अल्गोरिथ्म का एनालिसिस करते करते उनकी खुद कि जिंदगी बन गई एक अनसुलझा अल्गोरिथ्म, और उन्हें भी मिली तो सिर्फ बेंच!

ट्रेनिंग के बाद प्रोजेक्ट मिलेगा, फिर अप्रैजल होगा, फिर ऑनसाईट जाऊंगा इसी सोच में लोगों ने ट्रेनिंग के दिन काट दिये और उन्हें भी मिली तो सिर्फ बेंच!

बेंच पर बैठे बैठे लोग खुद बन गये हैं एक बेंच, और फिर भी उन्हें मिली तो सिर्फ बेंच!

बेंच.. बेंच.. बेंच..

सनी देओलः चड्डा समझो इसे….

कोडिंग करने के लिये जो जिगर चाहिये होता है वो किसी बाजार में नहीं मिलता…

कोडर उसे लेकर पैदा होटा है….

सनी देओलः और जब ये जावा का कोड किसी डॉटनेट वाले को करना पर जाता है ना,
तो कोडर उठता नहीं, बल्की इस दुनिया से उठ्ठ जाता है…………

सनी देओलः बाजार में ऐसे कोड बहुत मिलते हैं लेकीन उनको चलाने के लिये जो सीना चाहिये होता है वो एक कोडर लेकर पैदा होता है..

Thursday, July 17, 2008

अई-यई-यो.. हिंदी.. हिंदी..

"हेलो सर! नान फलाना नदु कॉल पनरे..(तमिल में इसका मतलब होता है मैं फलाना से बोल रहा/रही हूं)" सपाट सी आवाज आई ऊधर से..

"कहो भाई क्या कहना है?" अनमने ढंग से मैंने कहा..

वो लगभग चीख उठी, "अई-यई-यो.. हिंदी.. हिंदी.."

"हां यार ये हिंदी ही है.." मुझे हंसी आई, मगर मैंने सपाट सा उत्तर दिया..

"वेट सर, 1 मिनट वेट.." घबराते हुये वो बोली..

अब मुझे भी थोड़ी जिज्ञासा हुई की अब कौन आता है फोन पर..

फिर से उधर से एक लड़की की आवाज गूंजी, "हेलो सर मैं एच.डी.एफ.सी. बैंक से बोल रही हूं.. अभी हमारे यहां ये स्कीम आया हुआ है.. ब्लाह... ब्लाह.." वो बस बोलती गई और मैं सुनता गया.. चेन्नई में किसी कॉल सेंटर से हिंदी में बात करने वाला(या वाली) पहली बार जो मिला था.. बीच-बीच में हां हूं भी करता गया..

उसे लगा की समझ में नहीं आया मुझे.. सो उसने फिर से दोहराया, "ब्लाह.. ब्लाह.."

मैं यंत्रवत हां हूं करता रहा..

उसे फिर लगा की समझ में नहीं आया मुझे.. सो उसने तीसरी बार दोहराया, "ब्लाह.. ब्लाह.."

मुझे तो बस अच्छा लग रहा था हिंदी में और वो भी एक लड़की की आवाज जो बिना गालियां दिये अच्छे से कुछ बताये जा रही थी.. :)

अबकी बार उसने थोड़ा झल्लाते हुये अपनी बात खत्म की और पूछा,"अब तो समझ गये होंगे स्कीम?"

नींद से उबासी लेते हुये मैंने उसे वो सारी बात शब्दशः बता दी जो वो अभी तक उसने मुझे तीन बार कही थी.. सुनकर थोड़ा आश्चर्य से बोली, "मतलब आप समझ गये थे पहली ही बार में? तो आपने पहले क्यों नहीं बताया?"

"अजी आप कहने का मौका देती तब न?", मैंने हंसते हुये कहा..

मैं इतनी देर से उसके बोलने के ढंग को अच्छे से सुन रहा था ये अंदाजा लगाने के लिये कि वो भारत के किस हिस्से से होगी?
वो आगे कुछ बोलती इससे पहले ही मैंने उसे कहा, "स्कीम की बात बाद में करते हैं, मगर मैं ये बता सकता हूं कि आपका घर कहां होगा.."

"कहां?" उसने उत्सुकता से पूछा..

"दिल्ली या फिर चंडिगढ़ या उसी के आस पास की कोई जगह??"

"हां मैं दिल्ली से हूं.. आपको कैसे पता?"

"आपके बोलने के ढंग से समझ गया.. अब आपकी बारी, पहचानिये मैं कहां से हूं?" ये कहते कहते मैंने अंग्रेजी में भी कुछ कह गया..

"आप अंग्रेजी जानते हैं?" आश्चर्य मिश्रित लहजे में उसने कहा.. "वैसे मैं नहीं समझ सकी की आप कहां से हैं.."

"हां जी.. अंग्रेजी जानता हूं.." हंसते हुये मैंने कहा.. "चलिये मैं ही बता देता हूं कि मैं कहां से हूं.. बिहार, पटना.. अब तमिल बोल बोल कर कॉल सेंटर वाले इतना परेशान कर देते हैं कि अब मैं हिंदी में ही उन्हें जवाब दे देता हूं.."

"हां क्या कहें, मेरा भी यही हाल है.. जब मैं किसी को फोन करती हूं और उधर से तमिल में कोई कुछ बोलता है तो मैं भी ऐसे चिल्लाती हूं.. तमिल.. तमिल.." खिलखिलाकर हंसते हुये उसने कहा..

"वैसे आपका नाम क्या है?"

"मनप्रीत कौर.."

फिर ऐसे ही लगभग 45 मिनट बातें होती रही.. अरे हां एक बात तो बताना ही भूल गया.. मैंने अपने जीवन का पहला फिक्स डिपोसिट भी उस कॉल के कारण करवा लिया.. :D एक अफसोस रह गया.. मैंने उसका मोबाईल नंबर क्यों नहीं लिया.. :(

Wednesday, July 16, 2008

मेरे मरने के बाद किसे कितना मिलेगा?

जब काम करते हुये मूड ऑफ होता है तब तमिल सुन कर हिंदी में ही बोल देता हूं "अरे यार तमिल नहीं आती है.." और उधर से जो कोई भी होता है वो घबरा जाता है हिंदी सुन कर क्योंकि उसे हिंदी नहीं आती होती है.. फिर मैं फोन ऑफ कर देता हूं.. कभी-कभी जब पूरे मूड में होता हूं या फिर बोर होता रहता हूं तो बस इस तरह के कॉल का भरपूर आनंद उठाता हूं.. सामने वाले से इतने सवाल पूछता हूं की वो अपना पीछा छूड़ाने की सोचने लगे..

मैं बात कर रहा हूं अवांछित फोन कॉल की जो ज्यादातर किसी बैंक के क्रेडिट कार्ड के लिये होता है, या फिर इंस्योरेंस कंपनी वालों का होता है.. आज मैं आपको वे बातें सुनाता हूं जो अक्सर इंस्योरेंस कंपनी वालों के साथ मेरी होती है..

वैसे तो ये बातें हिंदी, अंग्रेजी और कुछ तमिल शब्दों का मिश्रण होता है मगर मैं इसे आपके सामने हिंदी में पेश करता हूं..

"हेल्लो! सर मैं फलाना इंस्स्योरेंस कंपनी से बोल रहा हूं.."
"हां!! कहिये"
"सर आपने कितने इंस्योरेंस लिये हैं?"
"एक भी नहीं.."
"सर इस इंस्योरेंस को लेने से आपको फलाना-चिलाना फायदा मिलेगा.."
"मुझे इससे क्या फायदा होगा?"
"सर इतने साल के बाद आपको इतने पैसे मिलेंगे.."
"अच्छा? कितने प्रतिशत पर?"
"सर फलाना प्रतिशत पर.."
"लेकिन अगर मैं फिक्स डिपोजिट अगड़म बैंक से करता हूं तो मुझे ज्यादा प्रतिशत का ब्याज मिलेगा.."
"सर आप समझे नहीं, ये फिक्स डिपोजिट से कहीं ज्यादा फायदे वाला है.."
"आप बतायेंगे तभी तो पता चलेगा.."
"सर भगवान ना करे ऐसा हो, मगर अगर आपको कुछ हो जाये तो आपके परिवार वालों को इतना मिलेगा.."

अब तक मेरा अच्छा टाईम पास हो चुका था सो अब बात खत्म करना चाह रहा था.. सो बोला, "मुझे तो कुछ नहीं मिलेगा ना? और मेरे मरने पर जो पैसा मेरे घरवालों को मिलेगा उस पैसे की उन्हें जरूरत नहीं होगी.. उससे ज्यादा मेरी जरूरत है उन्हें.. और मेरे उपर अभी तक कोई निर्भर नहीं है जिसे उस पैसे से कोई फायदा हो.. कोई और फायदा आपको बताना है क्या?"
अब तक वो समझ चुका होता है कि ये नहीं लेने वाले हैं सो मन में गालियां देते हुये बोलता है, "ठीक है सर.. धन्यवाद.."
"धन्यवाद.."


अगर मैं बात करने के मूड में नहीं होता हूं तो भले ही बैठ कर मक्खी मारता रहूं मगर एक सपाट सा उत्तर देता हूं.. "मैं अभी मिटींग में हूं, क्या आप बाद में कॉल करेंगे?"

Monday, July 14, 2008

बदलते चेहरे

कल रात ऑफिस से निकलकर चल परा मैं माम्बलम रेलवे स्टेशन की तरफ.. ऑफिस से लगभग 1 किलोमीटर या उससे कुछ ज्यादा दूरी रही होगी.. एक ओवरब्रिज, उसके बगल में कुछ टूटा हुआ या कुछ तोड़ा गया.. पता नहीं जो भी हो, मगर अंदर प्लेटफार्म पर जाने के लिये एक रास्ता भर.. मुझे तो बस इसी से मतलब था.. चेन्नई के सबसे व्यस्त इलाके से गुजरते हुये पीछे कि तरफ से माम्बलम स्टेशन में प्रवेश किया.. जब नया-नया चेन्नई आया था तब माम्बलम का मतलब पता चला था "आम".. बाद में पता चला कि इसी नाम से एक स्टेशन भी है.. अच्छा लगा कि चलो एक स्टेशन के नाम का मतलब तो पता है..

कानों में मोबाईल का फोन लगा हुआ था और उस पर एफ.एम. रेडियो से कोई हिंदी गाना चल रहा था.. रात 8 से 9 तक किसी चैनेल पर हिंदी गाना आता है.. दो अलग-अलग गीत मुझे दो अलग-अलग लड़कियों कि याद में धकेल गया जो मेरी जिंदगी के पड़ाव में महत्वपूर्ण स्थान पा चुकी है.. माम्बलम स्टेशन पर टिकट लेकर ट्रेन का इंतजार करने लगा.. भीड़ बहुत ज्यादा थी.. सोचा कि क्या इससे भी ज्यादा भीड़ मुंबई में होती होगी? पता नहीं.. इससे ज्यादा भीड़ अगर कहीं रहे तो आदमी 1 इंच भी ना खिसक पाये.. माम्बलम चेन्नई का सबसे व्यस्त स्टेशनों में से एक है.. कारण टी.नगर, पोथी, नल्ली और सर्वणा स्टोर(इसके बारे में फिर कभी)..

माम्बलम से चेन्नई सेंट्रल की ओर बढते हुये अगला स्टेशन कोडमबक्कम.. जब भी यहां से गुजरता हूं तो गार्गी की याद एक बार जरूर आ जाती है.. ना जाने कितनी ही बार कभी उसे छोड़ने तो कभी उसे लेने तो कभी उसके साथ यहां से कहीं और जाने के आता था.. तब ये स्टेशन अपना सा लगता था, अब लगता है जैसे स्टेशन भी पराया हो गया है.. लोग पराये हो जाते हैं, समझ में आता है.. निर्जीव वस्तुयें भी कैसे परायी होती है, समझ के बाहर है.. जब गार्गी चेन्नई में थी तब अक्सरहां उससे सिरीयस वाली लड़ाई हो जाया करती थी.. 3-4 बात नहीं करते थे फिर पुनर्मुशको भवः हो जाता था..

उसके जाने के बाद अब गार्गी की याद आती है.. सोचता हूं कि फिर कभी किसी एक शहर में बसे तो कभी लड़ाई नहीं करूंगा.. मगर मैं जानता भी हूं की ऐसा नहीं होगा.. हमारी दिनचर्या फिर से वहीं हो जायेगी.. उसका कोलकाता वाला घर याद आता है.. उसकी मम्मी और नानी मां का प्यार से खाना खिलाना याद आता है.. उसके पापा का वो गिटार बजाना याद आता है जिसपर मैं जगजीत का कोई गजल गा रहा हूं.. फिर सभी एक झटके से गायब हो जाते हैं..

एक लड़की को यहां चढते हुये देखा.. शायद उत्तर भारत के किसी हिस्से में उसे देखता तो ध्यान भी नहीं देता.. मगर यहां उत्तरी भारतीय को देखकर सोच में पर जाता हूं.. क्या ये भी किसी कॉल सेंटर या साफ्टवेयर कंपनी में काम करती है? क्या इसे भी घर गये महीनों बीत गये होंगे? बेतरतीबी और उदासीन सा चेहरा.. एक सिंपल सी जींस और टी-शर्ट में.. लोग उसे ऐसे देख रहे थे मानों किसी चिड़ियाघर से भाग कर आ गई हो.. सोचा, जो कपड़े दिल्ली में बिलकुल सामान्य सा है वही यहां के लोगों को हजम नहीं होता है.. मन में 2-4 गालियां दी.. उसे इस सबसे कोई मतलब नहीं था.. वो तो शायद ट्रेन में थी भी नहीं.. चेहरा बता रहा था कि कहीं जल्दी से उड़कर पहूंच जाना चाहती थी वो.. एक पल में.. खैर मुझे इससे क्या? मैं मुंह फेरकर खड़ा हो गया..

ऐसे ही सोचते-सोचते नुगमबक्कम, चेटपेट कब गुजरा पता भी नहीं.. भीड़ का हुजुम एग्मोर में उतर गया.. बैठने के लिये जगह खाली हो गया.. सोचा क्या बैठ जाऊं? 2 मिनट में तो पार्क स्टेशन आ जायेगा.. वहीं तो उतरना है.. फिर वहां से सेंट्रल पैदल.. दोस्त को छोड़ने जाना था वहां.. वो दिल्ली जा रही थी.. अब आ ही गया हूं तो 3 मिस्टेक्स ऑफ माई लाईफ भी ले ही लूं.. पता चला की उसकी टेर्न 2 घंटे लेट हो गई है.. अब रात के बारह बजे जायेगी.. उसे बताया तो उसे भरोसा नहीं हुआ.. ये ट्रेन कभी लेट हो ही नहीं सकती है.. कभी नहीं होती है.. आज कैसे.. टिकट भी कंफर्म नहीं है.. "तुम कैसे पता करते हो कि कंफर्म हुआ की नहीं?" उसने पूछा.. हर जवाब इंटरनेट पर मिल जाता है.. "अच्छा!" हंसी उड़ाता हुआ सा चेहरा.. फिर अपने एक मित्र से पूछना.. हुर्रे!! मेरा टिकट कंफर्म हो गया.. सेकेंण्ड ए.सी. में है.. सोचता हूं, लोग कैसे इतना उर्जावान रहते हैं? शायद मैं भी होता.. अगर घर जाने की बात होती तो.. घर-घर-घर.. क्या मैं भी घर के पीछे पर गया हूं..

11.30 में मैं उसे ट्रेन में बिठा कर विदा ले लेता हूं.. इतनी रात में तो ट्रेन मिल ही जायेगी.. मोबाईल की घंटी बजती है.. विकास है.. कहां हो? कब तक आओगे.. परेशान सी आवाज.. ऑफिस के अलावा कहीं और से इतनी देर से घर नहीं गया हूं.. शायद इसलिये.. आ रहा हूं.. पार्क स्टेशन में फिर जाता हूं.. 11.45 हो गये.. अगर ट्रेन नहीं मिला तो ऑटो से जाना होगा.. कुछ लोग दिखे जो ट्रेन के इंतजार में थे.. अरे लोग हैं तो ट्रेन भी आ जायेगी.. बगल में बैठा दो लड़का हिंदी में बात कर रहा है.. कान लगा कर सुनने लगा.. चेन्नई में हिंदी.. नार्थ इंडियन है.. किसी की मां-बहन एक की जा रही थी.. गाली सुनने के लिये तो मैं हिंदी नहीं सुनने वाला हूं.. लो ट्रेन भी आ गई.. अभी की ट्रेन और थोड़ी देर पहले की ट्रेन में अंतर था.. वातावरण का मिजाज भी बदला हुआ था.. ओह!! तो ट्रेन भी शक्लें बदलती है हर घंटे.. अभी भी एक लड़की जा रही थी.. साउथ इंडियन बहुत ही सलीके के कपड़ों में थी.. मगर उस लड़की की तरह बेपरवाह नहीं थी.. कुछ खुबसूरत भी नहीं थी.. मगर चेहरे पर एक डर था.. निगाहें चौकन्नी थी.. घबराई हुई थी.. मैंने घड़ी देखी 12.30 से ज्यादा हो चुके थे..

Saturday, July 12, 2008

एक शाम कुछ यूं भी


उस दिन जब तुम्हें देखा तो मानो दिल कि धड़कन थम सी गई थी.. तुम्हारी नजरों को भी मैंने देखा था.. पल भर को मेरे चेहरे पर टिकी थी.. मानो इस बात का सबूत दे रही हो कि मैं कोई अंजान नहीं हूं.. दिल को तसल्ली हुई, तुम अभी भी मुझे देख कर पहचान रही हो.. अभिनय करने में तुम अभी कच्ची हो.. नहीं तो तुम मुझे ये एहसास नहीं होने देती.. जिंदगी भी किसी नदी कि तरह होती है, हर परिस्तिथि में अपना रास्ता तलाश कर लेती है.. बहना कभी बंद नहीं करती है.. मगर रास्ता बदलने पर जैसे सूखे हुये पानी के श्रोत अपना निशान छोड़ जाती है वैसे ही जिंदगी भी कहीं ना कहीं अपना निशान छोड़ जाती है.. मानो ये याद दिलाने के लिये कि कहीं कुछ सूना सा है.. कुछ खालीपन.. कुछ यादें.. तुमने भले ही अपनी नजरें मुझसे फेर ली थी, मगर मैं तुम्हें एक-टक देखता रहा.. फिर बेतरतीबी में सिगरेट जलाया.. मेरी मित्र ने मुझे कहा कि मत जलाओ.. शायद धुवें से उसे दिक्कत थी.. मैं सॉरी कहकर वहां से जाने लगा, उसने जाने से मना कर दिया.. सिगरेट बुझाने को कहा.. मैंने एक लंबा कश लिया, उसने फिर मना किया.. इतने अधिकार से जिसे मैं नजर अंदाज नहीं कर पाया.. सिगरेट फेंक कर अपना सारा आवेश अपने जूते से उस पर निकाल दिया.. "यहीं थोड़ी दूर पर एक मंदिर है, चलोगे वहां?" मन नहीं था, सो एक सपाट सा उत्तर.. "अरे प्रसाद भी बहुत अच्छा मिलता है वहां.." एक खिलखिलाती हुई सी हंसी, जो शत-प्रतिशत मुझे बहलाने का प्रयास था.. मैं फिर मना नहीं कर पाया.. सोचा मेरा मन बहलाने के लिये ही तो कर रही है ये सब.. मंदिर से बाहर निकलकर सभी प्रसाद खाने लगे.. शायद सच में अच्छा था.. उनके चेहरे से झलक रहा था.. दो चने के दाने मैंने भी उठाया और मुह में डाल लिया.. अनमने ढंग से उसे निगल भी लिया.. फिर वापस कर दिया.. ना जाने क्यों कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा था.. कुछ यादें फिर से दिल पर दस्तक दे रही थी.. ऐसी यादें जिनका मैं सामना नहीं कर सकता.. बस भागना चाहता हूं.. मगर भाग भी नहीं पाता.. क्या करूं? कहां जाऊं इन यादों से?

Thursday, July 10, 2008

आम जिंदगी और मेंटोस जिंदगी. दिमाग की बत्ती जला दे..

ये है आम जिंदगी एक साफ्टवेयर प्रोफेशनल की..



और ये है मेंटोस जिंदगी एक साफ्टवेयर प्रोफेशनल की..



मेंटोस!! दिमाग की बत्ती जला दे.. :)

Wednesday, July 09, 2008

जीवन दर्शन कि कुछ असाधारण सूक्तियां

आज मैं लेकर आया हूं कुछ ऐसी असाधारण सूक्तियां जो मजेदार भी है और तार्किक भी.. अगर इसे कुछ लोग कुतर्क समझ लें तो इसमें मेरा कोई कसूर नहीं है.. :) इसे पढिये, मेरा दावा है कि आप इसे पसंद जरूर करेंगे..

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If your father is a poor man,
it is your fate but,
if your father-in-law is a poor man,
it's your stupidity.

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I was born intelligent -
education ruined me.

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Practice makes perfect.....
But nobody's perfect......
so why practice?

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If it's true that we are here to help others,
then what exactly are the others here for?

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Since light travels faster than sound,
people appear bright until you hear them speak.

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How come "abbreviated" is such a long word?

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Money is not everything.
There's Mastercard & Visa.

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Behind every successful man, there is a woman
And behind every unsuccessful man, there are two.

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Every man should marry.
After all, happiness is not the only thing in
life.

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The wise never marry.
and when they marry they become otherwise.

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Never put off the work till tomorrow
what you can put off today.

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"Your future depends on your dreams"
So go to sleep

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"Hard work never killed anybody"
But why take the risk

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"Work fascinates me"
I can look at it for hours

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god made relatives;
Thank god we can choose our friends.

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The more you learn, the more you know,
The more you know, the more you forget
The more you forget, the less you know
So.. why learn.

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A bus station is where a bus stops.
A train station is where a train stops.
On my desk, I have a work station....
what more can I say........

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Tuesday, July 08, 2008

Forever (मेरे मित्र द्वारा)

ये कविता मेरे एक मित्र के द्वारा लिखा गया है.. मुझे बहुत ज्यादा पसंद है यह, मगर मैं अपने मित्र का नाम नहीं देने जा रहा हूं.. :)

Forever takes me by a minute,
While I’m here with you.
I’m falling even more in love,
With everything you do.

Hold me in your arms,
Look deep into my eyes,
Don’t turn away and let me go,
Don’t ever tell me lies.

I swear I’ll never loose you,
In my arms I’ll always hold.
I’ll never let you slip away,
And leave nothing left untold.

There aren’t enough hours,
In each passing day,
To find all the words,
I wish I could say.

Your kiss will last forever,
Your touch forever warm.
You’ll guide me to the sunlight,
And shield me from the storm.

This is what I’m saying,
With everything that’s true,
I swear on my life,
That I really do love you.

Monday, July 07, 2008

बाहर बसने की तकलीफ़ और नोस्टैजिया

चारों ओर सामान बिखड़ा हुआ था और मैं उसे एक-एक करके समेट रहा था.. वापस जाने का समय आ गया था.. पहली बार घर से वापस कालेज जाने पर मन इतना दुखी हो रहा था.. पापा-मम्मी का साथ और चाहता था.. मगर घड़ी की सुई अपनी रफ़्तार से भागती जा रही थी.. जब पहली बार घर से बाहर निकला था तब भी ऐसा कभी महसूस नहीं हुआ था और ना ही उसके बाद अभी तक कभी हुआ..

सितम्बर सन् 2006 का दिन था.. मैं अपने मिड सेम में ही क्लास छोड़कर घर भाग आया था.. कैंपस सेलेक्शन बीते हुये बस कुछ महीने हुये थे और इस बीच मैं अपने जीवन की एक बहुत बरी घटना से निकल कर आ रहा था.. मन कह रहा था कुछ देर और रुक जाऊं.. मगर समय इसकी इजाजत नहीं दे रहा था..

एक-एक कर के मैंने सारे सामानों को उसके स्थान पर रख कर अपना बैग बंद कर दिया.. मम्मी ढेर सारा खाने का सामान दे रही थी और मैं बिना कोई नखरा किये बस उसे रखता जा रहा था, जैसा की मैं हमेशा नखरा करता हूं.. सामान ठीक करके मैं सोफे पर बैठ गया.. 5 मिनट और रुका जा सकता था.. चुपचाप बैठ कर पापा-मम्मी को देख रहा था.. फिर उठा और बैग को कंधे पर डाल कर मम्मी का पैर छूकर आशीर्वाद लिया.. तभी पापा बोले कि भगवान को भी जाकर प्रणाम कर लो.. मैं थोड़ी देर के लिये ठिठका, मगर भगवान वाले कमरे में नहीं गया.. पहले जब कभी ऐसे हालात आते थे तब मैं चुपचाप कभी मन से तो कभी अनमने ढंग से जाकर हाथ जोड़कर वापस चला आता था.. इससे पापा-मम्मी को कम से कम संतुष्टी तो हो जाती थी.. फिर से पापाजी ने अपनी बात बहुत प्यार से कही.. मैं भगवान वाले कमरे में जाने के बजाये मैं पापाजी कि ओर बढ चला और उनके चरण छूकर कहा कि मैंने तो अपने भगवान को प्रणाम कर लिया.. आप अपने भगवान को प्रणाम कर लीजिये..

वो जान रहे थे कि अब ये किसी तरह से भगवान के सामने नहीं जायेगा.. उन्होंने मुझे बहुत ही भावपूर्ण और प्यार से गले लगा लिया..

सच कहूं तो मुझे इससे ज्यादा आनंद कभी नहीं आता है जब पापाजी मुझे गले लगाते हैं.. ढेर सारे रस एक साथ मेरे ऊपर बरस परता है मानो.. ढेर सारा प्यार.. ढेर सारा आशीर्वाद.. एक संतुष्टी, कि मैं हूं ना, तुम किसी बात की चिंता क्यों करते हो..

आजकल ना जाने क्यों पापाजी कि बहुत याद आ रही है.. ढेर सारी पुरानी बात याद आ रही है जो समय के गर्द में कहीं छुप सी गई थी.. अभी बहुत भाव-विह्वल हो रहा हूं.. बाकी बात कल करता हूं..

Sunday, July 06, 2008

बदलाव! मेरे भीतर का..

"तुम्हारे मोबाईल पर फोन किया था मैंने.."

"हां, वो स्विच्ड आफ था.."

"क्यों?"

"चार्ज ख़त्म हो गया था.."

"तुम गधे हो एक नम्बर के.. जब मोबाईल ठीक से चार्ज नहीं रख सकते तो उसे रखते ही क्यों हो?"

"चलो छोडों ना.. आगे से ध्यान रखूंगा.."

"अब मुझे ऐसे क्यों देख रहे हो?"

"सोच रहा हूं.. तुम इतनी ख़ूबसूरत क्यों हो?"

"तुम्हें तो बस ऐसी बातें बनाना ही आता है.."

"नहीं.. सच में पूछ रहा हूं.."

"बातें खूब बना लेते हो.. मुझे घूरना छोडो..

"...."

"मतलब तुम नजरें नहीं हटाओगे?"

"तुम जब शरमाती हो तो और भी ख़ूबसूरत दिखती हो.."

"मेरा नहीं तो आस-पास के लोगों का तो ख्याल करो.. क्या सोचेंगे?"

"बस दूसरों का ही सोचती हो.. कभी मेरा भी सोच लिया करो.."

कुछ यादों में डूबते-उतरते कुछ बातें याद आ रही थी तुम्हारी.. मगर बस यादें ही आ रही थी.. तुम नहीं.. क्यों सताती हो तुम मझे इतना? दुनिया हर दिन, हर घंटे बदलती है.. तुम भी बदल गई.. शायद मैं भी बदल गया हूं.. शायद नहीं, मैं सच में बदल गया हूं.. पहले सोचता था की तुम सबसे अलग हो.. सबस हट कर.. मगर अब ना जाने क्यों मुझे हर चेहरे में तुम्हारा चेहरा क्यों नजर आने लगा है.. हर जगह तुम क्यों दिखने लगी हो? है ना ये बदलाव की निशानी? क्यों, मैं भी बदल गया हूं ना?

एक डायनामिक पर्सनैलिटी, Mr.G.Vishvanath(Part - 3)

जब मैं विश्वनाथ सर के साथ उनके आफिस में बिता हुआ था तब मुझे उन्होंने अपने बेटे के बारे में बताया.. अपने कामयाब बेटे के बारे में बताते समय एक पिता के चहरे पर जितनी ख़ुशी और गर्व होना चाहिए वो सभी भाव एक साथ उनके चहरे पर मैंने देखा.. मुझे फिर से अपने पापा की यदा आ गई.. मेरे भैया की बता तो छोडिये, जब वो मेरे जैसे नालायक बेटे के बारे में भी किसी को बताते हैं तो उनके चहरे पर कोई भी वो भाव देखा जा सकता है.. इनके बेटे के बारे में ज्यादा जानने के लिए आप यहां क्लिक करें..

उन्होंने मुझे ढेर सारे किस्से सुनाये.. किस तरह उन्होंने पहले अपने घर के आधे हिस्से को आफिस में बदला और फिर पत्नी के ये कहने पर की आप घर को आफिस में बदल कर प्राइवेसी ख़तम कर दिये हैं, फिर उन्होंने पूरे घर को ही आफिस में बदल कर एक फ्लैट में शिफ्ट कर गए.. विश्वनाथ सर ने मुझे अपने आफिस का एक-एक हिस्सा दिखाये.. कौन कंप्यूटर किस नेतवर्क से जुडा हुआ है.. कहां पहले क्या था और उसे उन्होंने कैसे आफिस के प्रयोग में बढ़ला दिया.. वगैरह-वगैरह..

फिर हम वहां से उनके फ्लैट पर गए.. जहां इस समय विश्वनाथ सर अपने सास-ससुर के साथ रह रहे थे.. मुझसे सभी बहुत प्यार से मिले और बहुत ही स्वादिष्ट भोजन भी बहुत प्यार के साथ कराये.. खाने की मेज पर हम हिंदी ब्लौग के बारे में चर्चा भी किये.. जैसे मैं अमथुरा पर कौन-कौन सा ब्लौग पढ़ता हूं.. उसमें से मुझे कौन सा ब्लौग पसंद है.. मैंने उन्हें कुछ ब्लौग पढ़ने का सुझाव भी दिया.. जैसे अनामदास जी का ब्लौग, डा. अनुराग जी का ब्लौग और भी कुछ ब्लौग के बारे में मैंने उन्हें बताया जिसे मैं लेखनी के कारण पसंद करता हूं.. यहां हमने प्रसिद्द ब्लौगरों के बारे में ज्यादा बातें नहीं की क्योंकि उनके बारे में तो लगभग सभी जनाठे हैं..

खाना खा कर थोडी देर बाद हम निकल परे.. वो मुझे वापस फोरम के पास छोड़ने जा रहे थे.. रास्ते में मुझे उनके जीवन के कुछ अनुभवों को जानने का मौका भी मिला.. उन्होंने बताया की कैसे केरल में शिक्षित, बेरोजगार और कंम्यूनिस्त का कैसे खतरनाक संगम बनता जा रहा है.. समय भागता जा रहा था, मगर मुझे अपने नियत समय पर फोरम भी पहूंचना था.. अंततः विश्वनाथ सर ने मुझे फोरम के पास जाकर छोड दिये और साथ में मैं लेकर आया एक बहुता ही ख़ूबसूरत सा अनुभव..


Thursday, July 03, 2008

एक डायनामिक पर्सनैलिटी, Mr.G.Vishvanath(Part - 2)



विश्वनाथ सर ने मेरे आग्रह करने पर अपनी कुछ तस्वीर मुझे ई-मेल की जिसे मैं धीरे-धीरे आपलोगों से बाटूंगा.. इस फोटो में सर जिस कपड़ों में दिख रहे हैं उसी में मुझसे मिलने आये थे.. बिलकुल वैसे ही जैसा मैंने उन्हें देखा था.. एकदम सिंपल.. अपनी रेवा कार के साथ.. :)


बैंगलोर में जब हम मिले तब विश्वनाथ सर ने बहुत ही गर्मजोशी के साथ मेरा स्वागत किया और अपने कार में बैठा कर ले चले अपने आफिस कि ओर.. विश्वनाथ सर पिछले कुछ दिनों से एक ऐसी मशीन खरीदना चाह रहे थे जो उनकी छोटी मोटी जरूरतों को पूरा कर सके जैसे नेट सर्फ करना, प्रजेंटेशन और वर्कशीट तैयार करने जैसा काम कर सके.. इसके लिये वो एक छोटा सा लैपटॉप भी पसंद कर चुके थे जो लाईनक्स ऑपेरेटिंग सिस्टम से चलता है.. जब हमने फोरम में मिलना तय किया तब इन्होंने सोचा कि उधर जा ही रहे हैं तो ये भी लेता चलूं.. जब हम इनके आफिस पहूंचे तब हमारे साथ एक बहुत ही प्यारा और हैंडी लैपी भी था.. एक ऐसी मशीन जो इनकी जरूरतों को पूरा कर सके.. मुझे उसमें बस एक कमी नजर आ रही थी जो आज के जमाने में कोई मायने नहीं रखती है, उसका स्पेस बस 4 जी.बी. था.. मेरे अपने लैपी में बस 40 जी.बी. का स्पेस है मगर मेरे पास लगभग 550 जी.बी. का एक्सटर्नल हार्ड डिस्क है जो मेरी सभी जरूरतों को पूरा कर देता है.. सो अगर कोई मुझसे पूछे तो वो कमी कोई कमी नहीं थी.. ASUS की वो मशीन बहुत ही प्यारी सी थी.. जिसे विश्वनाथ सर अपनी पत्नी को गिफ्ट करना चाह रहे थे जब वो यू.एस.ए. से वापस आती..

इनके आफिस पहूंचने तक हमने कई तरह की बातें की.. घर की, समाज की आफिस की, नौकरी कि.. मगर हमने ब्लौग जगत की कोई बात नहीं की.. :)

आफिस पहूंच कर उन्होंने पूरे उत्साह के साथ अपने आफिस का कोना-कोना दिखाया.. उनका उत्साह देख कर मुझे आश्चर्य हो रहा था कि इतनी उर्जा उनके भीतर कैसे है? इतना तो शायद मेरे भीतर भी नहीं है.. सच कहूं तो बरबस ही अपने पापा की याद आ गई थी, उनके भीतर भी इस समय तक उर्जा की कमी नहीं है और वो दोनो हम उम्र ही होंगे..

जब हम उनके आफिस की ओर बढ़ रहे थे तब यूं ही उन्होंने कहा कि उनके आफिस में सबसे अधिक उम्र का लड़का भी बस 29 साल का ही है और आफिस में एक दूरी बने रहने के कारण उनलोगों से बस ऑफिसियल बातें ही होती है.. शायद मैं भी उनके आफिस में होता तो मैं भी इतने आराम से बैठ कर उनसे बातें नहीं करता होता.. शायद सही कहा था उन्होंने.. मगर मैं तो फिलहाल उस समय किसी और बात से बेफिक्र होकर उनकी बातों का लुत्फ उठा रहा था.. :)


(क्रमशः...)

मैं बैंगलोर से लौट कर बीमार हो गया था..दो दिन ऑफिस नहीं गया.. और जब गया तो लगता है वहीं का होकर रहना पर जायेगा.. ढ़ेर सारा काम जो रखा हुआ है मेरे लिये.. इसलिये मुझे आज-कल समय ज्यादा नहीं मिल पा रहा है.. धीरे-धीरे मैं सारा पोस्ट करूंगा..

Tuesday, July 01, 2008

एक डायनामिक पर्सनैलिटी, Mr.G.Vishvanath(Part - 1)

शनिवार की शाम मैंने विश्वनाथ सर को फोन लगाया.. उधर से उनकी आवाज आई, "हेलो!".. आवाज से मुझे लगा कि ये आवाज किसी 25-30 से ज्यादा उम्र वाले व्यक्ति कि नहीं हो सकती है सो मुझे लगा कि हो ना हो मैंने रौंग नम्बर लगा दिया है.. मैंने इस बात कि पुष्टी के लिये कि मैंने सही व्यक्ति को ही फोन लगाया है पूछा, "Is this Mr. G.Vishvanath?" उधर से आवाज आयी, "Yes!" फिर मैंने अपना परिचय दिया.. पहले प्रशान्त नाम से वो नहीं पहचान पाये मगर जब मैंने ब्लौग का नाम लिया तो उन्होंने कहा "पी.डी.?" तब मुझे याद आया कि मैं ब्लौग जगत में पी.डी. के नाम से ही जाना जाता हूं :).. फिर हमने अगले दिन मिलने का समय और जगह तय कर लिया.. 11 बजे दिन में फोरम के पास.. पहचान उनकी रेवा कार..

हमने(मैं, चंदन और शिवेन्द्र) शनिवार को अपने एक मित्र से उसकी स्कूटी ले ली थी जो Oracle में काम करती है.. रविवार को शिवेन्द्र और चंदन को शिरीष से मिलने जाना था और मुझे विश्वनाथ सर से.. सो हमने तय किया कि हम तीनों साथ निकलेंगे.. वो दोनों चंदन कि बाईक से उधर कि ओर निकल गये और मैं फोरम के लिये निकल लिया.. H.S.R.Layout वाले सिग्नल के पास जाकर ना जाने क्या हुआ मगर उसकी स्कूटी पूरा एक्सलेरेटर नहीं ले पा रही थी.. और इसी कारण मुझे वहां पहूंचने में थोड़ी देर हो गई..

फोरम के पास पहूंचने पर मैंने पाया कि वो मेरा इंतजार कर रहे हैं.. उनकी रेवा कार के कारण मुझे उन्हें पहचानने में ज्यादा दिक्कत नहीं हुई.. वैसे शायद वो ऐसे भी मिलते तो भी उन्हें पहचानने में मुझे ज्याद दिक्कत नहीं होती क्योंकि मैंने उनकी तस्वीर कई बार देख रखी थी.. जैसे ही मैं उनके पास पहूंचा उन्होंने बहुत ही गर्मजोशी से मेरा स्वागत किया और कार में बैठने के लिये कहा..

सबसे पहले उनकी रेवा कार के बारे में --
मुझे इससे पहले कई कारों में बैठने का मौका मिला है.. कुछ पिताजी की बदौलत कुछ दोस्तों के कारण तो कुछ अपनी बदौलत मैंने मारूती 800 से लेकर बी.एम.डबल्यू. तक में बैठ चुका हूं.. मगर रेवा कार में बैठने का एक अलग ही उत्साह था मन में.. छोटी सी और बहुत प्यारी सी.. जिसे कोई भी देखे तो एक नजर में ही प्यार हो जाये.. विश्वनाथ सर ने मुझे उसकी एक-एक फंक्सनैलिटी बहुत बारीकी से बताये.. कैसे चलता है, मीटर में कितने तक बैटरी की सुई रहने पर कितनी दूरी तक चल सकती है, कितने समय में ये पूरा चार्ज होता है, कितनी आसानी से इसे ड्राईव किया जा सकता है वगैरह-वगैरह.. अगर कोई मुझसे पूछे तो मेरा कहना होगा कि किसी शहर में चलाने के लिये एक सम्पूर्ण कार और इको फ्रेंडली भी..


(बाकी अगली किस्त में...)
मैं बैंगलोर जाते समय अपना कैमरा ले जाना भूल गया और मेरे मोबाईल से अच्छी तस्वीर नहीं आती है सो मैंने कोई तस्वीर नहीं ली.. इसलिये मेरे पास कोई तस्वीर नहीं है.. :(